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जज्बात
अब ना पहले सी बातें हैं बोलो तो लब थर थराते हैं राज़ ये दिल का ना हो बयां अब ना पहले सी बातें हैं बोलो तो लब थर थराते हैं राज़ ये दिल का ना हो बयां
rajesh mishra
कल रात ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी लब थराथरा रहे थे मगर बात हो गयी https://ansunibaate.com/post/shayari/sauda-mohammad-rafi-shayari-522
Devanand Jadhav
चारोळी २१/११... पहाटेचा गारवा सोबतीला रानवारा घालवतो हुडहुडी शेकोटीचा निखारा ✍🏻© •देवानंद जाधव• jdevad@gmail.com 9892800137 ©Devanand Jadhav पहाटे पहाटे भासणारी थंडी, अन् त्यात सोबतीला रानवारा असेल तर; अंगात चांगलीच हुडहुडी भरते. दातावर दात आपटतात, पूर्ण अंगांग त्या थंडीने थरारून
Farhan Raza Khan
अब मिरी हसरत मिटने को है तुम बेख़बर हो गए मुझसे हाथ थर-थराना लगे कलम डगमगाने लगी शायद ग़में-यार तारी हो गया मुझपे।। Ab Miri hasrat mitne ko hai Tum bekhabar ho Gaye mujhse Haath thar-tharane lage kalam dagmagane lagi Shayad Gam-e-yaar tari ho Gaya mujhpe... अब मिरी हसरत मिटने को है तुम बेख़बर हो गए मुझसे हाथ थर-थराना लगे कलम डगमगाने लगी शायद ग़में-यार तारी हो गया मुझपे।। Ab Miri hasrat mitne ko
sandy
स्पर्श तुझा होता झाले मजसी फितूर, मी झाले मजसी फितूर सर बहरली, ओठी थरारली; लाजूनी काया चूर, झाले मजसी फितूर, मी झाले मजसी फितूर भान दंगले,
Sangeeta Kalbhor
श्वासांचा श्वासांना पडता विळखा.. कोणी सांगितले तुला मला काही वाटत नाही मन पेटलेले असल्यावर तन मुळी पेटत नाही हवा असतो मला नित्य सोहळा तनामनाचा थरार अनुभवायचा असतो प्रत्येक क्षणाचा लपेटून घ्यायचे असते तुला उबदार श्वासात नको असतो थोडाही दुरावा प्रणयी सुवासात विळख्यात तुझ्या अखंड डुंबून माळावा सुगंध भिडता नजरेला नजर यौवनाचा भलताच गंध कडाडावी शलाका रे तुझ्या हळुवार स्पर्शाने मी माळावा अवघा वसंत किती किती हर्षाने श्वासांचा श्वासांना पडता विळखा मंत्रमुग्ध व्हावे मला जे जे सांगायचेय ते न सांगता तुला कळावे सरसावून यावास तू मला घेण्या मिठीत सखया सामावता तुझ्या बाहूत क्षणही नको जावा वाया...... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor श्वासांचा श्वासांना पडता विळखा.. कोणी सांगितले तुला मला काही वाटत नाही मन पेटलेले असल्यावर तन मुळी पेटत नाही हवा असतो मला नित्य सोहळा तनाम
ittu Sa
मौसम रुसवा हैं तुमसे, किन ख्यालों में खोई हुई हो। देखो बादलों ने मुँह फुलाया हैं, हवाओं ने रुख घुमा हैं। धूल उड़ी हैं, नाराजगी उनकी भी.. कुछ कम नहीं, रोने लगा बादल... कहने लगा.. मेरी कोई सुना नहीं। कड़-कड़ा उठी बिजली, थर-थरा उठी धरती। टपकने लगे आँसू , बादल कुछ यूँ रोया । डूब गया शहर का शहर, पर आँसू हुए ना कुछ कम। देखो.. इत्तु-सी बात हमारी भी मान लो, नाराज़गी इनकी भी जाइज़ हैं, सुनो... सुला की पहल तुम्हें ही करनी होगी । _इत्तु सा इत्तु सा पैग़ाम नाराज़गी के नाम। मौसम रुसवा हैं तुमसे, किन ख्यालों में खोई हुए हो। देखो बादलों ने मुँह फुलाया हैं, हवाओं ने रुख घुमा हैं। धू
Naresh Chandra
प्रेम हो सबके हृदय मे द्वेष क्लेष न रहे मन मे प्रीत की ज्योति बुझी है मन फंसा है लालसा मे प्रेम की ज्योति जलाकर बस यही उपकार कर दो प्रेम की देवी धरा पर प्रेय की बरसात कर दो। कर मे लिए है पुष्प अपने प्रेम का इजहार करते वासना के हो वशीभूत झूठा ही प्रस्ताव रखते भर दो हृदय मे स्वच्छता इतना सा उपकार कर दो प्रेम की देवी थरा पर प्रेम की बरसात कर दो। अंधकार मे फंसा, मानव सदा दुर्व्यवहार करता प्यार की देकर तिलांजलि नित नये, नये जाल बुनता भाव मन के स्वच्छ हो ऐसा ही तुम वरदान दे दो प्रेम की देवी धरा पर प्रेम की बरसात कर दो। ©Naresh Chandra प्रेम हो सबके हृदय मे द्वेष क्लेष न रहे मन मे प्रीत की ज्योति बुझी है मन फंसा है लालसा मे प्रेम की ज्योति जलाकर बस यही उपकार कर दो प्रेम की