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Asheesh Mishra
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना॥ देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं। कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं॥ भावार्थ- "मैं तो यह जानता हूँ कि भगवान सब जगह समान रूप से व्यापक हैं, प्रेम से वे प्रकट हो जाते हैं, देश, काल, दिशा, विदिशा में बताओ, ऐसी जगह कहाँ है, जहाँ प्रभु न हों।" . ©Asheesh Mishra #राम #रामचरितमानस #रामायण
पंडित रामायण भजन
Unsplash पंडित रामायण भजन ©पंडित रामायण भजन #snow पंडित रामायण भजन
#snow पंडित रामायण भजन
read moreDev Rishi
मैंने उससे पूछा, कि...... मैं कौन था, उस हिस्से के आखरी अक्स में... खबसूरती इतना सी बढ़ी इसी प्रश्न में, कि.... ग़ैर ए हाथ खुद के नज़्म खो दिये... उसे भी कोई हक़ न था.., ख़ाक.. किसी के लिए.. कुछ नहीं था..!! ©Dev Rishi , प्रेम, त्याग, वियोग..!!
, प्रेम, त्याग, वियोग..!!
read moreParasram Arora
White वियोग की. पीड़ा से छटपटाती प्रेयसी का दर्द केवल बो चांदनी समझ सकती है क्योंकि उस पीड़ा से वो हर माह गुज़रती है जब चाँद से बिछड़ कर उसे अंधेरो मे अकेला रहना पड़ता है अँधेरी रातो मे कई बार वो रोती है बिलखती है और तकलीफ उसकी तब और भी बढ़ जाती है ये सोच कर कि "ज़ब मै अँधेरों मे रहती हूँ तोंमेरा चाँद कहा चला जाता है और किसके साथ रातें बिताता है" ©Parasram Arora वियोग क़ी पीड़ा
वियोग क़ी पीड़ा
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