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Vikas Sharma Shivaaya'
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:। ” ॐ क्रीं क्रीं कालभैरवाय फट “ “मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ-मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ? कहा करौं इहि के मारें खेलन हौं नहि जात-पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात? गोरे नन्द जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात-चुटकी दै-दै ग्वाल नचावत हँसत-सबै मुसकात। तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुँ न खीझै-मोहन मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै। सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत-सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत॥ “ इस दोहे में, श्रीकृष्ण ने अपनी माँ यशोदा से शिकायत की कि उनके बड़े भाई बलराम उन्हें बहुत चिढ़ाते हैं। वे अपनी मां से कहते हैं कि आपने मुझे पैसे देकर खरीदा है, मैंने जन्म नहीं दिया है। इसलिए मैं बलराम के साथ खेलने नहीं जाऊंगा। बलराम बार-बार श्री कृष्ण से पूछते हैं कि आपके असली माता-पिता कौन हैं? वह मुझे बताता है कि नंद बाबा और मैया यशोदा गोरे हैं लेकिन मैं काला कैसे हूं? वह बार-बार नाचता है। यह सुनकर सभी चरवाहे भी हंस पड़े। 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:। ” ॐ क्रीं क्रीं कालभैरवाय फट “ “मैया मोहि दाऊ बहुत
Anuradha Priyadarshini
श्याम सलोने, हिय में रहते हैं। दरस बिना, आँखें तरसत हैं। भक्ति नाथ दो, अपने चरण की। चरण धरूं, मैं अपने नाथ की। प्रभु शरण, अपने धर लेना। मुक्ति का वर, मुझको तू दे देना। धर्म-कर्म का, मरम नहीं जानूँ। तू अगोचर, बस इतना जानूँ। लो प्रभु आयी,विकल हृदय है। भव बाधा से, भय अब नहीं है। सारथी बने, जो कृष्ण मुरारी है। जो तू संग,हर जय मेरी है। मुरली बजा,मन को बहला दो। सुप्त प्राण में,नव जागृति ला दो। भटका मैं हूँ,राह मुझे बता दो। वृष्टि दया की,प्रभु अब कर दो। ©Anuradha Priyadarshini मेरे कान्ह
Bharti 111
प्रेम के वश में तो हमेशा से रहे है भगवान तभी तो मां यशोदा के प्रेम में एक हाथ की रस्सी में बंध गए मोहन और दुर्योधन के अहंकार के कारण उतनी लम्बी जंजीर भी ना बांध सकी माधव को Radhe Radhe 🙏 अल्फाज दिल से.... ❤️ ©Bharti Rajpoot #Love मेरे कान्ह 🙏
SHIVAM SINGH TOMAR
हम तेरे ही जहांन में आए हैं मुसाफिर की तरह कुछ पल साथ, रहने का मौका दे दे। मरी मंजिल है तू, मेरा ठिकाना है तू, तुझे छोड़कर हम जाएंगे कहाँ। ©Shivam Tomar कान्ह के शहर में हैं, हम सब
Anamika
ममता की छांव में आये दोनों माखनचोर करके हल्ला, एको है बलभद्र , तो दूजो ठहरा छलिया लल्ला #माखनचोर #बलभद्र#छलिया #राधेराधे 🙏🙏 #शुभरात्रि #योरकोटभक्ति #तूलिका
Abhishek upadhyay abhi
Ashay Choudhary
मेरे शहर के बीच एक नदी बहती है जब भी शहर के दिल को जाओ, हर मोड़ पर मिलती है नब्ज़ है, कोई छू ले तो हर दर्द कहती है बहता है जो कालिख बन कर पानी, उसे अपने लहू का रंग कहती है दिल से चली थी, फिर दिल तक आने को अधूरे रास्ते पर रुकने की निशानी देती है मेरे शहर में एक नदी बहती है . . मैं हैरान हूं ये नदी देख कर हर हाल में बहने के जज्बे को देखकर उस कालिख से सने इसके किनारे देख कर आज शहर हुआ तो समझा हूं तुम तो हमेशा मुझमें बहती हो मेरी हर करतूत का कालिख धोती हो तुम नदी हो, मेरे अंदर बहती हो जो तुम दिल तक आ गई तो कयामत है तुम सब समझती हो, आसपास से निकलती हो तुम नदी हो, मेरे अंदर बहती हो.. मेरे शहर के बीच में एक नदी बेहती है जिसका नाम है कान्ह, अभी कुछ दिनों पहले हमारे शहर की महापौर श्रीमती मालिनी गौड़ जी को कान्ह के स्वच्छ स्व
Rutuja Dorwat
Vartikaofpoeticera
कृष्ण छटा श्यामल तन संग श्याम सलोने किलकय कान्ह अंगन के कोने। कानन कुण्डल, कटि करधन डारी सकल प्रेम नंद यशोमति वारी। नंद का लल्ला, बड़ा खिझावे, मटक मटक मोहन, मोहि रिझावे। ज्यों नीर भरण यमुना तट जाऊं, बीच राह श्याम संग ऊधौ पाऊं। कंकड़ मार, सखी गगरी तोड़े, चुरावै माखन, मोरी मटकी फोड़े। यशोमती ज्यों क्रोधित हो आवे, बांध ओखली कान्ह को डरावे। मैया अब ना शरारत करूं कोई, खोलो बंधन पीर सही ना जावे। वर्तिका ©Preeti Vishwakarma Vartika कृष्ण छटा श्यामल तन संग श्याम सलोने किलकय कान्ह अंगन के कोने। कानन कुण्डल, कटि करधन डारी सकल प्रेम नंद यशोमति वारी।