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Parasram Arora
जीवन क़े पेचीदा तजुर्बो से जो सादगी जानी थी मैंने उसी ने खिजां से लड़ने का और बहारो को वापस लाने का हौसला दिया था मुझे उसी से ख़डी हो सकी ये जीवन क़ि मीनारे और नेस्तनाबूद हुई थी पिछड़ेपन की खाइया कालांतर मे मेरी खुशियों का संवेदी सूचकांक . जीवन क़े उच्चतम बिंदु का संस्पर्श करने मे कामयाब भी हुआ था खुशियों का सूचकांक.......
खुशियों का सूचकांक.......
read moreSuraj
मानव के जीवन का सूरज धीरे धीरे ढल रहा है रामायण का सीरियल देखो टीवी पर अब चल रहा है दुनिया तो अब यही सोचती मोदी के सपनों का भारत देखो कैसे जल रहा है ..........................सूरज वैश्विक संकट
वैश्विक संकट
read moreParasram Arora
छोड़ देने चाहिए ये क्षुद्र से आग्रह ताकि हम सारी मनुष्यता की वसीयतों को अपनी वसीयत कह सकें ये कैसी दरिद्रता और विडंबना है कि कोई हिन्दू. है इसलिए कुरान उसकी वासियत नहीं हो सकती..... औरकोई मुस्लमान है तो गीता उसकी वसीयत नहीं हो सकती जबकि गीता होया कुरान दोनों इतने प्यारे और समृद्ध ग्रंथ हैँ. लेकिन हम नाहक दरिद्र बने रहते हैँ जबकि कुरान और गीता दोनों वैश्विक समृद्धि बन सकती है और. मानवता धन्य हो सकती है ©Parasram Arora वैश्विक समृद्धि........
वैश्विक समृद्धि........
read moremeena mallavarapu
मेरी छोटी सी यह नैया पार लगेगी या नहीं कौन बता सकता है चारों ओर यह अथाह सागर दिलाता है अहसास मुझे मेरी छोटी सी हस्ती का- बढाचढ़ा कर पाले मैंने कितने रोग अहंकार की लौ में हो गई भस्म भूल गई, है अपनी औकात, केवल बूंद बराबर- वैश्विक चेतना का अब हुआ अहसास शाायद ,अब पा जाऊं छुटकारा अहं के प्राचीर से यह अथाह सागर भर देगा मुझमें अथाह प्रेम,स्नेह,सौहार्द्य आ गया वह सार्थक पल! ------------- वैश्विक चेतना #कविता
वैश्विक चेतना #कविता
read moreParasram Arora
धरा जहर उगल रही हैँ जीवनदायिनी हवाएं प्रदूषित होकर साँसो को विषाक्त कर रही हैँ ओजोन की छिद्रित परतो से. सूर्य आग्नेय नेत्रों से देख रहा हैँ हमें और धरती आग का गोला बन रही हैँ l सागरो मे तीव्र वाष्पीकरण क्रिया उन्मादी बादलो का निर्माण कर रही हैँ तभी तो सरिताए रौद्ररूप धारण कर अपनी विपुल जल राशि से अपने ही तटो पर बसे नगरों को लील रही हैँ आज दहशत की सलीब पर लटकी हुईं हैँ मानवता और अमूल्य जीवन की नैया डगमगा रही हैँ वैश्विक प्लावन और प्रलय
वैश्विक प्लावन और प्रलय
read moreAbhishek Mishra
ये दुनियाँ अपनी सीमा सुरक्षित करने में रह गई , अपनी अपनी अर्थव्यवस्था बढ़ाने में रह गई।। इस वैश्विक महामारी कोरोना ने क्या कमाल दिखाया, विश्व की अर्थव्यवस्था धरी के धरी रह गई।। "अभिषेक मिश्र" त्रस्त वैश्विक महामारी से
त्रस्त वैश्विक महामारी से
read moreShiv Narayan Saxena
World Vegetarian Day. ©Shiv Narayan Saxena 🙋 वैश्विक शाकाहार दिवस. 🙋
🙋 वैश्विक शाकाहार दिवस. 🙋 #Shayari
read moreओमपाल सिंह " विकट"
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है। कोरॉना कोई आम नहीं, ये तो वैश्विक बीमारी है। रविवार सुबह सात बजे ही, घर के अंदर घुस जाओ। रात को नौ बजने तक भी, घर से बाहर मत आओ। नहीं निभाया प्रण पूरा तो, ये नैतिक गद्दारी है। कोरॉना कोई आम नहीं, ये तो वैश्विक बीमारी है। राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है। शाम को पांच बजे मिलकर, सब एक और फर्ज निभाएंगे। घर के दरवाजे पर आकर ताली खूब बजाएंगे। ताली थाली या बजाओ घंटी, ये तो सम्मान की बारी है। कोरॉना कोई आम नहीं, ये तो वैश्विक बीमारी है। राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है। बड़े बुजुर्ग और छोटे बच्चे, घर में रहें तो अच्छा है। बड़ों की ताकत क्षीण है कुछ, बच्चा तो आखिर बच्चा है। भूत भविष्य को रखे सुरक्षित, ये आज की जिम्मेदारी है। कोरॉना कोई आम नहीं, ये तो वैश्विक बीमारी है। राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है। अफवाहों से दूर रहें और, खूब प्रचार प्रसार करें। घर के अंदर रहकर हम सब, कोरोना पर वार करें। लापरवाही हुई जो हमसे, पड़नी बहुत ही भारी है। कोरॉना कोई आम नहीं, ये तो वैश्विक बीमारी है। राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है। आओ हम सब मिलकर के, ये सकल जहां को दिखला दें। विश्व गुरु की ताकत का, कुछ एहसास तो जतला दें। मोदी मंत्र पर डटने की आवश्यकता बहुत ही भारी है। कोरॉना कोई आम नहीं, ये तो वैश्विक बीमारी है। राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है। ओमपाल सिंह " विकट "। धौलाना, हापुड़ (उत्तर प्रदेश)। ये तो वैश्विक बीमारी है
ये तो वैश्विक बीमारी है
read moreVoiceP
एक एसी तरप है जिसके वजह से लोग कुछ भी कर सकते है। ©VoiceP भूख #pratibhacreator #nojoto2021 #भूख
भूख #pratibhacreator #nojoto2021 #भूख
read moreKiran Rani
आज कल हम सब खुद में वयस्त है इतने , बर्बाद करते खाना कुछ और भूख से मरे कितने। आस पास देखे तो हल भी बहुत है बिखरे, कहते हम पर मेरा पेट है भरता भाड में जाए जितने। कूड़े में जाये खाना उस का हमको दर्द नहीं, किसी भूखे के पेट में जाए उसकी कोई जरूरत नहीं। थोड़ा थोड़ा मिलकर भी गर हाथ बढाये, ऐसी कोई राह नहीं जिसकी मिलती मंजिल नहीं। शादी पार्टीज भोज में बचे तो संस्थानो में दे, बहु राष्ट्रीय उद्योगी संस्थानों में दिन के तीन बार बने। आधा जाता पेट में आधा कूड़े की खान बने, गर होता दिल लोगों का तो कितनों का पेट भरे। पर हमको है मिलता दूजो कि चिंता क्यूं करें, मेरी तस्तरी में खाना किसी को मिले न मिले। सोचो उस मां कि हालत होती होगी क्या, जो बच्चों के खाने के लिए हर रोज बिके। वो पिता घुट घुट के रोज है मरता, जिसका बच्चा भूखे पेट पले रोटी को तरसे। गर हो जाए सब लोगों की सोच अगर, कपड़ा मकान न सही भर जाएगा पेट मगर। भूख से मरने वालों की शायद कम हो जाएगी दर, भूख से मरने वालों की कम हो जाएगी कुछ देर। "किरन" भूख #भूख #बेबसी #खुदगर्ज