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tanzim Khan
अकबर अक्सर बीरबल की अक्लमंदी और हाज़िर जवाबी से खुश होकर उसे ईनाम दिया करते थे. एक बार उन्होंने भरे दरबार में बीरबल को ईनाम देने की घोषणा की. लेकिन बाद वे ईनाम देना भूल गए. बीरबल कई दिनों तक इंतज़ार करता रहा, लेकिन उसे ईनाम नहीं मिला. मांगना उसे उचित नहीं लग रहा था और अकबर थे कि ईनाम देने का नाम नहीं ले रहे थे. अकबर के इस रवैये से बीरबल थोड़ा दु:खी था. एक दिन अकबर बीरबल को साथ लेकर सैर पर निकले. वे दोनों यमुना नदी के तट पर पैदल टहल रहे थे. तभी वहाँ से एक ऊँट गुज़रा. ऊँट की मुड़ी हुई गर्दन को देख अकबर के ज़ेहन में एक सवाल कौंध गया और उन्होंने फ़ौरन बीरबल से पूछा, “बीरबल, देखो इस ऊँट को. इसकी गर्दन मुड़ी हुई है. ऐसा क्या कारण है कि ऊँट की गर्दन मुड़ी हुई होती है?” अकबर का ये सवाल सुनकर बीरबल ने सोचा कि ये अच्छा मौका है बादशाह सलामत को ईनाम के बारे में याद दिलाने का और वह बोला, “जहाँपनाह, ऊँट ने किसी से कोई वादा किया था और अपना वादा निभाना भूल गया था. इसलिए भगवान ने इसकी गर्दन मोड़ दी है. ऐसा भगवान हर उस इंसान के साथ करता है, जो वादा करके उसे निभाता नहीं है.” बीरबल की बात सुनकर अकबर को याद आया कि उन्होंने बीरबल को ईनाम देने का वादा किया था. लेकिन अब तक उसे ईनाम नहीं दिया है. वे बीरबल की लेकर फ़ौरन राजमहल पहुँचे और वादे अनुसार बीरबल को उसका ईनाम दे दिया. इस तरह बीरबल ने चतुराई दिखाते हुए बिना मांगे ही अपना ईनाम प्राप्त कर लिया. ©tanzim Khan #ऊँट की गर्दन
Rajkumar Kushwahs
हमने इश्क किया है तो इश्क निभाए गए, हम आप के जैसे नही है, जो की वादे से मुकर जाएं गए V. K. Raj ©Rajkumar Kushwahs न्यू फोटो के साथ न्यू शायरी