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Rj Kant krishn kant
Vishnu Bhagwan भास ? भास से भाषा, भाषा से विचार, विचारो से चिंतन, और चिंतन में सिर्फ कलिकाल। राधा राधा ©Rj Kant krishn kant स्वाध्याय
YumRaaj ( MB जटाधारी )
**यदि कश्चित् कथमपि अन्यस्य विषये अत्यन्तं उत्साहितः, प्रसन्नः, क्रुद्धः, दुःखितः वा भवति । अतः तस्य वा केनचित् कारणेन तस्मिन् व्यक्तिना क्रुद्धः, यदि च सुखी तदा केनचित् प्रकारेण वा, तदेव तस्य सुखस्य कारणं, यदि सः भावविक्षिप्तः अस्ति तर्हि सः अपि क्रुद्धः भवति, यदि च सः is sad then it is due to कारणं तस्य व्यक्तिस्य प्रति अत्यन्तं आसक्तिः। तथा च आसक्तिः आसक्तिः वा कस्यचित् व्यक्तिस्य दुःखस्य मूलकारणं भवति!** ©YumRaaj YumPuri Wala #Dhund #स्वाध्याय
SK
#OpenPoetry मन साथ सोडत आहे... इच्छा नष्ट होत आहेत... भावना शून्य होत आहेत... गर्दीचा किळस वाटायला लागला आता... आता हव्यास फक्त अंधाराचा... मज हवाय अंधार फक्त
Prince Gupta
"काश ये तकनीक न होती तो हम भी आज बेजुबान जानवरों की तरह अपने ही जज्बातों में कैद न होते ।" @ehsaasinquotes ©Prince Gupta #addiction #मोबाइल#मोबाइल #MOBILE
ntnrathore
अकड़ते थे जो कभी, जरा जरा सी बात पर, गरदन झुकाये घूमते हैं। सर उठा के मिलते थे कभी, मिरे शहर के लोग। अब मोबाइल में आँखे गड़ाए दिखते हैं। ओये, अबे , भिया सुन के नज़रे घुमाते थे, अब महज नोटिफिकेशन की आहट सुनते हैं अब बस मोबाइल में आंखे गड़ाए दिखते हैं। अखबारों, किताबो, लायब्ररी वाचनालयों में , सुबह शाम टकरा जाते थे कभी। अनंत सी दुनिया का इल्म,अब हथेली में ढूंढते हैं। अब मोबाइल में आंख गढ़ाए दिखते हैं। शिकायत करें क्या, शिकवा करें किससे, अपनी भी फितरत कहाँ रही पहले जैसी डायरी में दर्ज करते थे,सारे अहसास कभी अब नोटपैड के टच में डूबे रहते हैं। लफ़्ज़ों में तो कोई फर्क नही होता मगर, पन्ने में जो मिलता था लम्स, वो टच में ढूंढते हैं। अजीब हो चुके हैं हम, कभी हाथ की लकीरों में, तो कभी हथेली में, दुनिया ढूंढते हैं। ......बस मोबाइल में आँखे गड़ाए दिखते हैं। नवाब"सैम" मोबाइल