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DHAKAD HAI HARYANA
Swatantra Yadav
वो कमरे में बैठा आग सुलगाता था लफ़्ज़ों से बाहर किसी का दम घुट गया,किसी का जिस्म जल गया इसलिए कलम हर लम्हा गवाही देगी स्वतन्त्र जो भी लिख ईमान से लिख इत्मीनान से लिख आप सभी को अंग्रेजी नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं, extualy beleted Happy new year दो तीन इंतजार किया था कि लोग नया साल इत्ती धूमधाम स
स्वतन्त्र यादव
वो कमरे में बैठा आग सुलगाता था लफ़्ज़ों से बाहर किसी का दम घुट गया,किसी का जिस्म जल गया इसलिए कलम हर लम्हा गवाही देगी स्वतन्त्र जो भी लिख ईमान से लिख इत्मीनान से लिख आप सभी को अंग्रेजी नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं, extualy beleted Happy new year दो तीन इंतजार किया था कि लोग नया साल इत्ती धूमधाम स
Afzal Rana
तेरा हमारे लिए बदलना लाजमी था। हम इसे वक्त की गलती नही बताते। क्यू की एक अजीब से घुटन तुझे मेरे साथ होती थी। तेरे दिल का सुकून तेरी आंखों की ठंडक कोई और था। तेरे दिल का सुकू तेरी आंखों की वो ठंडक। कोई और था। जिस में तेरी जान बस्ती थी। हम तो सिर्फ दिल बहलाने का सामन थे। आपकी उसमे और उसमे आपकी जान बस्ती थी। कभी हम भी उस महफिल की शाम हुआ करतें थे। कभी हम भी उस महफिल की शाम हुआ करते थे। जिस को आज किसी और के नाम कर दी। आज उसी महफिल को हमने सरेआम नीलाम कर दी। सरेआम नीलाम कर दी। अफजल चौधरी@ ©Afzal Rana अफजल चौधरी #City दादरी ग्रेटर नोएडा
Afzal Rana
हम भी अपना दिल किसी से लगाए हुए थे। और दिन प्रतिदिन उस दिल को ये सपना दिखाए हुए थे। किया पता था। ऐसा भी होता है। इस बे रंग दुनिया में । जिसको हम अपना कहते थे। वो तो पहले से ही कही और दिल को लगाए हुए थे।। ©Arsh saifi अफजल चौधरी #City दादरी नोएडा
Afzal Rana
☺️☺️☺️ अब किया लिखूं तेरी तारीफ में तू वो था जो हमे खुद से ज्यादा पसंद था। हम तेरे न हो सके तो किया हुआ तू भी तो हमारा न हो सका।। ©Arsh saifi #दादरी ग्रेटर नोएडा
JASBIR BOXER
Mohd Akhtar Razaa
अब फ़क़त शोर मचाने से नहीं कुछ होगा सिर्फ़ होठों को हिलाने से नहीं कुछ होगा...। ज़िन्दगी के लिए बेमौत ही मरते क्यों हो अहले इमां हो तो शैतान से डरते क्यों हो..? तुम भी महफूज़ कहाँ अपने ठिकाने पे हो बादे अख़लाक तुम्ही लोग निशाने पे हो...। सारे ग़म सारे गिले शिकवे भुला के उट्ठो दुश्मनी जो भी है आपस में भुला के उट्ठो...। अब अगर एक न हो पाए तो मिट जाओगे ख़ुश्क पत्त्तों की तरह तुम भी बिखर जाओगे...। खुद को पहचानो की तुम लोग वफ़ा वाले हो मुस्तफ़ा वाले हो मोमिन हो खुदा वाले हो...। कुफ्र दम तोड़ दे टूटी हुई शमशीर के साथ तुम निकल आओ अगर नारे तकबीर के साथ...। अपने इस्लाम की तारीख उलट कर देखो अपना गुज़रा हुआ हर दौर पलट कर देखो...। तुम पहाड़ों का जिगर चाक किया करते थे तुम तो दरयाओं का रूख मोड़ दिया करते थे...। तुमने खैबर को उखाड़ा था तुम्हें याद नहीं तुमने बातिल को पिछाड़ा था तुम्हें याद नहीं..? फिरते रहते थे शबो रोज़ बियाबानो में ज़िन्दगी काट दिया करते थे मैदानों में...। रह के महलों में हर आयते हक़ भूल गए ऐशो इशरत में पयंबर का सबक़ भूल गए..? अमने आलम के अमीं ज़ुल्म की बदली छाई ख़्वाब से जागो ये दादरी से अवाज़ आई...। ठन्डे कमरे हंसी महलों से निकल कर आओ फिर से तपते हुए सहराओं में चल कर आओ...। लेके इस्लाम के लश्कर की हर एक खूबी उठो अपने सीने में लिए जज़्बाए ज़ुमी उठो...। राहे हक़ में बढ़ो सामान सफ़र का बांधो ताज़ ठोकर पे रखो सर पे अमामा बांधो...। तुम जो चाहो तो जमाने को हिला सकते हो फ़तह की एक नयी तारीख़ बना सकते हो...। खुद को पहचानों तो सब अब भी संवर सकता है दुश्मने दीं का शीराज़ा बिखर सकता है...। हक़ परस्तों के फ़साने में कहीं मात नहीं तुमसे टकराए "जौहर!" ज़माने की ये औक़ात नहीं...। जौहर कानपुरी साहब अब फ़क़त शोर मचाने से नहीं कुछ होगा सिर्फ़ होठों को हिलाने से नहीं कुछ होगा...। ज़िन्दगी के लिए बेमौत ही मरते क्यों हो अहले इमां हो तो शैता