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Parasram Arora
चुप्पी तोड़ मौन जब बोला कविता जागी नैन मूँद कर जो देखा वही सच था इस सच ने जब अमृत घोला कविता जागी कविता जागी
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक
Shubham Bambori
कल रात में भी जागा कल रात तू भी जागी बस फर्क इतना था में तेरे लिए जागा ओर तू किसी ओर के लिए जागी SB #रात जागी
Shravan Goud
जागी जागी जागी रे, दिवले री जोत जागी रे । म्हारा सूं मत करजे, भवानी रीसणो ॥ जागी जागी जागी रे, दिवले री जोत जागी रे । म्हारा सूं मत करजे, भवानी रीसणो ॥🌹🌹🙏🙏
Shravan Goud
जागी जागी जागी रे, दिवले री जोत जागी रे । म्हारा सूं मत करजे, भवानी रीसणो ॥.... माता के भजन — % & माता का भजन पारंपरिक 🙏जागी जागी जागी रे,दिवले री जोत जागी रे । म्हारा सूं मत करजे, भवानी रीसणो ॥