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Nandan
काहे हमरे जीवन की बगिया उजारी काहे तुमसे प्रीत लगा लियेन भारी हम तो तुम्हारी आँखन मा दीपक बन चमके काहे हमरा दीपक बुझाए दियेव प्यारी प्रेम की डोर कुछ ऐसी बंधी रहे कि नाचि-नाचि मोर जैसे पंख उतारी अब ना प्रेम जानी और नाए तुमका समय की बिरहा पकड़ लिहिस भारी मिलिबा तुमका अब कउनो जनम मा देखि केरे पल्ला न झारि लियेउ प्यारी...... अवधी भाषा में कुछ कहने की कोशिश
अवधी भाषा में कुछ कहने की कोशिश
read moreDEV FAIZABADI
कहै सुनै का 'देव' अही। जैसन चुस्का सेव अही। ज्यादा कै ना बात करब, बस एक्कै अध्धा पेव अही । देव फैजाबादी #just for fun, enjoy the life # कहै सुनै का... # अवधी भाषा में # 🤔 ऐसा नहीं रे बाबा..
कहै सुनै का... # अवधी भाषा में # 🤔 ऐसा नहीं रे बाबा.. #just
read moreराम अनुज "रामा"
अवधी भाषा में कुछ लिखने का प्रयास किया है अच्छा लगे तो शेयर करें .. #shayari #hindipoetry #hindishayari #urdushayari #awadhi
अवधी भाषा में कुछ लिखने का प्रयास किया है अच्छा लगे तो शेयर करें .. #Shayari #hindipoetry #hindishayari #urdushayari #Awadhi
read moreAdarsh Dwivedi
पोल खोली, कुछ न बोली, डोलि जाई, का करी, ओनकी जफड़ी मा कसत इज्जत बचाई, का करी? बूँद भै जानै न हमरी जात कै औकात जे, वहि समुंदर की लहर कै गीत गाई, का करी? फूस की मड़ई मा बनि बारूद हम पैदा भए, आग देखी तौ भभकि के बरि न जाई, का करी? छाँव की खातिर पसीना खून से सींचा किहे, झोंझ से माटा झरैं तौ मुँह नोचाई, का करी? पूत जौ पूछै बमकि के बाप से तू का किह्या, ऊ बेचारा हाथ मलि के रहि न जाई, का करी आद्या प्रसाद 'उन्मत्त' (अवधि) ©Adarsh Dwivedi अवधी ग़ज़ल
अवधी ग़ज़ल #शायरी
read moreDeepanshi Srivastava
सब दुःख आपन काटै कटिहैं , अइहै न कोय उलट हंस लीहें... औ कलयुग मा का चहत हौ भैया, हियां तो अपनेह अपनेक डसिहें... आवा काल बड़ा विषधारी , देखौ कऊन रही कऊन जारी... तुम गैरं ते का डरत हौ भैया , प्रथम तो अपनेह डुबइहैं नईया... औे जौ तुम हियां सत्य पथ चलीहौ, सब जन के तुम दुश्मन बनिहौ... तुम तजौ मूल्य सब भए पुराने , चलौ चाल जऊन सब मन भावे... ©Deepanshi Srivastava अवधी ❤️ #Flower
अवधी ❤️ #Flower
read morePeeyush Bajpai
वह हमका टुकटुक देखाये लागि अपनी अंखियन का मयांचे लागि मनु भा कि वाहिते बात करी ज्यों हम वहिके पास गयेन त्यों देखेंन वाहिका भाई बली जब लागे लाग कि अब मारि परी हम स्योचा अब घर का भागि चली.. हम पूछेंन कस हो का भाव दिहो वह कहिस पचास कै एकु किलो हम कहा सब्ज़िन मा आगि लगय बिन सब्ज़ी कउनो हर्ज़ नाहिंन घरि मा तो चाउर होइएबे करी हम स्योचा अब घर का भागि चली.. एक दिन निकरेन सहर तरफ हम सोचे पैदलु चलेक परी हम गाड़ी वाले क हाथ दिहेन रहा भला रोकिस लमरेयाटा बैठिते हमरे भरिस फर्राटा फिर रोकिस बाद कुछु दूर चलेक हम पूछा का भा का तेलु खतम उतरते हमरे धरिस तमाचा कहिस उतार सब चैन घड़ी लूटि गयेन भैया भरी दुपहरी हम स्योचा अब घर का भागि चली.. -✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो' #हास्य #अवधी #prb