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संजीव यादव
War and Peace जब बूंद तेरी आँखों से आई हैं तब याद पुलिस तुम्हे आई हैं। अब ना एक पल कोसोगे मुझको ये कैसी तूने कसम खाई हैं। ये दिल ना जाने है कैसा जो तेरे रहमत में आई है। जब बूंद तेरी आँखों से आई हैं तब याद पुलिस तुम्हे आई है। - संजीव यादव #पोलिस
Mohan Somalkar
पोलिस पोलिस असतो सदा तत्पर गुन्हेगाराच्या पाठीमागे वचक असतो त्याचा तो दिवसरात्र जागे..! तमा बाळगत नाही सुखाची कष्ट सहन करुन कधीही धावतो सदा शिरी ध्येय अपराध्याला पकडल्याचे तो उरी बाळगतो..! पोलीस रक्षक असतो या मायभुमीचा...! मोहन सोमलकर ©Mohan Somalkar # पोलिस
Sajan Kamble
देशात आले संकट ते निवारण करणे हा यांचा मान आहे, सद्वैव हातावर घेऊन ते त्यांचा प्राण आहे , सर्वांचं रक्षण करणे ही त्यांची आण आहे, झटत असतात ते आपल्या साठी याची सर्वांना जाणं आहे, त्यांना ही त्यांच्या घरी खूप ताण आहे , पण देशाच्या हिता साठी हे सर्व विसरून आपले सर्वांचे रक्षण करणे ही त्यांची एक वेगळीच शान आहे, त्यांच्या या सर्व कार्याला माझा हा एक सलाम आहे, आणि पुन्हा एकदा सांगावस वाटत की तुमचा आणि तुमच्या कार्याचा सर्वांना खूप खूप अभिमान आहे.... #पोलिस #mumbaipolice
Mairi AawaZ Suno
शरीफों की शराफत से डर नहीं लगता साहब अब तो पोलिस से डर लगता है अब जब भी खिड़की दरवाजों पर दस्तक होती है चोर उचक्के गुंडों से नहीं साहब पोलिस से डर लगता है अब आलम यह है जब भी गुजरता हो रास्तों से कोई पत्थर आ जाए पैरों में तो दंगाइयों से नहीं साहब पुलिस से डर लगता है जिन्हें मुल्क की हिफाज़त के लिए रखा है उन्हीं ने हमारे घरों को लूटा है साहब खाई है रिश्वत बे हिसाब और गरीब मासूम मजलूमों को पीटा है साहब यही वक्त था तुम्हारे पास अपने किरदार को बदल देते साहब इंसानियत जिंदा है अभ्भि दिलों में तुम्हारे ये मुल्क को बता देते साहब पर किया ना तुम ने अब भी ऐसा ना बुढ़े ना बच्चे देखें ना मां बहनों को देखा साहब हाथों को तोड़ा पैरों को तोड़ा किसी का तुमने सर है फोड़ा हद कर दी तुमने तो देखो किसी को जान से ही धोडाला साहब ना कहेना था ये सब मुझको पर हद कर डाली तुमने तो साहब पर अब कहना पड़ता है मुझको शर्म बड़ी आती है साहब अब बड़ी शर्म आती है बड़ी शर्म आती है मैं अपनी हिफाज़त के लिए किसके पास जाऊं साहब अब तो पुलिस ही जुल्म ढाती है जो बिक चुकी चंद सिक्कों में साहब ऐसी पुलिस पे शर्म आती है जो संविधान की बात ना करती जो संविधान से कामना करती उस पुलिस पे शर्म आती है उस पुलिस पे शर्म आती है ( खान रिज़वान ) #पोलिस से डर लगता है
Mairi AawaZ Suno
शरीफों की शराफत से डर नहीं लगता साहब अब तो पोलिस से डर लगता है अब जब भी खिड़की दरवाजों पर दस्तक होती है चोर उचक्के गुंडों से नहीं साहब पोलिस से डर लगता है अब आलम यह है जब भी गुजरता हो रास्तों से कोई पत्थर आ जाए पैरों में तो दंगाइयों से नहीं साहब पुलिस से डर लगता है जिन्हें मुल्क की हिफाज़त के लिए रखा है उन्हीं ने हमारे घरों को लूटा है साहब खाई है रिश्वत बे हिसाब और गरीब मासूम मजलूमों को पीटा है साहब यही वक्त था तुम्हारे पास अपने किरदार को बदल देते साहब इंसानियत जिंदा है अभ्भि दिलों में तुम्हारे ये मुल्क को बता देते साहब पर किया ना तुम ने अब भी ऐसा ना बुढ़े ना बच्चे देखें ना मां बहनों को देखा साहब हाथों को तोड़ा पैरों को तोड़ा किसी का तुमने सर है फोड़ा हद कर दी तुमने तो देखो किसी को जान से ही धोडाला साहब ना कहेना था ये सब मुझको पर हद कर डाली तुमने तो साहब पर अब कहना पड़ता है मुझको शर्म बड़ी आती है साहब अब बड़ी शर्म आती है बड़ी शर्म आती है मैं अपनी हिफाज़त के लिए किसके पास जाऊं साहब अब तो पुलिस ही जुल्म ढाती है जो बिक चुकी चंद सिक्कों में साहब ऐसी पुलिस पे शर्म आती है जो संविधान की बात ना करती जो संविधान से कामना करती उस पुलिस पे शर्म आती है उस पुलिस पे शर्म आती है ( खान रिज़वान ) #पोलिस पर शर्म आती है
मैत्रेय
#भरती समुद्रावरून येणारा अंगाशी सलगी करणारा सुखद वारा, पार्श्वभूमीला समुद्राची बेधुंद करणारी गाज आणि सोबतीला तो, ती त्याला अशी काही बिलगली होती जसं काही एकच कुडी होती ती. सगळं कसं स्वप्नवत वाटत होतं तिला.ती आणि तो बराच काळ असेच चालत राहिले, निःशब्द, बराच काळ चालल्यावर ती भानावर आली तर तो नव्हताच कुठेही. म्हणून तिने मागे वळून पाहिलं तर तिच्या एकटीच्याच पाऊलखुणा उमटल्या होत्या तिथल्या रेतीत. आज बरोबर सहा महिने झाले त्याला जाऊन.तिच्या डोळ्यातली लाट हलकेच जाऊन धडकली किनाऱ्याला आणि समुद्राला भरती आली. मैत्रेय(अंबादास) #भरती
Mairi AawaZ Suno
शरीफों की शराफत से डर नहीं लगता साहब अब तो पोलिस से डर लगता है अब जब भी खिड़की दरवाजों पर दस्तक होती है चोर उचक्के गुंडों से नहीं साहब पोलिस से डर लगता है अब आलम यह है जब भी गुजरता हो रास्तों से कोई पत्थर आ जाए पैरों में तो दंगाइयों से नहीं साहब पुलिस से डर लगता है जिन्हें मुल्क की हिफाज़त के लिए रखा है उन्हीं ने हमारे घरों को लूटा है साहब खाई है रिश्वत बे हिसाब और गरीब मासूम मजलूमों को पीटा है साहब यही वक्त था तुम्हारे पास अपने किरदार को बदल देते साहब इंसानियत जिंदा है अभ्भि दिलों में तुम्हारे ये मुल्क को बता देते साहब पर किया ना तुम ने अब भी ऐसा ना बुढ़े ना बच्चे देखें ना मां बहनों को देखा साहब हाथों को तोड़ा पैरों को तोड़ा किसी का तुमने सर है फोड़ा हद कर दी तुमने तो देखो किसी को जान से ही धोडाला साहब ना कहेना था ये सब मुझको पर हद कर डाली तुमने तो साहब पर अब कहना पड़ता है मुझको शर्म बड़ी आती है साहब अब बड़ी शर्म आती है बड़ी शर्म आती है मैं अपनी हिफाज़त के लिए किसके पास जाऊं साहब अब तो पुलिस ही जुल्म ढाती है जो बिक चुकी चंद सिक्कों में साहब ऐसी पुलिस पे शर्म आती है जो संविधान की बात ना करती जो संविधान से कामना करती उस पुलिस पे शर्म आती है उस पुलिस पे शर्म आती है ( खान रिज़वान ) #पोलिस से डर लगता है