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m kalvadiya
उम्मीद होती हैं टूटने के लिए, प्रकृति बनाती हैं बिगाड़ने के लिए। कोन यहां जीता है बूढ़ी प्रथ्वी कि परते संभालने के लिए। सब चल पड़ते अपनी नई दुनियां बसाने के लिए। mmm बूढी प्रथ्वी की परते
akshay sharma
कितनी परतों से घिरी है वो एक परत है उम्र की एक परत है सोच की एक परत है शीशे की एक परत है आईने की #NojotoQuote परते
Parasram Arora
इतना आसान भी नहीं हैँ इन चाँद तारो का गरूर तोडना औऱ इस तमतमाए सूरज की ं भट्ठी की तपन को कम कर पाना फिर भी कोशिश हो रही हैँ j सेटेलाइटो को अंतरिक्शो मे भेज कर आसमानी परतो को छिद्रित करके आसमानी परते
Praveen Jain "पल्लव"
आईने के सामने सच पल्लव की डायरी मोहब्बत की रस्म अदायगी जन्नत तक थी मगर तूने सबको खुद में ही उलझा रखा है अपना जमीर कहा बेच रखा है अंतर्मन की आवाज कहा दबा रखी है आईने में अपना बहरूपिया रूप तो दिखाइये सच्चाई के ऊपर कितनी परते जमा रखी है फकीर बनने में कितनो की गर्दने दबा रखी है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #AdhureVakya सच्चाई के ऊपर कितनी परते जमा रखी है #AdhureVakya
Ravi Shankar Kumar Akela
वस्तुतः किसी स्थान पर तापमान , आर्द्रता, वर्षा, वायु वेग आदि के सन्दर्भ में वायुमण्डल की प्रतिदिन की दशा उस स्थान का मौसम कहलाती है। ©Ravi Shankar Kumar Akela #akela वस्तुतः किसी स्थान पर तापमान , आर्द्रता, वर्षा, वायु वेग आदि के सन्दर्भ में वायुमण्डल की प्रतिदिन की दशा उस स्थान का मौसम कहलाती है।
vishnu prabhakar singh
वृक्ष का आरब्ध पर्याप्त दूर गगन तक आते जाते वायुमण्डल दूषक निस्पंदन हरियाली के स्वभाव में समृद्धि मानते अबोला वृक्ष सूखता है रूखी आश में क्या तुम दोगे नया वृक्ष हरित आवरण आते जाते वायुमण्डल वनस्पति शुद्ध उनका है प्रभुत्व प्रथम! पत्र का पत्रिका वृक्ष का आरब्ध पर्याप्त दूर गगन तक आते जाते वायुमण्डल दूषक निस्पंदन हरियाली के स्वभाव में समृद्धि मानते
vishnu prabhakar singh
दिन फूलों के बीत रहे हैं फसल सीना तान रहा है युवा वसंत लचकता रहा आम अंदर से कड़ा बना वायु गति से निकल गयी सुवास से एकआश बंधी मेघ गरज कर शांत पड़ा प्यासी धरती से पेट भरा प्रकृति फल पका रहा है लोकगीत गुनगुना रहा है दिन फूलों के बीत रहे हैं नियामक फूल छिपाये है वायुमण्डल से परस्पर सामंजस्य का गुलाब!! अबके बसंत यूँ बीत गया प्यार का मौसम रीत गया। #दिनफूलोंके #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collabo
deepakdilbook
ashish gupta
मन की अनगिनत परते है कहीं बे मतलब का प्यार कहीं आ पार शर्ते है जिनके लिए मन रहता कमजोर उससे न जाने क्यूं हम डरते हैं हर परत की है एक अलग कहानी जरा सा बादल नही देखे की बारिश की बूंदे की तरह छलकते है तारों को रखते हैं सिक्को की तरह जेब में जरूरत पड़ने पर वक्त के साथ चमकते हैं कौन सी परत है कौन से रंग की छाया पहचान के लिए भावनाओं के भंवर में ढालते है ©ashish gupta #quotation मन की अनगिनत परते है कहीं बे मतलब का प्यार कहीं आ पार शर्ते है जिनके लिए मन रहता कमजोर उससे न जाने क्यूं हम डरते हैं