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Stories related to फिल्म घूंघट में घोटाला

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söñâlï srívåstãvâ

घूंघट में

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घूंघट में चाँद चमक उठी निगाहें नूरानी चेहरे को देख
सितम ग़र घूंघट मे अफताब छुपाये बैठे थे... घूंघट में

Anuj Ray

घूंघट में चांद

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घूंघट में चाँद  कब तक  छुपे  रहोगे घुंघट में मेरे चांद 
तड़पा के दिल को मेरे तुम्हें घुटन नहीं होती घूंघट में चांद

prashant singh

# घूंघट में चाँद. #कविता

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घूंघट में चाँद ग़जब की शाम आयी है,  
घूंघट में चाँद निकला है|
मिलूंगा आज उनसे मैं, 
अभी फरमान निकला है| 
लगाऊं कस के गले उनको, 
ये दिल में अरमान निकला है |
ग़जब की शाम आयी है, 
घूंघट में चाँद निकला है ||
                             stylo... # घूंघट में चाँद.

KK Mishra

घूंघट में गजल

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 घूंघट में गजल

writer##Zeba Noor

घूंघट में चांद

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घूंघट में चाँद वो देखो घूंघट में चांद बैठा है
मेरे यार का दीदार कर रहा है 
छुप छुप कर देखता है उसे  
मेरे ही यार को अपना बनाए बैठा है । घूंघट में चांद

R K Mishra " सूर्य "

Sunil Kumar Maurya Bekhud

VINIT TIWARY

घोटाला #कविता

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बिक रही सरकारी नौकरी, बिहार  सरकार मे।
परीक्षा से पहले आ जाता 
प्रश्न-उत्तर बाजार में।।
सभी जगह घोटाला,
पैसे से बहाली।
रोना आता है देखकर,
शिक्षा की बदहाली।। घोटाला

Jay Krishan Kumar

आज घूंघट में है चाँद ... #कविता

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घूंघट में चाँद आज घूंघट में चाँद है और , 
बंदगी में है आशिकी  । 
नूर है जो  घूंघट की ओट से छटक रही , 
बढ़ा रही है इश्क  की तृष्णगि ।
है जुस्तजू कि सरक जाए ये पर , 
पर लुभा रही है घूंघट से छिटकती चांदनी ।  
आज घूंघट में चाँद है और , 
बंदगी में है आशिकी । 

जी करता है यूँ ही थमा सा रहे वक्त , 
और बस प्रकृति गाती रहे प्रेम - रागिनी । 
अमावस के चक्र से पड़े बस , 
यूँ ही छिटकटती रहे पूर्णमासी कि चांदनी । 
है जुस्तजू कि लिपट जाऊं इससे पर , 
पर आंखें चाहती है निहारता रहूँ यूँ ही । 
आज घूंघट में है चाँद और , 
बंदगी में है आशिकी ॥ आज घूंघट में है चाँद ...

Anand Kumar Ashodhiya

घोटाला

पिछले कुच्छ दिनों से मेरा मन, बहुत मचल रहा है
लालच का महादानव मुझे उद्वेलित कर, आत्मा को कुचल रहा है

बेईमानी से कमाने की इच्छा, बलवती हो रही है
शिष्टाचार और सद्भावना, अन्दर ही अन्दर सती हो रही है

दिल करता है, भ्रष्ट आचार से, कोई घोटाला कर लूँ
अनीति और हराम की कमाई से, अपना घर भर लूँ

जनता की खून पसीने की कमाई, पल भर में डकार जाऊं
खुद पर लगे आरोपों को, पूरी बेशर्मी से नकार जाऊं

खाकर रकम गरीबों की, बेशर्म और नम्फ्ट हो जाऊं
सब इल्जामों पे मिट्टी डाल, कुम्भकर्णी नींद सो जाऊं

ये "थर्ड रेट" आन्दोलनकर्ता मेरा क्या कर लेंगे
अपने खिलाफ मुंह खोलने वाले, एक एक को धर लेंगे

हार, बेइज्जती और सजा के बावजूद भी, नहीं आऊंगा बाज़
करके झूठे वादे धोखे, पांच साल बाद, फिर पहनूंगा ताज़

घपले और घोटालों के फ़ेरहिस्त में, अपना नाम लिखवाऊंगा
करके कायम अराजकता, फिर धृतराष्ट्र हो जाऊँगा

रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइ

©Anand Kumar Ashodhiya #घोटाला 

#MereKhayaal
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