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Hitesh chaturvedi
ankit saraswat
Sonu Goyal
Shubh Sharma
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
मैं जिनकी मार्फत,अदु की अदावत पे उतर आया आज वोही अदू_ए_लश्कर में खड़ा नजर आया//१ महताब_ए_पूनम की मानिंद ये किसकी सूरत मुनव्वर है, लगता है,मेरा सनम ओढ़कर ईद_ए_महताब जमी पर उतर आया//२ उसने किया था*अहद तर्के_ताल्लुक का,आज तोड़कर अपना अहद,वो फ़िर से मेरी यादों में शामो-सहर आया//३ जो लेके मज़ा पूछते हैं बाद बलात्कारे़_चित्कार,जीते कैसे होंगे, जब पेश आया हादसा उनके साथ,तब जाकर सबर आया//४ मुंसिफ ने कहा ये तो मांमला_ए_खुदकशी है लेकिन मुझे ये मामला, जज्बात_ए_कत्ल का नज़र आया//५ सोचा न था बात जिस्म की जिस्म तक रह जायेगी,कैसे उससे इश्क हुआ,न जाने कब वो मेरी रुह में उतर आया//६ उल्फत के नाम से अब मन हो गया*सेराब,के जब तक मुझे नफरत का इल्मो हुनर आया//७*मरुस्थल सुनो!शमा की दिल शिकनी करने वालो,मै वही हूं, जो करा जामिने तुम्हे लेकर *जिंदान से बाहर आया//८ shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #dilkibaat मैं जिनकी *मार्फत*अदु की*अदावत पे उतर आया,आज वोही अदू_ए_लश्कर में खड़ा नजर आया//१*वजह शत्रु*शत्रुता *महताब_ए_पूनम की मानिंद ये क
Mili Saha
चारू चंद्र की चंचल किरणें चारु चंँद्र की चंचल किरणें, स्वर्ण सी आभा निश्छल किरणें, शनै:-शनै: स्नेह स्पर्श कर वसुंधरा को, विस्तृत स्वरूप दर्शाती हैं ये स्वच्छंद किरणें। रात की चुनर से छन कर आती, तम में निखरती उज्जवल सी लगती, चहुँओर बिखेरकर स्वर्ण सी नर्म चांँदनी, कल-कल बहती सरिता के जल को है छूती। चंँद्र संग इठलाती और बलखाती, कभी शर्माती हुई वो मंद-मंद मुस्काती, स्याह अंँधेरी रात में देखकर चंँद्र की झलक, प्रीत रंग में रंग कर फूलों सी खिल-खिल जाती। कभी तरु कभी कुसुम का श्रृंगार, कभी बन ये रत्नगर्भा के गले का हार, पवन की ताल पर नृत्य मुद्रा में सुसज्जित, अपना संपूर्ण सौंदर्य यह प्रकृति में बिखेर देती। कभी ले जाए यह यादों के पार, कभी खोले है किसी के दिल का द्वार, देख चंचल किरणों की ये मनोरम चंचलता, चंद्र भी स्वप्न तरी में विराजित होकर करे विहार। लेखक के कलम की कहानी, कवियों के दिल से निकलती वाणी, चारु चंँद्र की चंचल किरणों की आगोश में, कभी कोई नज़्म तो कभी ग़ज़ल बनती सुहानी। किरणों से सजा धरा का कण-कण, देखकर ही आनंद विभोर हो जाता मन, अद्वितीय छटा झलकती चंद्र संग किरणों की, जिसे देखने को किसके व्याकुल नहीं होते नयन। ©Mili Saha चारू चंद्र की चंचल किरणें चारु चंँद्र की चंचल किरणें, स्वर्ण सी आभा निश्छल किरणें, शनै:-शनै: स्नेह स्पर्श कर वसुंधरा को,