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Vishal Singh Rajput
इक उम्र सी बीत चली है ऐ ज़िन्दगी तेरे दर्दो को झेलते झेलते अब दिली तमन्ना है की तुझे ही आज़माया जाए इक उम्र सी बीत चली है ऐ ज़िन्दगी तेरे दर्दो को झेलते झेलते अब दिली तमन्ना है की तुझे ही आज़माया जाए
Rajan Gupta Raj
दौलत की चाह थी तो कामने निकल गए, दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गए, बच्चों के साथ रहने की फुर्सत ना मिल साकी, फुर्सत मिली तो बच्चे ही घर निकल गए। दौलत की चाह थी तो कमाई निकल गई, दौलत मिली तो हाथ से हाथ निकल गए, बच्चों के साथ रहने की फुर्सत न मिल सकी, फुर्सत मिली तो बच्चा ही घर निकल गए। ©Rajan Gupta Raj लड़के की जिंदगी के बारे में कितने कास्ट झेलते है
Mayank Sharma
What they say : वक़्त को थोड़ा वक़्त दो, सब ठीक हो जाएगा What they actually mean : वक़्त को थोड़ा वक़्त दो, फिर तो आदत पड़ ही जाएगा और यूँही झेलते जाओगे 🙂 #yqbaba #yqdidi #yopowrimo #yqdada #yq #yourquotes #बाबा_का_ज्ञान
Tera SB
एक तो हम हैं जिसे खेल भी नहीं खेलने आते और एक वो लोग हैं जो हमारे जज़्बातों से खेलना जानते हैं #samebaliyali हम हँसकर झेलते हैं जब लोग हमारी जिंदगी से खेलते हैं
writervinayazad
एक इबादत
बहुत से परिजन,अभिभावक होंगे इस मंच पर .. हाथ जोड़ उनसे निवेदन है अपने बच्चों को वक्त दो उनके साथ तनिक बाते करों ,उनके विचारों को सुन उनके साथ सकारात्मक व्यवहार करों उन पर अपनी ईच्छाऐं ना थोपों ,उनको उनके ख्वा़ब और अरमानों के पीछे भागने दो तुम उनकी मंजिल तय मत करो,उन्हें करने दो बस आप उनका मार्गदर्शन करों..!!🙏🙏 Please .... मैं जो झेल रहा हूँ ,किसी और को झेलते नही देख सकता...🙏🙏🙏
sk chodhry
ROHIN VERMA
ARVIND KUMAR KASHYAP
आशुतोष यादव
छोड़कर डेहरी के सारे ठाट - बाट और मौज-मस्ती के रंग, ढाल लेते है खुद को चार बाई आठ के कमरा में किताबो के संग, अनजान शहर की अनजान गलिया और अनजान लोगो के बीच, सब कुछ दाव पर लगा उलझ जाते है मंजिल और सपनो के बीच, अपनो से होकर ओझल ढाल लेते है, ख़ुद को अपने सपनो के संग, अपनो के साथ बिताये पल की याद कभी-कभी करने लगती है तंग, अपने सपनो की कहानी को कर लेते है संकीर्ण चार दीवारों के अंदर बन्द, बिना देर किए लग जाते है धीरे-धीरे ख्वाबो की जुगत में बस दिनो मे चंद, सब नही समझ सकते ख्वाहिशो के बोझ तले क्या से क्या करना पड़ता है, ऐसे हालात में चार बाई आठ के कमरे में भटठी के समान तपना पडता है, दिल मे उपजे सपनो की बस्ती में कभी रोती, तो कभी हँसती है आँखे, ऐसे हालात में कहने से ज्यादा छुपा लेती है,मन्जिल को तकती ये आँखे, इनके घरवालों से ज्यादा फिक्र तो मोहल्ले वालो को रहती है, हकीकत तो ये है कि इनकी तरक्की से उनकी खूब जलती है, अगर मन्जिल कर लिए हासिल तो समाज में होगी आपकी खूब वाह-वही, वरना आप की काबिलियत पर अंगुली उठाने को सदा तैयार रहेँगे लोग वही, ~आशुतोष यादव #छात्र_जीवन के सन्दर्भ में एक प्रस्तुति जो छात्र झेलते है। जिसको मैं भी अभी झेल रहा हूँ। varsha ✍️ sheetal pandya मेरे शब्द Harsh dubey Ars