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कवि वेद प्रकाश प्रजापति
#लोकसभा चुनाव -2019 छींटा कस्सी शुरू हो गई, शुरू वार पे वार। सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली, हज को है तैयार।। ✍कवि वेद प्रजापति #लोकसभा चुनाव -2019 छींटा कस्सी शुरू हो गई, शुरू वार पे वार। सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली, हज को है तैयार।। ✍कवि वेद प्रजापति
#लोकसभा चुनाव -2019 छींटा कस्सी शुरू हो गई, शुरू वार पे वार। सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली, हज को है तैयार।। ✍कवि वेद प्रजापति
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
#KisanDiwas हल जोंठ कस्सी अब, मेरे ही खिलौने सब, खेत खलिहान देख, यही मेरे मेले है ।। मेरी दुनिया को देख, करे सभी मतभेद , समझो इंसान उसे , उर से क्यूँ खेले है । सबको मैं देता अन्न, होता जग है प्रसन्न , फिर इस दुनिया में , किसान अकेले है । हम साथी मिट्टी यार, इसी का है घर द्वार, देखे कोई हीन भाव, पाले क्यूँ झमेले है । महेन्द्र सिंह चौहान ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *हल जोंठ कस्सी अब,* *मेरे ही खिलौने सब,* *खेत खलिहान देख,* *यही मेरे मेले है ।।* *मेरी दुनिया को देख,* *करे सभी
*हल जोंठ कस्सी अब,* *मेरे ही खिलौने सब,* *खेत खलिहान देख,* *यही मेरे मेले है ।।* *मेरी दुनिया को देख,* *करे सभी #कविता #kisan_diwas #Kisandiwas
read moreRohit Thapliyal (Badhai Ho Chutti Ki प्यारी मुक्की 👊😇की 🙏)
एक तू है, एक चाँद है बीच में हम एक डोर हैं... हमारा एक छोर तेरी, तो दूसरा चाँद की ओर है... तुम दोनों एक ही वक़्त में खींचते जब हमें अपनी ओर थे, तो तुम दोनों कहते हुए लगाते हमने अपना जोर थे, कि- तुम आते क्यों नहीं सिर्फ मेरी ओर हो? हम अपना हाले-दिल तुम दोनों को समझा नहीं पाते थे? तुम दोनों की रस्सा-कस्सी में हम घिस जाते थे! फिर हमने तुम दोनों को आपस में मिलाया, और अपना दूसरे छोर से दोनों को मिलाया! तब तुम दोनों ही हमारा दिले-हाल समझ गये! और हमारे दोनों छोर तुम दोनों के साथ आपस में मिल गये! तब से हम तीनों थ्री इन वन बनकर गोल-गोल घूमकर चैन से छुट्टी(जीवन) का मजा लेने लगे! और छुट्टी की राह में आगे छुट्टी के साथ-2 आगे बढ़ने लगे! धन्यवाद @बधाई हो छुट्टी की प्यारी मुक्की👊😇की🙏 #Chand #BadhaiHoChuttiKi एक तू है, एक चाँद है, बीच में हम एक डोर हैं... हमारा एक छोर तेरी, तो दूसरा चाँद की ओर है... तुम दोनों एक ही वक़्त
Devesh Dixit
चलो इश्क दोबारा कर लें बहुत हुईं अब गमगीन बातें, चलो इश्क दोबारा कर लें। कब सुलझीं अनबन से बातें, पल ये हम हसीन कर लें। मिले कभी थे हम पहली बार, उन्हीं लम्हों को बयांँ कर लें। एक दूजे के मुख से फिर हम, उन्हीं वादों की वर्षा कर लें। खो जाएँ हम एक दूजे की, आँखों के फिर समंदर में। बहके से हम बिन पिये ही, गोते खाएँ उसी भंवर में। एक दूजे के अब प्यार में, आओ मगन हम हो जाएँ। छोड़ कर सब ताना कस्सी, हम दोनों बाहों में आ जाएँ। दिखाती थी जो पहले अदा, फिर से तुम वो दिखा दो न। जिस मुस्कान पर था फिदा, वही मुस्कान तुम दिखा दो न। क्यों करनी है गमगीन बातें, चलो इश्क दोबारा कर लें। छोड़ सभी हम फालतू बातें, पलों को फिर हसीन कर लें। ....................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #चलो_इश्क_दोबारा_कर_लें #nojotohindi #nojotohindipoetry चलो इश्क दोबारा कर लें बहुत हुईं अब गमगीन बातें, चलो इश्क दोबारा कर लें। कब सुलझ
#चलो_इश्क_दोबारा_कर_लें #nojotohindi #nojotohindipoetry चलो इश्क दोबारा कर लें बहुत हुईं अब गमगीन बातें, चलो इश्क दोबारा कर लें। कब सुलझ #Love #sandiprohila
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- काँव-काँव लड़ रहे , हल न निकल रहे , जनता की पीर लिए , नेता परेशान है । नित यही भाषण हो , फिर भी तो शोषण हो , कहतें है डरो नही , अनुसंधान है । आज सत्तर साल में , बिजली पानी गाँव में , देते आए नेता सब , जनता हैरान है । आया फिर चुनाव है , खोजत नेता ठाँव है , जनता भी पूछे अब , कैसा मतदान है ।।१ बोलते डालर उठा, पैसा क्यों है नीचे गिरा , बोरो में भरकर वे , करते सवाल है । धंधा खूब चल रहा , मजदूर नित मर रहा , रोता है किसान अब , कहते बवाल है । किसानो के हितकारी ,देखो सब सत्ताधरी, फिर भी उसका हक , करे इस्तेमाल है । आज नही पास कोई , पूछे नही हाल कोई, बच्चे भूखे सब अब , घर में न दाल है ।।२ श्रामिक किसान सभी , देखे नही घर कभी , हल जोठ कस्सी लिए , बैठे धूप छाँव में । शहर न जाए कभी , सूखी रोटी खाए सभी, रहे परिवार संग , अपने ही गाँव में । करोगे मदद थोड़ी , दोगे बैल एक जोड़ी , औ अपने आनाज का , स्वयं करुँ भाव में । अन्नदाता नाम नही , झूठे दो मुकाम नही , मैं भी अब खड़ा रहूँ , चाहूँ ऐसे पाव में ।।३ १७/०८ २०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR काँव-काँव लड़ रहे , हल न निकल रहे , जनता की पीर लिए , नेता परेशान है । नित यही भाषण हो , फिर भी तो शोषण हो , कहतें है डरो नही , अनुसंधान है ।
काँव-काँव लड़ रहे , हल न निकल रहे , जनता की पीर लिए , नेता परेशान है । नित यही भाषण हो , फिर भी तो शोषण हो , कहतें है डरो नही , अनुसंधान है । #कविता
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बेबस कर इंसान यहाँ अब , मजदूर बनाये जाते हैं । फिर उनकी करनी को खाने , ये गोरख वाले आते हैं ।। बेबस कर इंसान यहाँ अब ... दो आने की मिले नौकरी , घर खर्च रहे छे आने के । उस पर जाल बिछाए बैठे , अब व्यापारी पैमाने के ।। भोले यह मजदूर बड़े है , बस दाने ही दिख पाते हैं । बेबस कर इंसान यहाँ अब ..... लिया दिया कुछ किया नही है ,एक लालच ही नज़र आता । दो आने लेकर जीवन में , दस आने ही वह भर पाता ।। लूट मचाए नियम बनाकर , जो सहकारी कहलाते है । बेबस कर इंसान यहाँ अब .... कस्सी गैंती औ कुल्हाड़ी, हथियार दिलाये जाते है । ईटा गारा बोझ उठाना , यह काम बताये जाते हैं ।। भर जाए परिवार पेट का , हर रोग दबाए जातें है । बेबस कर इंसान यहाँ अब ... जीवन की तपती रेती में , यह लौह पकाया जाता है । इस इंसानी मिट्टी को , आज सोना बनाया जाता है । लेकिन उनसे ही यारो अब, ये भेद छुपाएं जाते हैं । बेबस कर इंसान यहाँ अब .... छीन लिया उन औलादों से , शिक्षा का भी वह हक देखा । थाम-थाम हथियार सुनों वह , बदले किस्मत की वह रेखा ।। मकसद मिला पेट है भरना , यह पाठ पढ़ाए जाते है । बेबस कर इंसान यहाँ अब .... बेबस कर इंसान यहाँ अब , मजदूर बनाएं जाते हैं । फिर उनकी करनी को खाने , यह गोरख वाले आते हैं ।। ०१/०५/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR बेबस कर इंसान यहाँ अब , मजदूर बनाये जाते हैं । फिर उनकी करनी को खाने , ये गोरख वाले आते हैं ।। बेबस कर इंसान यहाँ अब ... दो आने की मिले नौक
बेबस कर इंसान यहाँ अब , मजदूर बनाये जाते हैं । फिर उनकी करनी को खाने , ये गोरख वाले आते हैं ।। बेबस कर इंसान यहाँ अब ... दो आने की मिले नौक #कविता
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