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Matangi Upadhyay( चिंका )
तुमने खबर ही कहाँ ली मेरी मेरे साथ रहते हुए भी बस मान लिया कि ठीक ही होगी, तुमने पूछा ही कहाँ कुछ मुझसे बस मेरी खामोशी को समझ लिया की मेरी हाँ ही होगी, मैं जरूरी ही कहाँ थी उतनी जितना मैंने खुद को तुम्हारी जिंदगी में समझ लिया, मैंने तो बस सोच लिया की मैं तुम्हारे लिए कुछ खास होऊँगी पर मैं स्वीकार ही कहाँ पायी कुछ सच बस पाले रही वहम की खुशी ऐसी ही होती होगी, ये जो मानने और होने के बीच का फर्क होता है न उसे स्वीकारने में एक उम्र साथ गुजार देते है दो लोग और फिर पता ही नहीं चलता की कब एक दूसरे की आदत बन गए..! ©Matangi Upadhyay( चिंका ) आदत बन गए हो तुम 🤔 #matangiupadhyay #thought #Life #Love
आदत बन गए हो तुम 🤔 #matangiupadhyay #thought Life Love
read moreRameshkumar Mehra Mehra
खुद से बात करो................ खुद को पहचानों....! दुनियां से पहले...!! खुद की अहमियत जानों.... ©Rameshkumar Mehra Mehra # खुद से बात करो,खुद को पहचानों,दुनिया से पहले,खुद की अहमियत जानो....
# खुद से बात करो,खुद को पहचानों,दुनिया से पहले,खुद की अहमियत जानो....
read morePoet Maddy
जब से उसकी मोहब्बत के हम गुलाम हो गए हैं, अपने शहर में हम काफ़ी ज़्यादा बदनाम हो गए हैं......... जब से हमने शुरू किया महबूब पर ग़ज़ल लिखना, शायरों की बस्तियों में महंगे हमारे कलाम हो गए हैं........ ©Poet Maddy जब से उसकी मोहब्बत के हम गुलाम हो गए हैं, अपने शहर में हम काफ़ी ज़्यादा बदनाम हो गए हैं......... #Slave#Love#Infamous#Town#Write#Gazal#Word#Ex
नवनीत ठाकुर
पहाड़ों से निकली एक धारा खास, सपनों से भरी, एक नई तलाश। पत्थरों से टकराई, राह बनाई, हर दर्द को हँसी में समेट लाई।। हर ठोकर को उसने गले लगाया, रुकना उसकी किस्मत में नहीं था। दर्द से उसने अपना राग बनाया, सच में, वो कभी थमा नहीं था।। जब सागर से मिली, वो हर्षित हुई, उसकी लहरों में हर पीड़ा समा गई।। सागर ने उसे अपनी बाहों में समेटा, उसकी हर बूंद में जीवन का सन्देश देखा। नदी ने कहा, "मैं खुद को समर्पित करती हूँ, पर हर बूंद से तुझे अमर कर देती हूँ।। फ़ना होकर भी, वो अमर हो गई, सागर के आँचल में हर याद बस गई। ©नवनीत ठाकुर फना हो कर भी अमर हो गए
फना हो कर भी अमर हो गए
read moreनवनीत ठाकुर
वो शौक, वो जोश, वो किस्से पुराने, सब दब गए हैं वक्त के तहखाने में। अब तो जाम भी लगता है बेअसर सा, ना वो तासीर है, ना वो दीवाने में। मस्ती थी कभी खुद को भुलाने में, अब ग़म छुपते हैं हंसने के बहाने में। खुशबू थी कभी हर बहार के तराने में, अब वो यादें भी उलझीं हैं अफसाने में। जिंदगी के रंग अब स्याह लगने लगे, जैसे खुशियां कहीं खो गईं इस ज़माने में। सवाल हजारों हैं दिल के आईने में, बस धुंधली तस्वीर सी फसाने में। गुज़री हुई बातों की सदा आती है, जैसे कोई पुकार हो वीराने में। जो मिल ना सके, वो याद बहुत आते हैं, ना जाने क्या जादू है बेगाने में। ©नवनीत ठाकुर ना क्या जादू है बेगाने में
ना क्या जादू है बेगाने में
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