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MSA RAMZANI
मेरी सांसों को हवाओं में बिखर जाना है, जिस्म को खाक के तूदो में उतर जाना है उसका सिद्दत से मुझे चाहना बतलाता है, चढते दरिया को बहुत जल्द उतर जाना है, दूर रहने का इरादा कभी मिलने की तडप यह समझ में नहीं आता कि किधर जाना है छत पे फैली हुई इस धूप को मालूम नहीं दिन के ढलते ही दीवारों में उतर जाना है प्यार करना कोई आसां नहीं है, रमजानी गहरे पानी के समन्दर में उतर जाना है, 28/10/15 ©MSA RAMZANI गजल
गजल
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तेरे ही रूप को आखों में भर रहे है हम तू ही बता कि कोई भूल कर रहे है हम। सफर तमाम हुआ जब तो यह ख्याल आया कि एक उम्र न जाने किधर रहे है हम। बड़े अदब से जो झुक कर सलाम करता है उस शख्स से क्यूं आज डर रहे है हम। जिधर भी देखे कही आदमी नहीं मिलता ये कैसा शहर है जिससे गुजर रहे है हम। करो न रंज तुम्हारा जो साथ न दे सके खुद अपने आप के कब हमसफर रहे है हम। खुद अपने आप से गाफिल रहे मगर रमजानी तुम्हारी याद में कब बेखबर रहे है हम। 4/10/15 ©MSA RAMZANI गजल
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पल में दूर हो जाती है जात अधूरी हो जाती है आखों में नींद नहीं आती रात पूरी हो जाती है पहले तो होती है चाहत फिर मजबूरी हो जाती है कुछ लोगों की पल भर मे ख्वाहिशे पूरी हो जाती है हद से प्यार गुजर जाये तो अक्सर दूरी हो जाती है 8/10/15 ©MSA RAMZANI गजल
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रात ढलती रही दिन निकलता रहा सिलसिला तेरी यादो का चलता रहा बेवफा से वफा की तमन्ना रही दिल का अरमान दिल में मचलता रहा आतिश ए बदगुमानी न जब तक बुझी वो भी जलता रहा मैं भी जलता रह यू तो कहने को इक दिया था मगर शब की तारीकियों को निगलता रहा हकबयानी की रमजानी सजा में मिली मैं जमाने की नजरों में खलता रहा 12/10/15 ©MSA RAMZANI गजल
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White मुन्तजिर सब मेरे जवाल के है मेरे अपने भी क्या कमाल के है दोस्तो को समझ नहीं पाया ये सबब ही मेरे मलाल के है एक दिन में चमन नही खिलता जख्म ये जाने कितने साल के है खुश्बु एक चारसू है बिखरी हुई गालिबन दिन यही विसाल के है इश्क बदनाम मुफ्त में ही हुआ जलवे सब हुस्न और जमाल के है रंग तहजीब और जबान अलग पंछी लेकिन सब एक ही डाल के है तेरी यादो का शुक्रिया ऐ दोस्त हिज्र में भी मजे विसाल के है बरकते तो है लाजमी रमजानी मेरे पैसे भी तो हलाल के है 6/8/15 ©MSA RAMZANI गजल
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White जमाने वालो से मुझे सदा बचा के रखो। किसी ग्लाफ के नीचे मुझे छुपा के रखो।। इसी तरफ से कोई आज आने वाला है। इसी मुंडेर पे दीपक कोई जला के रखो।। तुम्हारी शर्म ही हुस्न व अदा का जेवर है। हया भी कहती है, आंखो को हो तुम छुपा के रखो।। तुम्हारा घर ही तुम्हारे लिए वो जन्नत है। बड़े सलीके से इस घर को तुम सजा के रखो।। बडे बडे भी तो रहते है आजिजि से यहां। अना को तुम भी रमजानी इक तरफ हटा के रखो।। 24/10/15 ©MSA RAMZANI गजल
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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset इश्क़ लिख रहे हो,या सजा लिख रहे हो क्या मुहब्बत को रब की, रजा लिख रहे हो। (मिसरा ) हर दर्द को लफ़्ज़ों में समेटा है तुमने, क्या अश्कों की कोई दवा लिख रहे हो। ख़ुदा की किताबों में मोहब्बत की बातें, क्या फरिश्तों से तुम राबता लिख रहे हो। कफन की वो ख्वाहिश, अधूरी है मन्नत, क्या मय्यत पे उनका का पता लिख रहे हो। जिस्म को परे रख, रूह मे बसर कर, क्या चाहत को अपना खुदा लिख रहे हो। पूनम सिंह भदौरिया ©meri_lekhni_12 #SunSet गजल
#SunSet गजल
read moreMohan Sardarshahari
Unsplash दोस्तों से मुश्किल है हकीकत छुपाना जैसे हवा से अलग रवानी को रखना। जिंदगी के अनुभव बेशक अलग-अलग होंगे मुश्किल नहीं मगर एक दूजे की कहानी समझना। इशारों में समझाना बहुत कर लिया चलो दोस्तों से करते हैं वही व्यवहार बचकाना। यदि कभी कुछ सुनाना पड़े दोस्तों को बस याद उनकी एक-एक शैतानी दिलाना। मिलकर यदि किसी दोस्त से छलक जाए आंसू शाम को उड़ा देना उनको तेरे नाम के पैमाना। देखी होंगी दशकों में कई नायाब इमारतें तूने होना हो रूबरू जवानी से, बार-२ तेरे कॉलेज जरूर जाना।। ©Mohan Sardarshahari # गजल
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read moreAshok Verma "Hamdard"
White गजल सहर के आँचल में चाँद सोया, फिज़ा में नर्मी नई नई है, घरों में जलती हैं आरतियाँ, दुआ में गर्मी नई नई है। सफर में साथी बने हैं तारे, ख़ुशी के क़िस्से कहें न थमते, जो चाँदनी है ये चुपके चुपके, अभी वो राहत नई नई है। लगे हैं बगिया में फूल महके, सुना है जुगनू मिले उजाले, जो रुत है बदली हवाओं से, अभी तो रंगत नई नई है। नज़र से छलका जो इश्क़ गहरा, वो बात लफ़्ज़ों से फिर न निकली, जो हाल दिल का बयाँ हुआ है, अभी तो हालत नई नई है। हुनर को पहचाना दुनिया ने, जमीं पे क़दमों का जादू छाया, अभी जो रुतबा मिला है तुमको, ये सारी शोहरत नई नई है। जहाँ में उठती हैं आज आँधियाँ, जलें हैं दीपक बने सहारे, अभी जो सूरज चमक रहा है, उसकी ये हिम्मत नई नई है। ©Ashok Verma "Hamdard" गजल
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