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नवीन नव
अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा नवीन नव बीगोद फिर से महकेगा ,फिर से चहकेगा । अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा ।। लादू की कचौरी ,हिम्मत का समोसा । ओझा की जलेबी,बिहारी का पौहा ।। विष्णु जी के जामुन का भोग चढ़ेगा । अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा ।। जोधपुरी मिठाई ,दूध में है मलाई । सौड़ा सिकंजी की याद है आई ।। पानी- पूरी कुल्फी गौटा मिलेगा । अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा ।। हथौड़ों की आवाज ट्रोलों की परवाज़ । फिर से गूंजेगी ,पी -पी की आवाज ।। ग्राहकों से,फिर से यारों ,बाजार सजेगा । अपना बीगोद ,यारों फिर से दौड़ेगा ।। रखलो ख़्याल ,कोरोना जानलेवा है । फौज है इसकी ,ये ना अकेला है ।। रखलो सब्र,रहलो अंदर जीवन बचेगा । अपना बीगोद ,यारों फिर से दौड़ेगा ।। लगालो मास्क ,सेनिटाइजर करलो । बिन काम घर से, न बाहर निकलो ।। वैक्सीन लगालो कोरोना भागेगा । अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा ।। मन्दिर में घंटी ,मस्जिद में अज़ान । खेले अखाड़ा , मोहरम रमज़ान ।। मनेंगे त्योहार , कोरोना से जीतेगा । अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा ।। ©नवीन नव बीगोद
नवीन नव
अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा नवीन नव बीगोद फिर से महकेगा ,फिर से चहकेगा । अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा ।। लादू की कचौरी ,हिम्मत का समोसा । ओझा की जलेबी,बिहारी का पौहा ।। विष्णु जी के जामुन का भोग चढ़ेगा । अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा ।। जोधपुरी मिठाई ,दूध में है मलाई । सौड़ा सिकंजी की याद है आई ।। पानी- पूरी कुल्फी गौटा मिलेगा । अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा ।। हथौड़ों की आवाज ट्रोलों की परवाज़ । फिर से गूंजेगी ,पी -पी की आवाज ।। ग्राहकों से,फिर से यारों ,बाजार सजेगा । अपना बीगोद ,यारों फिर से दौड़ेगा ।। रखलो ख़्याल ,कोरोना जानलेवा है । फौज है इसकी ,ये ना अकेला है ।। रखलो सब्र,रहलो अंदर जीवन बचेगा । अपना बीगोद ,यारों फिर से दौड़ेगा ।। लगालो मास्क ,सेनिटाइजर करलो । बिन काम घर से, न बाहर निकलो ।। वैक्सीन लगालो कोरोना भागेगा । अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा ।। मन्दिर में घंटी ,मस्जिद में अज़ान । खेले अखाड़ा , मोहरम रमज़ान ।। मनेंगे त्योहार , कोरोना से जीतेगा । अपना बीगोद यारों फिर से दौड़ेगा ।। ©नवीन नव बीगोद फिर #EarthDay2021
Madness
बारिश और महोबत दोनों ही यादगार होते हे, बारिश में जिस्म भीगता हैं, और महोबत मैं आँखे । बारिश और बारिश में जिस्म
नवीन नव
गुरु बिन था अंधेरा घना नवीन "नव 'बीगोद गुरु बिन था अंधेरा घना । उनके बिन था जीवन फ़ना ।। जबसे आए जीवन में मेरे । तब से ये जीवन जीवन बना ।। मेरी ना जग में थी कोई हस्ती । लड़खड़ाती रहती थी ये कस्ती ।। दिनकर से दीप्त चंदा हूँ मैं । गुरुवर बिन थी वीरान बस्ती ।। हताशा के दलदल फँसने लगा । गुरुवर का साया साहिल बना ।। जबसे आए ,जीवन में मेरे । तब से ये जीवन जीवन बना ।। उनको करता ,शत शत नमन । उनको करता हूँ हर पल वंदन ।। मिथ्या से भरपूर समुंदर था मैं । गुरुवर ने किया दोष - मंथन ।। कच्चा घड़ा में सार्थक बना । गुरुवर की थाप से पक्का बना ।। जबसे आए ,जीवन में मेरे । तब से ये जीवन जीवन बना ।। सदा आपका यूँ ही आशीष हो । नेकी चले सदा ऊर्ध्व शीश हो ।। गुरुवर गुर को ना भूलें हम । मन में सदा ही मेरे पीस हो ।। धन्य हुआ मुझ पर साया बना । तकदीर मेरी जो शिष्य बना ।। जबसे आए ,जीवन में मेरे । तब से ये जीवन जीवन बना ।। गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं नवीन नव बीगोद
Sushil Meshram
" बारिश में तुम........." हाय....! क्या सितम ढ़ाते हो तुम सजने संवरने का मुक़ाबला हो तो, आँखों में सिर्फ़ काज़ल लगाते हो तुम और सरेआम यु शहर में, अब तो क़त्ल होने लगे जब पहली बारिश में छत पे, जो भिगने आती हो तुम ! © सुशील मेश्राम " बारिश में तुम...."
Nimesh Shukla
बारिश कुछ याद आ रहा है ये बरसात देख कर।बहकी हुई हवा भी है बरसात देखकर।मुझे आती है अब हँसी याद कर कर के वो दिन, जब दिल दिया था तुमको कई बार देख कर।नमन यादों में बारिश
BlackShadow03
गिरती हुई इन बारिश के बूंदों को अपने हाथों में समेट लो जितना पानी तुम समेट पाए, उतना याद तुम हमें करते हो, जितना पानी तुम समेट ना पाई, उतना याद तुम्हे हम करते हैं। 💕💕💕😜😜😜 ©BlackShadow03 बारिश में यादें
Author Harsh Ranjan
कितनी खूबसूरती है एक योगी के योग में, कितनी मिठास है मंदिरों में चढ़े भोग में, कितना गहरा रंग है भगवा, किताबों में कौन सा नशा है, कलम कैसी दवा है? कैलाश से कन्या कुमारी, गोमुख से लेकर बंगाल की खाड़ी, मंगल ग्रह से महामारी, कलम से लेकर बल्ला, वंदे मातरम से राम लल्ला, कितना कुछ था करने को, कितना था जीने मरने को! वो उम्र जब रोटी थाली में ही दिखती है, मुझे आज भी सड़क पर गर्दन पकड़कर घसीटती है। लड़के-लड़कियों को जब तक पता नहीं होता कि रोटी थाली में पहुंचने के पहले क्या हुआ करती है, वो तब तक आगे बढ़ते हैं वरना वो अपने पिता या माता के पीछे चुपचाप खड़े हो जाते हैं। बारिश में 2
Author Harsh Ranjan
कितनी खूबसूरती है एक योगी के योग में, कितनी मिठास है मंदिरों में चढ़े भोग में, कितना गहरा रंग है भगवा, किताबों में कौन सा नशा है, कलम कैसी दवा है? कैलाश से कन्या कुमारी, गोमुख से लेकर बंगाल की खाड़ी, मंगल ग्रह से महामारी, कलम से लेकर बल्ला, वंदे मातरम से राम लल्ला, कितना कुछ था करने को, कितना था जीने मरने को! वो उम्र जब रोटी थाली में ही दिखती है, मुझे आज भी सड़क पर गर्दन पकड़कर घसीटती है। लड़के-लड़कियों को जब तक पता नहीं होता कि रोटी थाली में पहुंचने के पहले क्या हुआ करती है, वो तब तक आगे बढ़ते हैं वरना वो अपने पिता या माता के पीछे चुपचाप खड़े हो जाते हैं। बारिश में 2