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Divyanjli Verma
शीर्षक- चिडियों का गाना वो गाती है एक सुरीला गाना मुझे भी चुगने जाना है दाना सुबह उठ के चहचहाना मुझे अच्छा लगता है आसमान मे उड़ जाना वो कहती है मुझसे चू चू करके सारा फ़साना दूर कहीं जो उन्हें दिखता है बगीचा आती है बताने उस बगीचे का ठिकाना मेरा तो चिडियों से है याराना पुराना वो गाती है एक सुरीला गाना मुझे भी चुगने जाना है दाना ©Divyanjli Verma चिडियों का गाना
चिडियों का गाना #कविता
read moreShashi Bhushan Mishra
अमावस हो रात फिर दीपक जलाने का, समय हो प्रतिकूल कान्हा को बुलाने का, मन लगा गोपाल में तन हो गया गोकुल, बस यही तरक़ीब है दुनिया भुलाने का, मिला खेवनहार दरिया पार कर लूँगा, ज़िस्म में ताकत नहीं गोता लगाने का, पुराने ज़ख़्मों को बे-मतलब कुरेदो मत, जो नहीं अपना उसे फ़िर भूल जाने का, जन्म से आखिर तक संघर्ष का आलम, बांसुरी की तान पर झूला झुलाने का, ज्ञान के पानी से बुझती प्यास जन्मों की, हृदय है प्यासा उसे पानी पिलाने का, बात जिसकी समझ में है आ गई 'गुंजन', मिल गया अवसर उसे भवपार जाने का, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra #दीपक जलाने का#
रजनीश "स्वच्छंद"
तमद्वार का दीपक।। मैं तमद्वार का दीपक,रौशन कुछ हिस्सा तो कर जाऊंगा। रवि-रश्मि का तेज लिए,अमर कुछ किस्सा तो कर जाऊंगा। तू मूक रहा, कर बांधे खड़ा,निजशब्दों में तेरा हुंकार भरूंगा। कंपित से तेरे अधरों पर,बन शब्द, नेपथ्य से पुकार करूँगा। धीर है तू हीमवर सा अडिग,शोणित में धार समेटे यमुना गंगा की। प्रसार तेरा बटवृक्ष सा है,ऊंचाई, अम्बर छूती कंचनजंगा सी। त्वरित गति, असाध्य बल,भुजाओं में फड़कता, असीमित सागर अनंत। तू अनजान, हनुमान है,मैं ले लेखनी बाल्मीक, शब्दों को बना दूँ जामवंत। तू महज़ मनुज का भेष नही,राम सा शील, अल्हड़ कृष्ण सा, दधीचि का अनुयायी है। एटलस सा है कंधा तेरा,तू इस जग के उत्थान-पतन उदय-अस्त का उत्तरदायी है। तू इस कवि की धृष्टता,एक बागी, स्वजन का रखवाला है। मेरी कविता भी जिसपे नाज़ करे,तू मदमस्त, बेखौफ, एक मतवाला है। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote तमद्वार का दीपक।।।
तमद्वार का दीपक।।।
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