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Prashant Mishra
पापा एक साइकिल दिला दीजिये नीली, पीली या लाल मंगा दीजिये प्रतिदिन उसको चलाऊंगा मैं बिल्कुल नहीं अलसाउंगा मैं बिना धुँआ, बिना शोर किये पर्यावरण को बचाऊंगा मैं साइकिल से व्यायाम हो जाएगा जल्दी से हर काम हो जाएगा फिर मैं तनिक भी न सुस्त रहूँगा साईकल चलाकर तंदुरुस्त रहूँगा --प्रशान्त मिश्रा बच्चों के लिए कविता "साईकिल'
Jamil Khan
बारहखड़ी की कविता अ से अनार आ से आम जग में तुम करो नाम। इ से इमली ई से ईख बड़ों से मिलती है सीख। उ से उल्लू ऊ से ऊन बच्चों तुम नहीं बनो दून। ऋ से तो होता है ऋषि भारत के लोग करते कृषि। ए से एड़ी ऐ से ऐनक दादाजी से घर में रौनक। ओ से ओखली औ से औरत छोटे बड़ों से करो मोहब्बत। अं से अंगूर अः से खाली बच्चों नहीं करो काम जाली। मो- ज़मील अंधराठाढ़ी, मधुबनी (बिहार) मौलिक, स्वरचित अप्रकाशित कविता। मो- 9065328412 पिन कोड- 847401 ©Jamil Khan बच्चों के लिए उपयोगी कविता। #OneSeason
K L MAHOBIA
हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं ,अपनी ही घरवाली है। आदमी को देखो कैसा भाग रहा लिखते है अरूणाई में पॉकेट को खाली करती सदा से पत्नी अपनी आली है। रातों दिन मारा मारा फिरता जीवन का रस सूख गया। रोज कमाया पैसा मेरा छीना पत्नी चंडी काली है। हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं ,अपनी ही घरवाली है। जीवन में शादी करना भारी मेरी भूल सुनो भाई जी। मेरा जीवन मुश्किल में पड़ता पत्नी महंगी पा ली है। ब्यूटी पार्लर, क्रीम पाउडर आई लाइनर कितने नखरे। साड़ी गहने कपड़े हर महीने में पैसा अब खाली है। हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं ,अपनी ही घरवाली है। किटी पार्टी नाइट पार्टी पत्नी कितना फिर ढोंग रचाती। थोड़ा सा पैसा कम होता सुनता अक्सर देती गाली है। किस मोह जाल में उलझाया मुझे बचा लो कोई साथी। गिर गया बेशर्म पैसा भीख मांग रहा छुपाता जाली है। हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं , अपनी ही घरवाली है। के एल महोबिया ✍️ ©K L MAHOBIA #कविता हास्य व्यंग्य के एल महोबिया
Rakesh Pandey
मधुशाला का नित्य निमंत्रण, जो दिलवा दे , मित्र वही है। व्यथित हृदय हो पीडा में तब, *Wills* जला दे , मित्र वही है। सुंदर विपुल चंचला का, नंबर दिलवा दे , मित्र वही है। मधु-पात्रों में भर कर मदिरा, पैग बना दे , मित्र वही है। सुरा विसुध हो जाऊँ जब मैं, घर पहुँचा दे , मित्र वही है। 🍺🥃 ~```मदिरा शरण गुप्त``` !!! हास्य कविता