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Pnkj Dixit
🌷चाहत वाली बारिश में 💓 जनमों - जनम से हम तुम भीग रहे हैं चाहत वाली बारिश में.... कुछ तुम सिमटी शरमाई - सी कुछ मैं भीगा ललचाया - सा चाहत वाली बारिश में.... तुमको प्रेम - पाश में रखकर कुछ क्षण सुखद बिताया था प्रेम -आलिंगन में क्या क्या होता सरल सहज अहसास कराया था चाहत वाली बारिश में.... आओ चलो हम फिर से भीगें चाहत के पल की बारिश में तुम मुझ में मिल जाना साथी मैं तुम में मिल जाऊँ साथी चाहत वाली बारिश में.... ( काव्य संग्रह:- “प्रेम अमर है” से) १०/०७/२०१८🌷👰💓💝 ... ✍ कमल शर्मा'बेधड़क' ©Pnkj Dixit 🌷चाहत वाली बारिश में 💓 जनमों - जनम से हम तुम भीग रहे हैं चाहत वाली बारिश में.... कुछ तुम सिमटी शरमाई - सी कुछ मैं भीग
Mohammad Arif (WordsOfArif)
चारों तरफ झूठ ही झूठ फैलाया जा रहा है अपनों के बीच आग ही आग लगाया जा रहा है ये कैसा भ्रम फैलाया है हर तरफ उन्होंने सच लोगों को झूठे मक्कारों से मिलाया जा रहा है जिस कश्ती में बैठे उसी में आग लगा दी है झूठी बातों पर सबको मिलकर हंसाया जा रहा है दूर के ढोल सुहावने लगते है सभी को यहां समन्दर किनारे खड़े होकर सबको दिखाया जा रहा है अपनी मक्कारी पर पर्दा डालने की कोशिश है सच को छुपाकर झूठ दिखाकर बहलाया जा रहा है कोशिश हर दम है लोगों को मुर्ख बनाने की आरिफ झूठ बोलकर लोगों को ललचाया जा रहा है चारों तरफ झूठ ही झूठ फैलाया जा रहा है अपनों के बीच आग ही आग लगाया जा रहा है ये कैसा भ्रम फैलाया है हर तरफ उन्होंने सच लोगों को झूठे मक्कारो
Shiwalika_SSS
#OpenPoetry “ रक्षाबंधन” स्नेह ,प्रेम,सौहार्द का तर्पण,अखंडित विश्वास का दर्पण, कच्चे धागों का पक्का संगम,ऐसा मनभावन ये रक्षाबंधन।। कृष्ण- द्रौपदी के पवित्र बंधन के किस्से अपार सुने हैं, नारायण और गिरिजा भी तो इसी बंधन में बंधे हैं, जब संकट पड़ा द्रौपदी पर और कोई न रक्षा को आया, तब मीलों दूर से केशव ने ही भ्राता का फर्ज निभाया। नहीं कोई पराकाष्ठा जिसकी,जीवन भर का ऐसा है वचन, ऐसा मनभावन ये रक्षाबंधन..।। ये बंधन ही है जिसने इतिहास में दो धर्मों को जोड़ा था, बुलावे पर कर्णावती के, हुमायूँ रण से दौड़ा था, जब पोरस को रोक्साना ने,भ्राता कह धागा बाँध दिया, तब सिकंदर को परास्त कर भी,पुरुश्रेष्ठ ने जीवनदान दिया। भीषण शत्रुता के मध्य भी जो, प्रेम जगा दे अनुपम, ऐसा मनभावन ये रक्षाबन्धन..।। read full in the caption.... है कथा अनोखी करुणामयी माँ संतोषी के प्रकटोत्सव की, ये बात है श्री गणेश और माँ मनसा के राखी उत्सव की, देख भाई-बहन का प्रेम ,शुभ-लाभ का मन भ
Pnkj Dixit
💞 मौसम कल के बदले आज मिलो तुम आज का मौसम अच्छा है ठण्डी - ठण्डी रुत मस्तानी एक प्यार तुम्हारा सच्चा है दिल ने तुमको चाहा दिलबर दिल से दीवाना कहता है प्यार के रंग में रचा बसा नहीं प्यार तुम्हारा कच्चा है पहले पहल नजर मिली, जब तुम मेला देखन आयी थी दूल्हा दुल्हन का जोड़ा देखकर खूब लाज शरम से शरमायी थी रंगमंच पर नजरें मिली तब मन में लड्डू फूटा था रंग बिरंगी फुलझड़ियों बीच एक तुम्हीं ने दिल लूटा था प्यार का मारा मैं बेचारा फिर से दिल को हार गया एक तेरी सूरत सीरत ने ललचाया मेरे अरमानों को सँवार गया अब फिर आया मेले का मौसम अबकी मौसम भी अच्छा है ठण्डी ठण्डी रुत मस्तानी और प्यार मौसम यह सच्चा है (मेरे अहसास से) २८/०९/२०२२ 🌷👰💓💝 ...✍️कमल शर्मा'बेधड़क' ©Pnkj Dixit 💞 मौसम कल के बदले आज मिलो तुम आज का मौसम अच्छा है ठण्डी - ठण्डी रुत मस्तानी एक प्यार तुम्हारा सच्चा है दिल ने तुमको चाहा दिलबर
R.S. Meena
राहें राह नहीं आसान, बस इतना समझ में आया है। अपने कदमों को उठाकर ही, मंजिल को पाया है।। उपदेशों में कामयाबी के भरमार तरीके दिखलाये, पग-पग पर अंगारे है, कोई न हमकों बतलाये। जब बहा पसीना़ अपने तन से,मन बहक ना पाया है। राह नहीं आसान, बस इतना समझ में आया है। अपने कदमों को उठाकर ही, मंजिल को पाया है।। कर्म से ही सबकों मिलता है, अपने पथ का सार, संयम से चलकर ही पुरे होते है,सपने अपरंपार। तेज दौड़कर भी शशक जीत ना पाया है। राह नहीं आसान, बस इतना समझ में आया है। अपने कदमों को उठाकर ही, मंजिल को पाया है।। टेड़ी-मेड़ी राहों पर भी सीधा चलना पड़ता है, लक्ष्य साधना में गिर कर भी उठना पड़ता है। राहों में पुष्प भी मिलेंगे, सबका मन ललचाया है। राह नहीं आसान, बस इतना समझ में आया है। अपने कदमों को उठाकर ही, मंजिल को पाया है।। राहें राह नहीं आसान, बस इतना समझ में आया है। अपने कदमों को उठाकर ही, मंजिल को पाया है।। उपदेशों में कामयाबी क
Pramod Kumar
DR. SANJU TRIPATHI
कृपया अनुशीर्षक मेंं पढें। 👇👇👇👇 बनवास को करके स्वीकार राम, सीता और लक्ष्मण सहित वन को गए। पंचवटी में कुटिया बनाकर पुष्पों-लता कुंजों से सजाकर चार चांद लगाए। राम की मोहिनी
Mahima Jain
~ ग़ज़ल ~ •| ओ नादान परिंदे घर आजा |• परिंदा उड़ा कुछ हासिल करने, मुश्किलों से टकराकर मुस्कुराया था, धूप कड़ी थी, बादल भी बरसे, तूफ़ानों से लड़कर ही उसने मुकाम बनाया था। उड़ा दूर तक नील गगन में, आज़ादी का स्वाद भी चखा, चमक दुनिया की चकाचौंध ने, उसका मन भरमाया था। हासिल को और हासिल करने उंची उड़ान वो भर के उड़ा, देख मसखरे की नौटंकी, परिंदा भी ललचाया था। सपनों को फिर टूटते देखा, आसमां में भी फिर जेल देखा, झूठी दुनिया की खोखली बुनियाद देख, पहली बार वो घबराया था। देर नहीं अभी शाम है बाकी, सब ठीक होगा ये आस है बाकी, महिमा पुकारे, लौट आ ए परिंदे, मैंने पहले भी तुझे बुलाया था।। ~ ग़ज़ल ~ •| ओ नादान परिंदे घर आजा |• परिंदा उड़ा कुछ हासिल करने, मुश्किलों से टकराकर मुस्कुराया था, धूप कड़ी थी, बादल भी बरसे, तूफ़ानों से