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BRIJESH KUMAR
घर से निकल कर घर को लौट आता हूँ, घर से निकल कर घर लौट आता हूँ न जानें मैं, हर रोज़ क्यों? चौख़ट पार निकल जाता हूँ हाँ, पापी पेट के लिए दो बख़त की रोटी जुटाता हूँ इसलिए घर ए दहलीज़ से बाहर जाता हूँ चंद कौड़ियों के लिए बनिए का बोझा उठाता हूँ घर के मेरे भगवान खुश रहें इसी कारण मै मिलों दूर जाता हूँ शाम को लौटते वक्त लिफ़ाफ़ों में किसी चेहरे की मुस्कुराहट बंद कर के ले आता हूँ घर से निकल कर रोज़ घर लौट आता हूँ ब्रजेश कुमार...✍ ०९/०७/२०१९ ०८:४५ पूर्वा: घर से निकल कर घर लौट आता हूँ न जानें मैं, हर रोज़ क्यों? चौख़ट पार निकल जाता हूँ हाँ, पापी पेट के लिए दो बख़त की रोटी जुटाता हूँ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
बोल रहा मुंडेर पर , निशिदिन मेरे काग । कहता जीवन भर मिले , तुझे सजन अनुराग ।। १ सावन से पहले सजन , आ जाना इस बार । कब तक करती मैं रहूँ , यह विरहन शृंगार ।। २ पिया यही अनुराग तो , है मेरा शृंगार । बिन तेरे झूठा लगे , मुझको यह संसार ।। ३ मिले पिता अनुराग जो , बच्चे हो सम्पन्न । घर आँगन खुशियां खिलें , देखो सभी प्रसन्न ।। ४ सावन के झूले पड़े , पूर्वा चले बयार । नैना प्यासे दीद को , आ जाओ भरतार ।। ५ आज उसी अनुराग से , भर दो मेरी माँग । खिल जाऊँ बनके कली , दूँ कोयल सी बाँग ।। ६ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR बोल रहा मुंडेर पर , निशिदिन मेरे काग । कहता जीवन भर मिले , तुझे सजन अनुराग ।। १ सावन से पहले सजन , आ जाना इस बार । कब तक करती म
Arpit Singh
#क्योंकि_मैं_वसंत_हूँ #naturediariesbyarpit #nature #वसंत(Same Mentioned below👇) #poetry #yqbaba #yqdidi
RajSri(My Sweet cute Baby})
🚩श्री गणेशाय नम:🚩 📜 दैनिक पंचांग 📜 ☀ 13 - Jun - 2019 ☀ पंचांग 🔅 तिथि एकादशी 16:50:45 🔅 नक्षत्र चित्रा 10:55:33
अशेष_शून्य
संसार की सबसे सशक्त स्त्रियां निभाती हैं एक पिता का किरदार। वहीं संसार के सबसे कोमल पुरुष हृदय से मां बन जाते हैं ।। ~©अंजली राय एक स्त्री मातृत्व को नौ माह तक अपने रक्त के एक एक कतरे से सींचती है। अपनी हड्डियों के एक एक टुकड़े को बिखेर देती है एक नए ढांचे के निर्माण
AK__Alfaaz..
जन्मदिवस की उज्जवल कामना लिए, शत् शत् करबद्ध प्रणाम मै करता हूँ, हे दिव्य सुता, हे माँ जानकी सम हरिप्रिया, मै नत् मस्तक कर चरण वंदन करता हूँ अलौकिक दिव्य आभा,मुखमंडल साजे, स्वर्णिम सिंदूरी सूर्य प्रभा तिलक ललाट राजे, माथे सोहे चंचल चंद्रिका सी मनोहर बिंदिया, कंठ पे नाचे मनमोहक मृदुल मनमोहन बाँसुरिया, केश हैं कारे बदरा जैसे,मेघों का जैसे मेघालय, सुंदर सुकोमल रजत वर्ण काया ऐसे चमके, जैसे पूरणमाषि मे चंद्रकांति धरती पे छिटके, निश्छल,निर्मल,मधुर-पीयूष अस्तित्व सुहावन, भूमण्डल पर बिखरे जैसे वर्षा जल मनभावन, जन्मदिवस की उज्जवल कामना लिए, शत् शत् करबद्ध प्रणाम मै करता हूँ, हे दिव्य सुता, हे माँ जानकी सम हरिप्रिया, मै नत् मस्तक कर चरण वंदन करता
Alok Vishwakarma "आर्ष"
जन्मदिन के शुभ अवसर पर भेंट स्वरूप 108 पंक्तियों की यह अनिर्वचनीय व अनुपम कविता "Happy Birthday Dear Vanila" प्रखर जगती के हित अवकाश में, तिमिर अज के निमित आकाश में । पहर प्रगति के ऋत्य प्रकाश में, उदय रश्मि सवित निशि न