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Vijay Anand Mehra
शै'र:- कोशिश बहुत मैंने करीं थी उसे साँसे दी मगर। सिगरेट की तक़दीर में यार मर जाना था लिखा।। ( विजय आनंद "माहिर" ) सिगरेट की तक़दीर:-
Gopal Lal Bunker
( लापरवाही की सिगरेट) धुआं उठ रहा था नित दिन मैं कुछ खो रहा था जीवन बिगड़ने की राह पर था चाहत थी कुछ करने की पर मैं भटक रहा था, अरमान भी थे,कुछ करने का जज्बा भी था कभी कभी ध्यान से पढ़ता भी था आती थी जब परीक्षा थोड़ा सा पढ़ता था, और थोड़ी सी करता था इधर उधर परीक्षा की घड़ी निकल जाती थी ऐसे ही मेरी पार पड़ जाती थी, परीक्षाएं देते रहा पास होता रहा कहने को तो अब शिक्षित बेरोजगार हूं मिल जाए बेरोजगारी भत्ता अब चाहता हूं और मिल भी जाएगा पर कब तक, हमेशा तो नहीं| फिर एक दिन सावचेत होना ही पड़ेगा जीवन में कुछ करना ही पड़ेगा, या तो तू कुछ बन जा या फिर वक्त, तुझे कुछ बना देगा| इसलिए कहता हूं वक्त है अभी ,बुझा और दूरफेंक, "लापरवाही की सिगरेट" जो तुमने मुंह में लगा रखी है, 'कश' जिसके अब तक तू लेता रहा लगा लगा कर जोर जीवन को जलाता रहा, पर अब बुझा इसको,अंत कर लापरवाहीयो का, कर पूरे मन से जो तू अब करना चाहता है, नित्य प्रयास और मेहनत क्या नहीं बदलते बदला है सबको और बदला है इतिहास, तुझको भी बदल देंगे जीवन में खुशियों के रंग भर देंगे, उठ खड़ा हो बन जा योद्धा मार लापरवाही को और बन कर्म योद्धा, "खुद को कुछ बनाने"| लापरवाही की सिगरेट
Nilam Jat
मैने तुम्हें पकड़ा ही कब था। जो छोड़ने की जरूरत पढ़े।। ©Nilam Jat #छोड़ने की जरूरत पढ़े
Ek villain
कोविड-19 री लहरा में एक चीज खास रही वह है टेलीविजन चैनलों पर सरकारी अस्पताल और संस्थाओं के डॉक्टरों तथा वैज्ञानिक ज्ञान बांटते नजर आए उसके पीछे की वजह स्वास्थ्य मंत्रालय की शक्ति रही मंत्रालय का मानना है कि कोविड-19 के दौरान दिन भर दिन बड़े सरकारी अस्पतालों के कुछ डॉक्टर और वैज्ञानिकों की तरफ से टेलीविजन चैनलों और अलग-अलग विचार रखे जाते हैं जिससे लोगों के बीच को भी लेकर भ्रम फैलता है और उनके बीच एक राय नहीं बन पाती कोविड-19 तो आलम यह था कि बड़े डॉक्टर और वैज्ञानिकों को यह न्यूज़ चैनल वालों की लाइन लगी रहती थी तीसरी लहर की शुरुआत में भी कुछ ऐसा ही माहौल बन रहा था लेकिन मंत्री जी की शक्ति एक दिन ऐसी हुई कि एक बड़े सरकारी अस्पताल के सबसे बड़े डॉक्टर को एक चैनल पर चर्चा बीच में ही छोड़कर उठना पड़ा इसके बाद से तो सरकारी डॉक्टर और वैज्ञानिकों के लिए चैनलों पर चेहरा दिखाना आसान नहीं ©Ek villain #डिबेट छोड़ने की मजबूरी #Thoughts
कवि शशांक शेखर त्रिपाठी
तेरे दिल में मेरी जगह एक सिगरेट की तरह थीं पहले सुलगायी, फिर अपने रूह तक कश खींचा और अंत में पैरो से कुचल कर बुझा दिया। 😭😭😭😭 एक सिगरेट की तरह
Amit chauhan
सिगरेट ने भी क्या क़िस्मत पायी है सुना है महबूब ने उसे होंठो से लगाई है हम तो तड़पते हैं ऐसी क़िस्मत के लिए कम्बख़्त ने बिना चाहे ऐसी क़िस्मत पायी है सिगरेट की क़िस्मत....🚬🚬
anurag saxena
यह ज़िन्दगी भी सिगरेट की तरह होती जा रही हैं समझ नही आता मैं इसे पी रहा हूँ या ये मुझे पी रही है एक कश लेता हूँ ये और कम हो जाती है धुँआ उड़ता है पर पता नही समय का है या आत्मा का कभी चिंगारी तेज होती है तो कभी मद्धम पता नही सिगरेट बुझ रही है या ज़िन्दगी राख पड़ी है चारों ओर जैसे जिंदगी ने सपनें उतार फेंके हो हाथ मे बची हुई सिगरेट का ठूठ बचा है जैसे प्राण पखेरू के बाद लाश पड़ी हो। ………………………..अनुराग सक्सेना  ये जिंदगी भी सिगरेट की----!