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Ombir Kajal
जिनसे मैं हाथ मिलाता हूँ वो ही मेरे हाथ काटने लगे, मेरी कविता मेरी शायरी से,मेरी ही छाप काटने लगे.. बर्दाश्त की इम्तेहां तो तब हो गई जनाब, जब मैनें उन्हें रोका और वो मुझे ही डाँटने लगे... 😥😥😥 Ombir kajal छाप काटने लगे
Aasif
लकड़ी को काटने के लिए Use होती है आरी बेटा हमसे पंगा मत लेना वरना 🤕पीटने की बारी है तुम्हारी ©changa vere लकड़ी को काटने......
Pragya Saraf
स्त्री तो स्त्री है... स्त्री तो स्त्री है, मनुष्य कहाँ बन पाती है? कोई मानव अधिकार -स्त्री का अधिकार कहाँ? फ़र्ज निभाना बस फर्ज निभाना स्त्री के लिए तो बस एक यही है राह यहाँ... स्त्री तो स्त्री है, मनुष्य नहीं बन पाती है? चाहे रौंद दो भावनाओं को, मिटा दो किस्मत की रेखाओं को, बुझा दो सारी आशाओं को, तोड़ दो सारे सपनों को, फिर भी छोड़ के सारे अपनों को.... एक नए घोंसले की खातिर, तिनका -तिनका जुटाती है। स्त्री तो स्त्री है.... टूटने और बिखरने पर भी खुद ही सिमट जाती है, वो रूठे और कोई मनाएँ, उम्मीद कहाँ लगाती है... स्त्री तो स्त्री है, मनुष्य कहाँ बन पाती है.... स्त्री तो स्त्री है....
Pradip Jaysab
यू तो पेड़ काटने का किस्सा न होता, अगर कुल्हाड़ी के पिछे लकड़ी का हिस्सा न होता। मां-बाप हैं तो सबका साथ हैं, वरना अपने को बिखेरने में किसी अपने का ही हाथ हैं। पेड़ काटने का किस्सा
Er.Rajat Pratap Singh
जब काटने वाले भी चाटने लगे तो समझो कि वक्त तुम्हारा है। ©Er.Rajat Pratap Singh #चातुरिकता जब काटने वाले
diaryreena
वैसे तो एक स्त्री कभी कमजोर नहीं होती है । चाहे कितनी भी मुसीबत हो तकलीफ हो किसी का टॉर्चर हो या कितना भी ताने क्यों ना हो किसी का दिया हुआ सब सहती है । कभी उफ्फ नहीं करती है लेकिन जो मेरा अनुभव है , वो बताना चाहूंगी। मेरे ख्याल से .... एक स्त्री सबसे ज्यादा कमजोर तब होती है , जब उसका लाइफ पार्टनर या यू कह लीजिए उसका जीवन साथी जब साथ नहीं देता तब एक अकेली स्त्री बहुत कमजोर हो जाती अंदर से टूट जाती है । और बहुत समय लगता है इस दर्द से उसे संभलने में। ©Diaryreena #स्त्री
बिमल तिवारी “आत्मबोध”
स्त्री ने अपने तेज़ से सृष्टि का निर्माण किया जल थल वायु नभ आकाश बनाकर ,उसे तारों से भर दिया फिर पुरुष बनाया संसार की रखवाली करने के लिए विजित किया उसे युगों युगों तक अपने शक्ति और ज्ञान से फिर पुरुष ने अपने स्त्री से उसकी सत्ता छिनने के लिए प्यार का सहानुभूति का सम्मान का एक तीर फेका स्त्री उसमे उलझ गयीं और बन गयीं पुरुषों की दासी फिर स्त्री उभरे ना कभी सत्ता छीने ना कभी स्त्री को बश में किया पिता भाई पति बनकर तार तार किया हर रिश्तों को बनाकर स्त्री से, जो अब तक करता आ रहा हैं पुरुष स्त्री से रक्षक भक्षक बनकर युगों से ।। स्त्री