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akki goswami
History and Culture भू-धरा की रम्यता में रमता वो विश्वास है, पथ सुगंधित मन आनंदित हो गया सच आस है सोने की चिड़िया से सम्बोधित करा था जग जिसे वो है भारत देश जिसमें "संस्कृति-इतिहास" है। 🙏🏼Aखिleश्वR Goस्waमी🙏🏼 #POEM #HISTORY_AND_CULTURE #अखिलेश्वर_गोस्वामी
Akhileshwar Mishra
हम गिरे तो क्या लगा कि उठेंगे नहीं हारे हुए हैं हम , अभी मरे नहीं हजारों ठोकरें खाकर सीखा उठना हमने एक और लग गई तो क्या संभलेंगे नहीं। ©Akhileshwar Mishra #writer #हौसला #गिरना #संभलना #कविता #अखिलेश्वरमिश्र
Poetry with Avdhesh Kanojia
जगदम्ब स्तुति जयति जय अखिलेश्वरी माँ जयति जय वरदायिनी। तिहूँ लोकन की तुम्ही माँ एक ही सुखदायिनी।। रक्तरंजित कालिका तुम खड्ग खप्पर धारिणी। कालाग्नि भासित शुम्भहन्ती असुरदल संहारिणी।। श्वेत वसना शारदा तुम ब्राम्ही वीनापाणिनी। अति प्रबल अज्ञान रूपी अंधकार निवारिणी।। जय अम्बिका दुर्गा भवानी सकल लोक प्रकाशिनी। जय चंड मुंड विनाशिनी जय मातु घट घट वासिनी।। नवरात्रि पावन व आलौकिक भुक्ति मुक्ति प्रदायिनी। सब पर कृपा हो मातु कर अनूकूल हों कात्यायिनी।। ✍️अवधेश कनौजिया© #नवरात्रि जगदम्ब स्तुति जयति जय अखिलेश्वरी माँ जयति जय वरदायिनी। तिहूँ लोकन की तुम्ही माँ एक ही सुखदायिनी।।
Poetry with Avdhesh Kanojia
जगदम्ब स्तुति जयति जय अखिलेश्वरी माँ जयति जय वरदायिनी। तिहूँ लोकन की तुम्ही माँ एक ही सुखदायिनी।। रक्तरंजित कालिका तुम खड्ग खप्पर धारिणी। कालाग्नि भासित शुम्भहन्ती असुरदल संहारिणी।। श्वेत वसना शारदा तुम ब्राम्ही वीनापाणिनी। अति प्रबल अज्ञान रूपी अंधकार निवारिणी।। जय अम्बिका दुर्गा भवानी सकल लोक प्रकाशिनी। जय चंड मुंड विनाशिनी जय मातु घट घट वासिनी।। नवरात्रि पावन व आलौकिक भुक्ति मुक्ति प्रदायिनी। सब पर कृपा हो मातु कर अनूकूल हों कात्यायिनी।। #नवरात्रि #माँ #navratri #maa #maan #poetry #poem जगदम्ब स्तुति जयति जय अखिलेश्वरी माँ जयति जय वरदायिनी। तिहूँ लोकन की तुम्ही माँ एक ही स
Writer1
शिल्पनिर्मित इस संसार में, हर कोई बनावटी रिश्ता निभाता है, लगाकर गले महबूब को सिर्फ रसमी प्यार दिखाता है, मशीनीकरण ने अंधा किया इस कदर, इंसान द्वारा बनाई गई अब इसका इंसान ही गुलाम हुआ जाता हैं। प्रकृति की गोद में खेलते हुए हम आनंदित होते थे, काट के पेड़-पौधे, कर छेड़खानी संतुलन से, अब कुदरत ने प्रकोप दिखाया है, पहले बापू जी के असूल थे: ना बुरा देखो ,ना बुरा सुनो, ना बुरा बोलो, अब सब ने शिष्टाचार भुलाया है। कलयुग में कैसी विपरीत स्थिति है निभा रहे, भूलकर शिष्टाचार और आदर्श अपने, विपरीत नीति है : बुरा देखो , बुरा सुनो, बुरा बोलो है अपना रहे। हे अखिलेश्वरानंद, क्या थी यह दुनिया क्या हो चली, देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान। शिल्पनिर्मित इस संसार में, हर कोई बनावटी रिश्ता निभाता है, लगाकर गले महबूब को सिर्फ रसमी प्यार दिखाता है, मशीनीकरण ने अंधा किया इस कदर, इंसा
Priya Kumari Niharika
महाभारत वह अध्याय है जो धर्म का अभिप्राय है जहां धर्म न्याय का मान है, वहीं भूमि का कल्याण है विध्वंस के शुरुआत का धर्म के प्रभात का उद्देश्य नहीं संघार का, है धर्म के संग्राम का कहीं लोभ था राज का, कहीं चिंता धर्म काज का था समर जीत ना हार का केवल जग के उद्धार का कुरुक्षेत्र के सौभाग्य का, अन्याय के दुर्भाग्य का सत्य और यथार्थ का, स्वार्थ और परमार्थ का कर्मों के परिणाम का, कलंक और कल्याण का दर्द के उपचार का , धर्म के सुविचार का कर्तव्य के निर्वाह का, सामर्थ्य के प्रवाह का सत्यवती की महत्वाकांक्षा का, शकुनी की आकांक्षा का पांडु और धृतराष्ट्र का , अपराध गांधार राज का गांधारी के विवाह का, सौ पुत्रों के उत्साह का धर्म के साम्राज्य का , कौरवों के अन्याय का चौसर के हर चाल का , कुरुक्षेत्र के भीषण हाल का दुर्वासा के आशीर्वाद का , अखिलेश्वर के प्रसाद का भीष्म के भीषण प्रण का, द्रोपदी के वस्त्र हरण का कुरु वंश के आधार का, प्रपंच के कुविचार का सत्ता के अधिकार का, भीष्म के प्रतिहार का इच्छा के संताप का, संतोष के प्रताप का गुरु द्रोण के दिए ज्ञान का अर्जुन के एकाग्र ध्यान का युधिष्ठिर के धर्म का, अर्जुन के महाकर्म का सहदेव नकुल के रण का, संग भीम के महाबल का श्री कृष्ण के सामर्थ का, कौरवों के महा अनर्थ का सुभद्रा के अनुदान का, वीर अभिमन्यु महान का दुर्योधन के व्यभिचार का , कौरवों के अत्याचार का यह कर्ण के बलिदान का, पांचाली के अपमान का कुरु वंश के अभिमान का, विध्वंस के आह्वान का ग्रहण ये अंशुमान का, धर्म के विहान का समर नहीं अंधकार का, अधर्म के प्रतिकार का सृष्टि के नव निर्माण का, मनुष्य के कल्याण का कुरु वंश के रक्तपात का, कुकर्म के हालात का यह धर्म के आह्वान का, अधर्म के अवसान का है ©verma priya महाभारत वह अध्याय है जो धर्म का अभिप्राय है जहां धर्म न्याय का मान है, वहीं भूमि का कल्याण है विध्वंस के शुरुआत का धर्म के प्रभात का उद
Writer1
शीर्षक "हाथ थाम लो जान में जान आ जाती है" टीम पार्टनर Dr Sanju tripathi Dr Rosy Sumbria task 4 by Subashmita अनुशीर्षक में पढ़ें Team task-04 "हाथ थाम लो जान में जान आ जाती है" तुमसे मिलकर ही हमने जाना कि इश्क़ और मोहब्बत का सुरूर क्या है, क्यों महकने लगती है हर सा