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Dr.Vinay kumar Verma
Archana Tiwari Tanuja
यारी :- बंदरों के जैसी ही अपनी भी यारी है। कभी करें तमाशा कभी बने मदारी हैं। बचपन की यारी! न कोई दुनियादारी, यारों से हुआ करती पहचान हमारी है। लड़ते-झगड़ते रहते हम सब अक्सर, दोस्ती लगे दिल-ओ-जान से प्यारी है। ऊंच-नीच,भले-बुरे का भेद न जाने है, मतलबी, खुदगर्ज! ये दुनिया सारी है। दूसरों के कांधे पर रख बंदूक चलाते! आज हमारी तो कल तुम्हारी बारी है। समय बड़ा बलवान न किसी की माने, वक़्त के आगे सारी ही दुनिया हारी है। अर्चना तिवारी तनुजा ✍️✍️ ©Archana Tiwari Tanuja #Yaari यारी :- ******** बंदरों के जैसी ही अपनी भी यारी है। कभी करें तमाशा कभी बने मदारी हैं। बचपन की यारी! न कोई दुनियादारी,
Abhishek Chauhan
Pushpvritiya
बदला तो ज्यादा कुछ नहीं था, हाँ.......कुछ सड़कें पक्की हो गई थी, "फूस" की जगह छप्परों पर "खपरैल" आ गए थे..... नाशपाती के बागानों के "बाड़" ऊंचे हो गए थे और महाशय की "आई बी" जीर्ण शीर्ण मिली..... अरे हां और वो काका काकी..जो लकड़ी के चुल्हे पर की दाल पकाकर ला दिया करते थे, समय चक्र ने उन्हें लील लिया था.... एक और बात गौरतलब थी.. .बंदरों की "संतति" आशातीत बढ़ी थी...और व्यवहार "मानवीय" लग रहे थे.... बच्चों का "उत्साह" वैसा ही जैसा "तेरह वर्ष" पहले मेरे भीतर था..... नेतरहाट की "यात्रा".... "महाशय" के साथ.... "बाइक" पर.... "हमारा बजाज" के ऐड पर "अभिनय" करते हुए........ वही जंगलों-पहाड़ों के मध्य से गुज़रते रास्ते.... वही "सुकून" की हवा....वही "शांति" की अनुभूति....वही "सूर्यास्त"...कुछ सिखाता हुआ....वही "सूर्योदय".....कुछ जगाता हुआ.... "नेतरहाट....एक संस्मरण" वर्षों पूर्व लिखने की "सोची" थी...उस सोच को "शब्द" मिले "कच्चे-पक्के" से...... कुछ "भुल" गई.... कुछ "याद" रहा...कुछ "समेट" लाई...कुछ "छूट" गया........ @पुष्पवृतियां . . ©Pushpvritiya बदला तो ज्यादा कुछ नहीं था, हाँ.......कुछ सड़कें पक्की हो गई थी, "फूस" की जगह छप्परों पर "खप