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Bhakti Kathayen
Bhakti Kathayen
Vinod Mishra
KP EDUCATION HD
KP NEWS HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for the ©KP NEWS HD इस पर्व का संबंध शिव जी से है और 'हर' शिव जी का नाम हैं इसलिए हरतालिका तीज अधिक उपयुक्त है. महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखने का संकल्प लेती ह
अज्ञात
जय सियाराम 🙏🙏 ©Rakesh Kumar Soni भाग-2 नेति नेति सब करत बड़ाई कहत सुधा,सुधि कर्ण में जाई..!!21!! निंदक जन भी सहज लजावें परहित काज करत जब पावें..!!22!! नाम रूप सम कर्म प्र
AB
"ओ दूर के भइआ " भैया, यूँ ही आपसे मिलना हो गया था अचानक से अब तो ऐसा महसूस होता है जैसे पता नहीं कितनी गहरा रिश्ता हो हमारा, आपके स्नेह और प्रेम को पाकर ऐ
Vikas Sharma Shivaaya'
सिमरन मतलब जाप-प्रभु का निरंतर स्मरण है-अधिक सिमरन से शरीर शब्दमय हो जाता है, राम - नाम का सिमरन रग- रग में बस जाता है -क्रोध और जितने दुर्गुण हैं, वे अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं ..., जो शुभ अंदर से जागता है, वह ठहरने वाली चीज़ है-बाहर की बनावट नहीं रहती,अंदर यदि नाम बस जाए तो बाहर आप प्रसन्नता आ जाती है..., ख़ाली समय हर मनुष्य के पास होता है- जो चाहता है कि मेरा जीवन अच्छा हो , तो वह ख़ूब सिमरन करे ..., सिमरन घबराहट भी दूर करता है- मनुष्य का मानस बल भी बढ़ाता है-सिमरन करने वाला बहुत निडर हो जाता है,पर लाभ तो भावना सहित सिमरन करने से है..., रात को नींद न आना-स्वप्न अधिक आना आदि के सब काँटे सिमरन करने वाले के दूर हो जाते हैं-ध्यान में भी बहुत सहायता मिलती है, भावना सहित ख़ूब सिमरन करते रहना चाहिए ...! विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 742 से 753 नाम 742 विषमः जिनके समान कोई नहीं है 743 शून्यः जो समस्त विशेषों से रहित होने के कारण शून्य के समान हैं 744 घृताशी जिनकी आशिष घृत यानी विगलित हैं 745 अचलः जो किसी भी तरह से विचलित नहीं होते 746 चलः जो वायुरूप से चलते हैं 747 अमानी जिन्हे अनात्म वस्तुओं में आत्माभिमान नहीं है 748 मानदः जो भक्तों को आदर मान देते हैं 749 मान्यः जो सबके माननीय पूजनीय हैं 750 लोकस्वामी चौदहों लोकों के स्वामी हैं 751 त्रिलोकधृक् तीनों लोकों को धारण करने वाले हैं 752 सुमेधा जिनकी मेधा अर्थात प्रज्ञा सुन्दर है 753 मेधजः मेध अर्थात यज्ञ में उत्पन्न होने वाले हैं.. 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' सिमरन मतलब जाप-प्रभु का निरंतर स्मरण है-अधिक सिमरन से शरीर शब्दमय हो जाता है, राम - नाम का सिमरन रग- रग में बस जाता है -क्रोध और जितने दुर्ग
vasundhara pandey
श्री गजानन हिँय धरौं, सुमिरूँ शारदा माय। यह पाती अति गोप है, बांचियो ह्रदय लगाय।। वीरन मेरे पहिचानियो ,यामेंही प्रीति अपार । केहू दिन राखी ना मिले दूजे घर सम्हारात।। जानियो ना बंधन सूत को, एतनोही संदेस रखो सम्हारि ।। सखा तुम्हहिं हौं का कहउँ, तू दीपक हौं छाँह। जिम जिम ज्योति लौ लसे, जिमि तम तल गेहराहि।। " मैं परायी कब हुई" जियत राम को नाम ल्यूँ, मरत राम के धाम। जब लौं ये जीवन चले राखूँ दया धरम को मान।। कशी में विश्वनाथ बसें, द्वारे नंदी सं