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Rameshkumar Mehra Mehra
पुरुष जितना मर्जी चाहे.......... खुद को कठोर बना ले......! स्त्री की एक मुस्कुराहट के आगे...!! चारों खाने चित हो ही जाता है...💕 ©Rameshkumar Mehra Mehra # पुरुष जितना मर्जी चाहे,खुद को कठोर बना ले,स्त्री की एक मुस्कुराहट के आगे,चारों खाने चित हो ही जाता है...💕
BROKENBOY
White तू अपनी दुनिया बसा ले मैं नाराज नही हूं, जुल्फों में गजरा सजा ले मैं नाराज नही हूँ, हम जुगनू बनकर सुबह तलक बुझ जाएंगे, रक़ीब को भंवरा बना ले मैं नाराज नही हूँ, मैंने हर दम तेरी खुशियों की दुआएँ माँगी, तू अपनी बारात बुला ले मैं नाराज नही हूं, तेरा संसार आबाद रहेगा मैं आबाद रहूंगा, मेरी धड़कनों की दुआ ले मैं नाराज नही हूँ, ग़ैर की बाहें तुझे सुकून दे तू सुकून से रहे, जा थोड़ा सुकून कमा ले मैं नाराज नही हूँ, करता हूँ हँसते हँसते विदा तुझको जिंदगी से, डोली वाले डोली उठा ले मैं नाराज नही हूँ, खफ़ा नही मैं हरगिज़ तेरी बेवफाई से, घूंघट आखरी बार हटा ले मैं नाराज नही हूँ। ©BROKENBOY #sad_quotes तू अपनी दुनिया बसा ले मैं नाराज नही हूं, जुल्फों में गजरा सजा ले मैं नाराज नही हूँ, हम जुगनू बनकर सुबह तलक बुझ जाएंगे, रक़ीब क
Kunal Sharma
@Amarjeet Kumar shaksena
हमे तो हमारे अपने ने कहा की की हुनर नही है तुम मे अब गैरो से कहलवाया काफी हुनहार हूं मैं कितने गैर जिमदार नाराय से दिल तोड़ा था मेरा अब मेरे कामयाबी के जिमदार तुम्हे हि हों...!! Amar shaksena ©@Amarjeet Kumar shaksena पानी को कसकर पकोरोगे तो वो हाथ से छूट जायेगा उसे बहने दो वो अपना रास्ता खुद बना लेगा..!
༒•[̲̅a̲̅]][̲̅m̲̅]a̲̅]]ʀ[̲̅•༒
writer....Nishu...
Autumn मुस्कराहट झूठी सही मगर चहेरे को सजा देती हैं मोहब्बत अगर सच्ची है तो जिन्दगी जन्नत वरना जीते जी जहन्नुम बना देती हैं दो पल की हो या अज़ल की खुदा की इबादत हर इंसान को नायाब बना देती हैं सुर्ख़ रू की चाहत हो अगर दिलों जान से तो सारी कायनात इसे आपसे मिला देती हैं ©writer....Nishu... #बना देना
Ravendra
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल । छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।। लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल । आज तुम्हारी चाल का , पूरा रखूँ खयाल ।। आये कितनी दूर से , देखो है ये ग्वाल । हे राधा छू लेन दो , यही नन्द के लाल ।। हर कोई मोहन बना , लेकर आज गुलाल । मैं कोई नादान हूँ , सब समझूँ मैं चाल ।। भर पिचकारी मारते , हम भी तुझे गुलाल । तुम बिन तो अपनी यहाँ , रहती आँखें लाल ।। रिश्ता :- रिश्ता अपना भी यहाँ , देखो एक मिसाल । छुपा किसी से है नही , हम दोनो का हाल ।। रिश्ते की बुनियाद है , अटल हमारी प्रीति । क्या तोड़ेगा जग इसे , जिसकी उलटी रीति ।। रिश्ते में हम आप हैं , पति पत्नी का रूप । मातु-पिता को मानते , हैं हम अपने भूप ।। रिश्तों की बगिया खिली , तनय उसी के फूल । लेकिन उनमें आज कुछ , बनकर चुभते शूल ।। एक रंग है रक्त का , जीव जन्तु इंसान । जिनका रिश्ता ये जगत , जोड़ गया भगवान ।। रिश्ता छोटा हो गया , पति पत्नी आधार । मातु-पिता बैरी बने , साला है परिवार ।। ०७/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल । छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।। लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल । आज तुम्हारी चाल का