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New वैश्विक भूख सूचकांक 2020 Quotes, Status, Photo, Video

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Parasram Arora

खुशियों का सूचकांक.......

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जीवन क़े  पेचीदा  तजुर्बो  से 
जो सादगी  जानी थी मैंने 
उसी ने  खिजां से लड़ने का  और   बहारो   को वापस 
लाने  का हौसला  दिया था  मुझे 
उसी से  ख़डी  हो   सकी    ये  जीवन क़ि मीनारे 
और नेस्तनाबूद हुई  थी  पिछड़ेपन की खाइया 
कालांतर मे  मेरी खुशियों का  संवेदी   सूचकांक .  
जीवन क़े   उच्चतम   बिंदु   का  संस्पर्श करने मे  कामयाब  भी 
हुआ  था खुशियों का  सूचकांक.......

Suraj

वैश्विक संकट

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मानव के जीवन का सूरज धीरे धीरे ढल रहा है
रामायण का सीरियल देखो टीवी पर अब चल रहा  है
दुनिया तो अब यही सोचती
मोदी के सपनों का भारत देखो कैसे जल रहा है



..........................सूरज वैश्विक संकट

Parasram Arora

वैश्विक समृद्धि........

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छोड़ देने चाहिए  ये   क्षुद्र  से आग्रह
ताकि हम  सारी मनुष्यता की  वसीयतों
को  अपनी वसीयत  कह सकें
ये कैसी  दरिद्रता और विडंबना है कि
कोई हिन्दू. है  इसलिए  कुरान उसकी
वासियत नहीं हो सकती..... औरकोई मुस्लमान
है  तो गीता उसकी वसीयत नहीं हो सकती
जबकि गीता होया कुरान  दोनों इतने
प्यारे  और समृद्ध  ग्रंथ हैँ. लेकिन हम
नाहक दरिद्र   बने रहते हैँ
जबकि कुरान और गीता  दोनों
वैश्विक  समृद्धि  बन सकती है  और.
मानवता  धन्य   हो सकती है

©Parasram Arora वैश्विक  समृद्धि........

meena mallavarapu

वैश्विक चेतना #कविता

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मेरी छोटी सी यह नैया
पार लगेगी या नहीं
कौन बता सकता है
चारों ओर यह अथाह सागर 
दिलाता है अहसास मुझे
मेरी छोटी सी हस्ती का-
बढाचढ़ा कर पाले मैंने कितने रोग
अहंकार की लौ में
हो गई भस्म
भूल गई,
 है अपनी औकात,
 केवल बूंद बराबर-
         वैश्विक चेतना का अब हुआ अहसास 
           शाायद ,अब पा जाऊं छुटकारा अहं के प्राचीर से   
 यह अथाह सागर भर देगा मुझमें
अथाह प्रेम,स्नेह,सौहार्द्य
आ गया वह सार्थक पल!
------------- वैश्विक चेतना
#कविता

Parasram Arora

वैश्विक प्लावन और प्रलय

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धरा  जहर  उगल  रही हैँ 
जीवनदायिनी  हवाएं  प्रदूषित  होकर  
साँसो को  विषाक्त   कर रही हैँ 
ओजोन की   छिद्रित  परतो से. सूर्य  आग्नेय  नेत्रों
से देख रहा हैँ हमें  और धरती  आग का गोला  
बन रही हैँ l 
सागरो मे  तीव्र  वाष्पीकरण  क्रिया  उन्मादी  बादलो का 
निर्माण कर   रही हैँ 
तभी तो  सरिताए  रौद्ररूप  धारण कर  अपनी  विपुल  जल राशि से  अपने ही  तटो पर बसे नगरों  को  लील  रही हैँ 
आज  दहशत की सलीब पर  लटकी हुईं हैँ  मानवता 
और  अमूल्य जीवन की  नैया  डगमगा  रही हैँ वैश्विक  प्लावन और प्रलय

Abhishek Mishra

त्रस्त वैश्विक महामारी से

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ये दुनियाँ अपनी सीमा सुरक्षित करने में रह गई ,
अपनी अपनी अर्थव्यवस्था बढ़ाने में रह गई।।
इस वैश्विक महामारी कोरोना ने क्या कमाल दिखाया,
  विश्व की अर्थव्यवस्था धरी के धरी रह गई।।



"अभिषेक मिश्र" त्रस्त वैश्विक महामारी से

Shiv Narayan Saxena

🙋 वैश्विक शाकाहार दिवस. 🙋 #Shayari

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ओमपाल सिंह " विकट"

ये तो वैश्विक बीमारी है

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राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।
कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।

रविवार सुबह सात बजे ही, 
घर के अंदर घुस जाओ।
रात को नौ बजने तक भी, 
घर से बाहर मत आओ।
नहीं निभाया प्रण पूरा तो, 
ये नैतिक गद्दारी है।
कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।

शाम को पांच बजे मिलकर, 
सब एक और फर्ज निभाएंगे।
घर के दरवाजे पर आकर ताली खूब बजाएंगे।
ताली थाली या बजाओ घंटी,
ये तो सम्मान की बारी है।
कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।

बड़े बुजुर्ग और छोटे बच्चे,
घर में रहें तो अच्छा है।
बड़ों की ताकत क्षीण है कुछ,
बच्चा तो आखिर बच्चा है।
भूत भविष्य को रखे सुरक्षित,
ये आज की जिम्मेदारी है।
कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।

अफवाहों से दूर रहें और, 
खूब प्रचार प्रसार करें।
घर के अंदर रहकर हम सब, कोरोना पर वार करें।
लापरवाही हुई जो हमसे,
पड़नी बहुत ही भारी है।
कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।

आओ हम सब मिलकर के,
ये सकल जहां को दिखला दें।
विश्व गुरु की ताकत का,
कुछ एहसास तो जतला दें।
मोदी मंत्र पर डटने की आवश्यकता बहुत ही भारी है।

कोरॉना कोई आम नहीं, 
ये तो वैश्विक बीमारी है।
राजनीतिक मतभेद भुलाकर घर रहने की बारी है।

ओमपाल सिंह " विकट "।
धौलाना, हापुड़ (उत्तर प्रदेश)। ये तो वैश्विक बीमारी है

VoiceP

एक एसी तरप है
जिसके वजह से लोग
कुछ भी कर सकते है।

©VoiceP भूख #pratibhacreator #nojoto2021 #भूख

Kiran Rani

आज कल हम सब खुद में वयस्त है इतने , 
बर्बाद करते खाना कुछ और भूख से मरे कितने।
आस पास देखे तो हल भी बहुत है बिखरे,
कहते हम पर मेरा पेट है भरता भाड में जाए जितने।
कूड़े में जाये खाना उस का हमको दर्द नहीं,
किसी भूखे के पेट में जाए उसकी कोई जरूरत नहीं।
थोड़ा थोड़ा मिलकर भी गर हाथ बढाये,
ऐसी कोई राह नहीं जिसकी मिलती मंजिल नहीं।
शादी पार्टीज भोज में बचे तो संस्थानो में दे,
बहु राष्ट्रीय उद्योगी संस्थानों में दिन के तीन बार बने।
आधा जाता पेट में आधा कूड़े की खान बने,
गर होता दिल लोगों का तो कितनों का पेट भरे।
पर हमको है मिलता दूजो कि चिंता क्यूं करें,
मेरी तस्तरी में खाना किसी को मिले न मिले।
सोचो उस मां कि हालत होती होगी क्या,
जो बच्चों के खाने के लिए हर रोज बिके।
वो पिता घुट घुट के रोज है मरता,
जिसका बच्चा भूखे पेट पले रोटी को तरसे।
गर हो जाए सब लोगों की सोच अगर,
कपड़ा मकान न सही भर जाएगा पेट मगर।
भूख से मरने वालों की शायद कम हो जाएगी दर,
भूख से मरने वालों की कम हो जाएगी कुछ देर।
"किरन" भूख 
#भूख #बेबसी #खुदगर्ज
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