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White दहलीज़ पर कविता" बहुत पछताए ,घर की लांघ के "दहलीज़"हम लड़कपन में, बड़ा भरोसा था जिनके वादे पे, मौसम की तरह रंग बदल गए कुछ दिन में। अनुजकुमार हेयय क्षत्रिय © # दहलीज़ पर कविता"
# दहलीज़ पर कविता"
read moreMadhusudan Shrivastava
अंग्रेजों के थे पराधीन तब तंत्र भी थे उनके अधीन । देकर वीरों ने अपनी जान स्वाधीन हुए पाए थे मान।। जय लोकतंत्र जय संविधान जय लोकतंत्र जय संविधान।। प्रबुद्ध सुबद्ध सभा बैठी एक लिखित विधान बनाने को। नव सृजित राष्ट्र में जनहित को सुख और सुशासन लाने को । नेहरू, वल्लभ भाई, कलाम, अंबेडकर ने लिखा विधान ।। जय लोकतंत्र जय संविधान जय लोकतंत्र जय संविधान।। है यह अखंड एका भी है संप्रभु भी है, समता भी है । है यह तटस्थ मत–पंथों से समरस, न्यायिक प्रभुता भी है । हैं भिन्न लोग मत भिन्न मगर समभाव है इसमें विद्यमान ।। जय लोकतंत्र जय संविधान जय लोकतंत्र जय संविधान।। ©Madhusudan Shrivastava #RepublicDay गणतंत्र दिवस
#RepublicDay गणतंत्र दिवस
read moreranjit Kumar rathour
गणतंत्र दिवस का उत्साह बचपन से आज तक लेकिन फर्क आया भाई तब शामिल होने जाता था और अब खबरें बनाने जाता हुँ इस दफा कुछ था खास अपनी तस्वीर वाली एक वॉलपेपर बनाया और अहले सुबह उन्हें भेजा जिसे मेरा इंतज़ार था हा है न ख़ास ©ranjit Kumar rathour खास गणतंत्र
खास गणतंत्र
read moreGhanshyam Ratre
अनुशासन देश को महान बनाते हैं। सभी अनुशासन का पालन करें हमारे कर्तव्य है । ©Ghanshyam Ratre गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
read moreMahesh Patel
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ©Mahesh Patel सहेली..गणतंत्र दिवस. लाला.
सहेली..गणतंत्र दिवस. लाला.
read moreShiv Narayan Saxena
Happy Republic Day ©Shiv Narayan Saxena #गणतंत्रदिवस गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं
#गणतंत्रदिवस गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं
read moreShiv Narayan Saxena
Happy Republic Day ©Shiv Narayan Saxena #गणतंत्रदिवस गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं
#गणतंत्रदिवस गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं
read moreवरुण तिवारी
सर्द रातों की हवाओं ने सताया इस तरह। मैं ठिठुरता रह गया बिस्तर कंटीले हो गए॥ बर्फ से कुछ बात करती चल रही थी ये हवाएं, फिर अचानक सायं से कम्बल के अंदर आ गई। पांव को कितना सिकोड़ूं पांव बाहर ही रहा, अवसर मिला ये फेफड़ों से जाने' कब टकरा गई॥ खाँसियां रुकती नहीं सब अंग ढीले हो गए। कपकपाती ठंड में फैशन हमारा था चरम पर कान के दरवाजों से ये वायु घुसती ही गई। सनसनाती घुस चुकी थी कुछ हवाएं इस बदन में मेरे तन की हड्डियां हर पल अकड़ती ही गई॥ पूस की इस रात सब मंजर रंगीले हो गए। कर्ण में धारण किए श्रुति यंत्र को घर की तरफ, ठंड से छुपते छुपाते गीत सुनते जा रहे थे। पेट में मेरे अचानक दर्द ने आहट दिया, साथ ही संगीत सारे सुर में सहसा बज उठे थे॥ अंततः चुपके से' अंतर्वस्त्र पीले हो गए॥ ©वरुण तिवारी #snow हास्य रचना
#snow हास्य रचना
read moreVilas Bhoir
green-leaves बंदिस्त या खोक्यामध्ये तु दिलेली आठवण अजुनही जपून ठेवली आहे... ©Vilas Bhoir #GreenLeaves मराठी हास्य विनोदी कविता राजकीय टोलेबाजी
#GreenLeaves मराठी हास्य विनोदी कविता राजकीय टोलेबाजी
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