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Shashank Patil
कित्येकदा विचार केला म्हटलं सांगून टाकावं एकदाचं, पण तुला गमावण्याची भीति कधी मनातून गेलीच नाही. कित्येकदा विचार केला म्हटलं सांगून टाकावं एकदाचं, पण तुला गमावण्याची भीति कधी मनातून गेलीच नाही. #prem #marathikavi #shayari #premkavita
Vedantika
ओछे की प्रीति, बालू की भीति ही बदले वक़्त इनके रंग बदल जाए सुख में साथ रहे तुम्हारे हमेशा वो दुख में अकेला छोड़ कर चले जाए जब चुभने लगेगी तुम्हारी खुशियाँ तो धोखे का नश्तर तुम्हें चुभो जाए इस ओछे की प्रीत से बचकर रहियो तकलीफ किसी से फिर कही न जाए दुनिया तुझे ही बदनाम करेगी अब नाम उसी का जगत में हो जाए ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_322 👉 ओछे की प्रीति, बालू की भीति लोकोक्ति का अर्थ ---- दुष्ट का प्रेम अस्थिर होता है। ♥️ इस पोस्ट को
Guru dayal Yadav
ग़ज़ल/ " कोना कहबै " ~~~~~~~~~ लोक'क शब्द चोरी क'के गीत बनेलौ ओ गीत कोना कहबै जे मानवता के दुश्मन छथि तिनका हम मित कोना कहबै ~~~~~~ जग में बैरी सघा भाई, पड़ोसीयाक बात किया मिठ ल'गै जगमें चोर'क बोलबाला छथि, सुपत्तकें तित कोना कहबै ~~~~~~~~ अनाचार बढ़ल किछ ढिठ पनामे सांच भेलय अंधविश्वास ने जेठकें मान ने छोटके आदर कहु ई रीत कोना कहबै ~~~~~~~ विद्यार्जन में कमी भ' सकैय' मुदा विद्याके कोनो सीमा नहि बिना लगाव आ बिना आत्म समर्पण के प्रीत कोना कहबै ~~~~~~~ धर्म छोड़लौं, दोसर'क खातिर सत्य कहैमें शर्म ल'गैय' मातृभूमि पर अत्याचार देखक' बहैत नोरके शीत कोना कहबै ~~~~~~~~ आंहरो लोक'क सहारा जग मे एकटा लाठी होइत अछि दोसर'क घरके इंटाक देवाल अपना घरके भित कोना कहबै ~~~~~~~~~~ मानलौं कतेको लोक इमान बेचलथि बिदेशी मुद्रामे तौलक' दुनियां किछो कहौ मुदा गामक दृष्टिमे पतित कोना कहबै ~~~~~~ईति~~~~ शब्द रचना :- गुरु दयाल यदुवंशी। मैथिली गजल / कोना कहबै (मैथिली कवि) ग़ज़ल/ " कोना कहबै " ~~~~~~~~~ लोक'क शब्द चोरी क'के गीत बनेलौ ओ गीत कोना कहबै जे मानवता के दुश्मन छथि त
Dr Upama Singh
ओछे की प्रीति भालू की भीति ऐसे लोग देकर प्यार की मीठी चाशनी गिरगिट की तरह हर पल बदलते अपना रंग ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_322 👉 ओछे की प्रीति, बालू की भीति लोकोक्ति का अर्थ ---- दुष्ट का प्रेम अस्थिर होता है। ♥️ इस पोस्ट को
Er.Shivampandit
दीप मेरे जल अकम्पित, धुल अचंचल ! सिन्धु का उच्छ्वास घन है, तड़ित् तम का विकल मन है, भीति क्या नभ है व्यथा का आँसुओं से सिक्त अंचल ! स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ, मीड़ सब भू की शिराएँ, गा रहे आँधी-प्रलय तेरे लिए ही आज मंगल । ©Er.Shivam Tiwari #Likho #दीप_मेरे_जल_अकम्पित, धुल अचंचल ! सिन्धु का उच्छ्वास घन है, तड़ित् तम का विकल मन है, भीति क्या नभ है व्यथा का आँसुओं से सिक्त अंचल !
Chanchal Jaiswal
थक जाने दो आवाज़ों को और पुकार निथर जाने दो छन जाने दो अथक चांदनी देखो चांद निकल आने दो मुग्ध मौन पर मन हो जाए ऐसी दृष्टि निखर आने दो फूलों पर तरंग का उठना पुलक हवा में घुल जाने दो और स्पर्श की सरस व्यंजना तंत्री में चंचल हो जाने दो अभासों को बनकर बादल पुनि - पुनि नित्य बरस जाने दो आसमान की रंगिम चिट्ठी हरित धरा मन रंग जाने दो मत पूछो तुम बात प्रीत की मत ओढ़ो कोई जात प्रीत की मत पूजो धर्म की वेदी मत समझो प्रमाद रीति की उन आंखों में देखो चंदा प्रतिमा हैं जो आप प्रीति की पूरी कविता caption में पढ़ें थक जाने दो आवाज़ों को और पुकार निथर जाने दो छन जाने दो अथक चांदनी देखो चांद निकल आने दो मुग्ध मौन पर मन हो जाए ऐसी दृष्टि निखर आने दो फूलों
Sahitya Vikas Manch
साहित्य विकास मंच के whatsapp group में आज का विषय - रचना भेजने या जुड़ने के लिये - 9714292905 whatsapp number. (साथ ही अनुप्रास अलंकार की जानकारी के लिये यह पोस्ट पढें ) धन्यवाद ©Sahitya Vikas Manch *दैनिक विषयानुसार काव्य सृजन* *दिनांक : 15/03/2021* *वार- सोमवार* *विषय क्रमांक - 44* *विषय - अलंकार* ( अनुप्रास अलंकार ) *परिभाषा -*