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Simant Sharma
मेरे जिस्म से तो "तुम दूर हो मगर" मेरी रूह के बहुत तुम पास भी हो तुम आईना हो मेरे जज़्बातों का तुम दिल का मेरे अहसास भी हो तुम चैन ओ सुकून, तुम राहत हो तुम संगीत का मोहक साज़ भी हो तुम ही साधना हो इस साधक की तुम मेरे "अनकहे अल्फ़ाज़" भी हो तुम दूर हो मगर... #दूरहोमगर #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #अनकहेअल्फ़ाज़ #सीमांत
Simant Sharma
तुम्हारी तोहमतें सारी, चलो में मान लेता हूँ, इस कशमकश को यही, अब अंजाम देता हूँ!! I quit!! 🙏🙏 Coz trust and faith are the foundation of all the relations ! 😊 And silence is also a lie when it replaces the truth !! 🙄 Whe
Simant Sharma
इस सच, झूठ, इश्क़ के इम्तिहान में, तुम पास हो गये, मैं फेल हो गया!! Coz trust and faith are the foundation of all the relations ! 😊 And silence is also a lie when it replaces the truth !! 🙄 #yqbaba #yqdidi
Simant Sharma
मैं सीमांत हूँ मैं जोड़ता हूँ सरहदों को आपस में, मुल्कों में बस प्यार ही बांटता हूँ, रोकता नहीं हवाओं को बहने से, बस नफरतें और द्वेष ही छांटता हूँ !! Challenge-169 #collabwithकोराकाग़ज़ अपने नाम का अर्थ 30 शब्दों में लिखिए :) आप अपने नाम पर कविता भी लिख सकते हैं :) अगर अर्थ ज़्यादा हैं त
Ravendra
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
पुस्तक ही मत जानिए , यह है ग्रंथ महान । पढ़कर इसको मिल रहा , सबको आज निदान । पति पत्नी के प्रेम को , दर्शाया है खूब । पढ़कर उनके कष्ट को , पलके जाती डूब ।। राम सिया के प्रेम का , मिले पूर्ण वृत्तांत । इनके जैसे प्रेम का , है न कहीं सीमांत ।। लेकर इससे ज्ञान तो , हो राहें आसान । उसका जीवन हो सफल , पढ़ ले जो इंसान ।। पुस्तक ही मत जानिए....। रखे वचन की लाज को , देखो अब रघुराथ। संग सिया को ले चले , वन में अपने साथ ।। सौप दिया फिर राज्य को , भ्रात भरत के नाम । त्याग अयोध्या जब चले , किया नही विश्राम ।। रामायण में राम का , है अंश विद्दमान सबको समझायें चलो , करवायें पहचान ।। पुस्तक ही मत जानिए ....। देख नही पाये सभी , उनका रूप विशाल । दैत्यों के संहार हित , बन जाते वह काल ।। मूरख हैं जो कर रहे , रमायण पर सवाल । जाओ बतलाओ उन्हें , खोज रहा है काल ।। श्रेष्ठ धनुर्धर थे वहीं , मगर नही अभिमान । तभी हमारे राम जी , कहलाते भगवान ।। पुस्तक ही मत जानिए .....। पुस्तक ही मत जानिए , यह है ग्रंथ महान । पढ़कर इसको मिल रहा ,सबको आज निदान ।। १०/०३/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR पुस्तक ही मत जानिए , यह है ग्रंथ महान । पढ़कर इसको मिल रहा , सबको आज निदान । पति पत्नी के प्रेम को , दर्शाया है खूब । पढ़कर उनके कष्ट को , पल
Ravendra
Aprasil mishra
... विकास सर की ग़मगीन आंखें देखकर मेरा भी हृदय पीड़ा से चीत्कार उठा, मैं अबतक ऐसे मुद्दों पर खुले तौर से इन लूप होल्स पर धर्मग्रन्थों की आलोचना
Writer1
सिर ढककर कोसती जाए खुले सिर पूजती जाए: ********************************************** अर्थात: संस्कार दिखावे में नहीं भाव में होने चाहिए । अ