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KAKE KA RADIO
मुझसे नफ़रत करने वालों, बुरी नज़रों से मेरी खुशियाँ उजाड़ दोगे क्या? मैं तो अब भी मौज़ में हूँ , कुछ उखाड़ लोगे क्या? घंटा
SHUBHRA
भले ही कितना टेसुयें बहा लो, अपनी एक्स को गालियां दे लो, नस काट लो मगर अगर दिल टूटने के बाद 'तेरे नाम' नहीं देखी, 'हम तेरे शहर में आए हैं' नहीं सुना, 'गुनाहों का देवता' नहीं पढ़ी, ओल्ड मॉन्क नहीं पी, 'एंटर वाली कविता' नहीं लिखी, फ़टी जींस नहीं पहनी तो आपका घंटा दिल नहीं टूटा ! - साभार #घंटा
Hari Mohan
भूख लगने पे अपने दोस्त के साथ किसी की शादी में घुस के खाना नही खाया तो घंटा जिन्दगी जी है तुमने घंटा
somnath gawade
एखाद्याची नकार 'घंटा' होकारामध्ये परावर्तित करण्यासाठी एक 'वाजवून' पहा. 😅😂🤣 #घंटा
somnath gawade
कायमच 'नकारघंटा' वाजवणाऱ्याच्या गळ्यात 'होकारघंटा' बांधायला हवी.😂🤣 #घंटा
somnath gawade
मंदिराची घंटा🔔 वाजवो ना वाजवो हल्ली फेसबुक आणि युट्युब ची घंटा🔔 वाजवणारी मंडळी सर्वदूर भेटतील.😂🤣 #घंटा
Bh@Wn@ Sh@Rm@
क्या दास्तान लिखूं इन शहीदो की जिन्होने वतन के लिये अपनी कुर्बानी दे दी जो देख नही सकते थे,भारत को जकडा हुआ खुद को बेडियो मे जकडे,नारे लगाते थे गली-गली सिर्फ अज़ादी ही मकसद नही थी इन शूरवीरो का भारत को एक-जुट होता देखना ख्वाब था इन वीरो का बचपन से जवानी तक लबो पर एक ही शब्द था वन्दे मतरम वन्दे मातरम एक ही नारा था ना आन्खो मे डर था ना दिल कमजोर था बस गोरो को उनकी औकात दिखाने का जज्बा था भूके प्यासे कितने ही दिन रहे जेलो मे प्राण त्याग दिये पर अपने प्रण पर अटल रहे ना सोचा ना समझा बस वतन से मुहब्बत कर ली इन क्रान्तीकारियो ने बचपन से ही मौत को अपनी दुल्हन समझ ली अग्रेजो ने इनकी मौत की तारिख भी तय कर दी भगत सिंह,सुखदेव ओर राजगुरु को धोके से फान्सी दे दी इतने अत्याचार होने पर भी जो डगमगाये नही आज ही के दिन वो फान्सी पर लटकते मुस्कराते रहे आखिरी सासं भी जिनकी इन्कलाब ज़िन्दाबाद बोलती रही मै उसी देश की बेटी हुं जिसकी लिखते लिखते आन्खे नम हो गई!! ©Bh@Wn@ Sh@Rm@ #शहीदी २४ मार्च
Deepali Mestry
सांसे भरके गुब्बारें में चल पडा वो किस्मत आज़माने हसता खिलखिलाता सफर था मौज मस्ती में कट़ रहा था सामने घना कोहरा था निला आसमान पहाडों सा खडा था सांवली घटा़ जब आ टकराई मंद मंद जब वो मुस्काई साथ उसे भी ले चला सफर पर साथ खुबसुरत था ड़गर कठीण थी संग जीने मरने की कसमें खाई थी जोर से तब इक आॉंधी आई गुब्बारे को चोंट पहुॅंचाई घंटा भी आक्रोश से जम के बरसी आॅंधी को औकात बताई इस सब में अब देर हुई थी गुब्बारें में सांसे कम थी ख्वाब अधुरे छो़ड चला था घटा से बिछडने का समय करीब था सांसे छो़डता ज़मिन पे आ गिरा हम जैसा ही सच्चा - साधा कुछ जाना - पहचाना था गुब्बारा शब्दवेडी #२४/३६५ #आम_आदमी_की_कहानी