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Dr Wasim Raja
White तुलसी दास रचित रामचरितमानस की पंक्ति सबको है भाई। हां ''रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई''। मानव है सब, ऊंच- नीच के भेदभाव से होती है जग हंसाई। इंसान है इंसानियत हो,धरा पर सब आपस में है भाई भाई। राम नाम जपना पराया माल अपना अंध भक्तों की भीड़ है छाई। सुख शांति समृद्धि के लिए पूरे विश्व में भारत की हो अगुवाई। अस्त्र-शस्त्र चल रहे सर्वत्र, अब ढाई अक्षर प्रेम की बरसात कीजिए रघुराई। दशरथ पुत्र श्री राम के जन्मदिन,रामनवमी की ससको हार्दिक बधाई।। ©Dr Wasim Raja रामनवमी पर समर्पित
Dr Wasim Raja
White तुलसी दास रचित रामचरितमानस की पंक्ति सबको है भाई। हां ''रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई''। मानव है सब, ऊंच- नीच के भेदभाव से होती है जग हंसाई। इंसान है इंसानियत हो,धरा पर सब आपस में है भाई भाई। राम नाम जपना पराया माल अपना अंध भक्तों की भीड़ है छाई। सुख शांति समृद्धि के लिए पूरे विश्व में भारत की हो अगुवाई। अस्त्र-शस्त्र चल रहे सर्वत्र, अब ढाई अक्षर प्रेम की बरसात कीजिए रघुराई। दशरथ पुत्र श्री राम के जन्मदिन,रामनवमी की ससको हार्दिक बधाई।। ©Dr Wasim Raja रामनवमी पर समर्पित
3 Little Hearts
अंत का भी अंत होता है, सब कुछ कहाँ अनंत होता है। पतझड़ एक घटना है, बारह महीने कहाँ बसंत होता है।। 🩶🩶🩶 ©3 Little Hearts #tree #बसंत
अमित कुमार
White इंसान अगर बांध ना बनाए,वो नदियों के जलधारा को मोड़ेगा कैसे । दूसरों से ज्यादा खुद पर भरोशा हो,और कोई अपना दिल तोड़ेगा कैसे।। ©Amit खुद पर भरोशा
Prakash Vidyarthi
।।।।।।।कलम ए विद्यार्थी।।।।।।। +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ आज सुबह सबेरे चमचमाती धूप में नीले अम्बर को निहारती जैसे किसी हिरण रूपी रौशनी को देखा! सुनसान बंजर खेतों के बीच खड़ी चारों तरफ फलों से लदे लहराती गेहूं चने के झूमते पौधों और टहनी को देखा !! लूक छिप लूक छिप झगड़ा मेल कभी फुटबॉल क्रिकेट का सेल भाई बहन पड़ोसी भेल मानव और जानवर में फिर कैसा बेमेल । छुक छुक मंद गति से कभी तेज़ रफ़्तार से चल रही थीं अपनी रेल! सफ़र था विद्यालय तक का पर देख रहा था मैं कुछ दूसरा खेल !! उठकर तो कभी बैठकर झांक रहा था उच्चकर मैं खिड़की से भी! कितनी सुन्दर कितनी प्यारी हिरण न भाग रही थी हिचकी से भी।। टेढ़ी +मेढ़ी लकड+अकड़ सी सिंघ सोभती पाती हुईं थीं कानों को सिर कर सीधा मासूम भरी कोमल निगाहों से आह रही थीं वाणो को!। उछल कूद लगा भूल गईं थीं शायद शान्ति की थीं तालाश में आनन्द अब न उसे कुछ आ रहा था हरे भरे फूलों और घास में । अकेली निर्जन वातावरण में बन की विरहन सी सजी दुलहन प्रेम पिपासी लग रही थीं खोई थी प्यारे प्रभू के आश में ।। पहले जैसा अब कुछ भाव न दिखा जैसे कोई जंगली डरती हैं कनक खनक न कुछ बता रही थी मृग नयनी बस आहे भरती हैं! पूछ का पक्ष बना संकेतक बालो का प्रमाण अब बताता है। कोई धनुर्धर महाबली किसी का आजकल न पीछा करता हैं!! चेहरे का भाव बता रहा था उसकी भी मन की कुछ ईक्षा थीं प्यार नफरत के वृत्ताकार केंद्र बीच होनेवाली अग्नि परीक्षा थीं! सोच रही थीं गर कोई मिले भी तो न कन्हैया और न श्रीराम सा थीं ख्वाइश घायल दिल के उसको महादेव कैलाशी महान सा।। @विद्यार्थी ©Prakash Vidyarthi #aaina #पोएट्री #कविताएं
Pallavi pandey
बसंत की प्रतीक्षा में मैंने लिखे है प्रेम गीत रखी है होठों पर मुस्कान खोली है आशा की खिड़कियां सजा रखी है फूलों की दुकान , ओढ़ गुलाबी ओढ़नी गाए जा रही फाग उम्मीद है आएगा बसंत मेरा मुंडेर पर आज फिर बोला काग © Pallavi pandey बसंत
Mukesh Poonia
Life Like जिन पेड़ों ने पतझड़ सहे है बसंत भी उन्ही पेड़ों पर लौटता है . ©Mukesh Poonia #Lifelike जिन #पेड़ों ने #पतझड़ सहे है #बसंत भी उन्ही #पेड़ों पर #लौटता है