Find the Latest Status about चिड़ियाघर नाटक from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, चिड़ियाघर नाटक.
Shishpal Chauhan
आओ चलें चिड़ियाघर, मन के अंदर आशाएं भर। वहां देखेंगे अनेक जानवर, भालू, शेर, खरगोश, हिरण और बंदर। सभी रहते हैं जाली के अंदर, जो देखने में लगते हैं बहुत ही सुंदर। चैलेंज माता-पिता के संग, नहीं करेंगे उनको तंग। आपस में करेंगे बात,हाथ मिलाएंगे उनके साथ। रंग बिरंगी चिड़िया गीत सुनाती होगी, मछली और पतंग के पानी की लहरों संग इठलाती होंगी। पक्षी मिलेंगे बहुत सारे, मन को लगेंगे प्यारे- प्यारे। गर्दन घूमाते तोते न्यारे, सबकी वे नकल उतारे। शेर और चीता जोर से गुर्राते, हाथी जोर जोर से चिंघाड़ते। ©Shishpal Chauhan #चिड़ियाघर
मेरी आवाज़
तमाशा यहां सुबहो शाम होते देखा, तमाशा यहां बेहिसाब होते देखा ।। देखा यहां लोगो का बेहेक जाना, लोगो को यहां अपना पहचान खोते देखा ।। बंद है आज जो कभी सबको कैद कर लेते थे , कैदियों को आजाद होते देखा ।। -shishir Tripathi चिड़ियाघर।। #Lockdown_2 #nojoto #follow #modiji
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक