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Pranit Sharma
पहेलियों सी उलझी है, परेशानियों मेरे जीवन की, वो भी खुद सुलझना चाहती है, बस राह देख रही है किसी के मिलने की... -Pranit Sharma --साहित्यछंद-- #alone #पहेलियों
bhishma pratap singh
नित सूर्यदेव हम सारौं को, ये ही संदेश सुनाते हैं। तुमसे तो बच्चे अच्छे हैं, जो भोर में ही उठ जाते हैं।। मेरे उगने से पहले ही, वे भाग दौड़ कर लेते हैं। मेरे प्रकाश की लालिमा को, वे बाहों मे भर लेते हैं।। लेकिन जो मेरे उगने के, उपरान्त भी नहीं उठते हैं। जब तपन मेरी बढ़ जाती है, तब कहीं कार्य में खिटते हैं।। लगती है उन्हें बड़ी गरमी, तब मुझे कोसने लगते हैं। आलसी मनुज ऐसे हैं जो, नहीं कभी भोर में जगते हैं।। प्रात: जगने वालों का ही, तो स्वास्थ्य सही रह पाता है। जो समय से नहीं जगते हैं, उन्हें काया कष्ट सताता है।। सूरज से पूर्व ही जग जाओ, हर भोर का ये संदेश है। प्रात: की पावन बेला का, तो महत्व बड़ा ही विशेष है।। धन्यवाद। ©bhishma pratap singh #भोर का संदेश#हिन्दी कविता#काव्य संकलन#भीष्म प्रताप सिंह#संकलन #समाज एवं संस्कृति#अक्टूबर कृति
Dr. Bhagwan Sahay Meena
आदर सबको दीजिए, जग में सभी समान। चार दिनों की जिंदगी, करते क्यों अपमान। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Meena सब का सम्मान कीजिए
Ek villain
भाषा मनुष्य जीवन की अनिवार्यता है भारत एक भाग्यशाली देश है जहां संस्कृत तमिल मराठी हिंदी गुजराती मलयालम पंजाबी आदि जैसी अनेक भाषाएं सदियों से भारत की संस्कृति परंपरा और जीवन संघर्ष को आत्मसात करते हुए अपनी भाषा की यात्रा में निरंतर आगे बढ़ रही है भाषाओं के विविध देशों की अनोखी संपदा है जिसकी सकती तरह-तरह के कोलाहल में अपेक्षित ही रहती है इन सबके बीच व्यापक क्षेत्र में संवाद की भूमिका निभाने वाले हिंदी का जन्म एक लोक भाषा के रूप में हुआ था वह आज संदगी रूप से एक समृद्ध लोक भाषा थी जिसमें न केवल आम जनता बोलती थी बल्कि खुसरो सूर कबीर विद्यापति तुलसीदास जयंती मीरा रैदास रविंद्र खान जी ने कितने ही महान कवियों ने ऐसे अमर सत्य रचे जो समय बीतने के साथ-साथ अर्थ व्रत में निरंतर ताजा बने रहे का वाला उनका काव्य एक साथ आमजन से लेकर निपुण साहित्यकार तक सबके लिए आजाद शस्त्र रथ का स्थल बना रहा और उसको सब ने अपनाया परंतु भाषा स्वाभाविक ही नहीं समय संदर्भ में प्रचलित होती है वह विभिन्न प्रभाव को आत्मसात करते हुए रूप बदलती रहती है ©Ek villain #स्वभाषा में पूरा हो अमृत काल का संकलन #Hope
bhishma pratap singh
मत व्यर्थ में ताको मेरी ओर, असहाय स्वयं में हूँ अब मैं। हो गयी आयु अब अस्सी की, पर पीछे नहीँ हटा हूँ मैं।। लेकिन कुछ आप भी तो सोचो, कब तक मैं आगे आऊंगा? तुम युवा सभी हो मस्ती में, क्या मैं कर्तव्य निभाऊँगा ?? हो गया बहुत अब क्षमा करें, अब काम नहीं मैं आऊंगा। कुछ सच में चाहिए मार्ग दर्शन, कहना मैं अवश्य बताऊंगा।। है जन्म दिवस इसलिए आज, छोड़ा है पान मसाला भी। जीवन की अंतिम यात्रा की, हूँ ओर न अब तो करुँ गलती।। धन्यवाद। ©bhishma pratap singh #अमिताभ_बच्चन जी का जन्मदिन#कविता हिन्दी#काव्य संकलन#भीष्म प्रताप सिंह#संकलन #समाज एवं संस्कृति#अक्टूबर विशेष