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TannuJ3180
White Aap jiska jitna sath doge vahe Insan ek din aapse behtarin milte hi aapse duriyan banana kar dega aur ignore ka Silsila start ho jaega Meri Kalam Se @TJ# ©TannuJ3180 Insan kab Badal jaaye pata nahin chalta hai
Insan kab Badal jaaye pata nahin chalta hai #Shayari
read moreMyselfwrites
Jb Vrindavan jayunga Kabhi wapis na ayunga Duniya se sb rishte Tod Jayunga Yun toh sabhi kahenge Mujhe Apne Magr Mein shri krishan ko apna bnayunga Kabhi wapis na jayunga Thodi waqt Lagega thereme mein Ansu ek na bahaunga Moh Maya sb shod jayunga Kabhi aay toh milt Jana mujhe Kahi raste mein Biksha Mangte mil Jayunga Jb Vrindavan jayunga kabhi wapis na ayunga Yun toh mohabbat h maa se mujhe meri maa ko b thoda samjyunga Shri krishana ka hona h mujhe dass Unhe batlyunga Jo vrindhavan kabhi wapis na ayunga ©Myselfwrites #janmashtami
jeet musical world
White ऐ मुश्किलों मुझे तुम आजमाओगी कब तक, पहले से दिलजला हूं तुम जलाओगी कब तक! माना के स्वागत मैं सबका दिल से करता हूं! पर इतना तो बता दो और आओगी कब तक!! ✍️ जतिंदर जीत ©jeet musical world #SAD kab तक?
Bharti kumari
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च । निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी ॥ संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चयः। मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥ भावार्थ : जो पुरुष सब भूतों में द्वेष भाव से रहित, स्वार्थ रहित सबका प्रेमी और हेतु रहित दयालु है तथा ममता से रहित, अहंकार से रहित, सुख-दुःखों की प्राप्ति में सम और क्षमावान है अर्थात अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला है तथा जो योगी निरन्तर संतुष्ट है, मन-इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किए हुए है और मुझमें दृढ़ निश्चय वाला है- वह मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धिवाला मेरा भक्त मुझको प्रिय है॥ ©Bharti kumari #janmashtami
Bharti kumari
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ भावार्थ : साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ॥ ©Bharti kumari #janmashtami
Bharti kumari
ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते। सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम् ॥ सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः । ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः ॥ भावार्थ : परन्तु जो पुरुष इन्द्रियों के समुदाय को भली प्रकार वश में करके मन-बुद्धि से परे, सर्वव्यापी, अकथनीय स्वरूप और सदा एकरस रहने वाले, नित्य, अचल, निराकार, अविनाशी, सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को निरन्तर एकीभाव से ध्यान करते हुए भजते हैं, वे सम्पूर्ण भूतों के हित में रत और सबमें समान भाववाले योगी मुझको ही प्राप्त होते हैं॥ ©Bharti kumari #janmashtami
Bharti kumari
तुम अपने आत्मीय स्वजन और बन्धु-बांधवों का स्नेह सम्बन्ध छोड़ दो और अनन्य प्रेम से मुझमें अपना मन लगाकर सम दृष्टी से पृथ्वी पर स्वच्छंद विचरण करो| श्री क्रिष्नाके उपदेश जय श्री क्रिष्ना.. ©Bharti kumari #janmashtami
Bharti kumari
तुम अपने आत्मीय स्वजन और बन्धु-बांधवों का स्नेह सम्बन्ध छोड़ दो और अनन्य प्रेम से मुझमें अपना मन लगाकर सम दृष्टी से पृथ्वी पर स्वच्छंद विचरण करो| श्री क्रिष्नाके उपदेश जय श्री क्रिष्ना.. ©Bharti kumari #janmashtami
Bharti kumari
अपने अहंकार को छोड़ो : व्यक्तिगत जीवन में हमेशा सहज व सरल बने रहो। जिस तरह शक्ति संपन्न होने पर भी श्रीकृष्ण को न तो युधिष्ठिर का दूत बनने में संकोच हुआ और न ही अर्जुन का सारथी बनने में। एक बार तो दुर्योधन के छप्पन व्यंजन को छोड़ कर विदुरानी (विदुर की पत्नी) के घर उन्होंने सादा भोजन करना पसंद किया। श्री क्रिष्नाके उपदेश ©Bharti kumari #janmashtami