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The Kane
White मोबाइल पर पढ़ते बच्चे ऐसे आगे बढ़ते बच्चे बिना परीक्षा अगली कक्षा घर बैठे ही चढ़ते बच्चे बिना संग मित्रों में खेले नई जिंदगी गढ़ते बच्चे खोया बचपन, दोष समूचा कोरोना पर मढ़ते बच्चे ©The Kane #poem
Arora PR
White अपनी मुफलिसी क़ो छुपाने के लिए मुझे बहुत कुछ करना पड़ता है मसलन फ़टी पेंट में पैबंद और जेब में फटे हुऐ रुलाल. पर खुशबु छिड़क कर चार सभ्य लोगो के बींच जाना पड़ता है ©Arora PR muflisi
ishant Thakur
White ह्बायों के रुख से लगता है कि रुखसत हो जाएगी बरसात बेदर्द समां बदलेगा और आँखों से थम जाएगी बरसात . अब जब थम गयी हैं बरसात तो किसान तरसा पानी को बो वैठा हैं इसी आस मे कि अब कब आएगी बरसात . दिल की बगिया को इस मोसम से कोई नहीं रही आस आजाओ तुम इस बे रूखे मोसम में बन के बरसात . चांदनी चादर बन ढक लेती हैं जब गलतफेहमियां हर रात तब सुबह नई किरणों से फिर होती हें खुसिओं की बरसात . सुबह की पहली किरण जब छू लेती हें तेरी बंद पलकें चारों तरफ कलिओं से तेरी खुशबू की हो जाती बरसात . नहा धो कर चमक जाती हर चोटी धोलाधार की जब पश्चिम से बादल गरजते चमकते बनते बरसात ©ishant Thakur prakrti poem #Lake #poem #tranding
Aarti Sirsat
वक्त शायद जख़्मो को भर भी दे, मगर जाओं... जिंदगी से पूछकर आओं... क्या वोह मेरी उम्र की भरपाई कर पायेगी....! ©Aarti Sirsat #poem
Aliem U. Khan
उनकी होली ईद दिवाली फीकी है उनकी ख़ातिर सभी मिठाई तीखी है वो क्या जाने सूरज चांद सितारे जुगनूं उनकी आंखों में गहरी तारीकी है! ©Aliem U. Khan #holi_diwali #Eid #Muflisi #urdu #urduhindi_poetry #Dark #Aliem #urdupoetry
Kartik Choure
बांगडीची कीन कीन नी मोगऱ्याचा गंध शब्दात भिजवतो आहे... डबडबुन डोळे दुःख प्रेमाने सोसतो आहे आठवणींणा तुझ्या मी सरनावरती ठेवतो आहे... सरकावुन रक्ताळलेले गुलाब नी शब्दसारे, अर्धवट कवीतांना मुठमाती देतो आहे ... रुसले सारे पत्र जरी त्यास पत्रावळी करतो आहे भिजलेले हृदय सुखावण्यास स्वप्न माझे जाळतो आहे आठवणींणा तुझ्या मी सरनावरती ठेवतो आहे.... ©Kartik Choure #poem
kavi Purushottam das
अवसर दो ======= मुझको बच्चा रहने दो जरा सुनहरे अवसर दो बचपन मेरा छीनो मत समझो मेरी कैसी हठ चाह रहा हूं दिनभर खेलूं अरमां अपने कहने दो बच्चा मुझको रहने दो कोमल तन की समझो पीर अंतस कितना रहे अधीर नन्हा पौधा पेड़ बनेगा मुक्त गगन में बढने दो बच्चा मुझको रहने दो मैं अबोध जग राहों से सरिता के प्रवाहों से सीख जाऊंगा मंत्र जीत का शनैः शनैः खुद चलने दो ©kavi Purushottam das #poem