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Mahadev Son
आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती समुद्र से बादल बन मेंह बनकर फिर बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में चक्र आत्मा का भी कुछ ऐसा आत्मा पवित्र और शुद्ध होती मैला तो तन और मन होता जल को क्या मालूम बिस्लेरी का काम बुझाना प्यास जल का आत्मा का वास तन का मन क्या जाने उसको तो बस रहता इंतजार उस दिन मिलन होना प्रभु से कब इसी आस में जीना ©Mahadev Son आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती समुद्र से बादल बन मेंह बनकर फिर बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में च
Sarfaraj idrishi
क्यों वादा करके निभाना भूल जाते हैं, लगा कर आग फिर वो बुझाना भूल जाते हैं। 😔 ©Sarfaraj idrishi क्यों वादा करके निभाना भूल जाते हैं, लगा कर आग फिर वो बुझाना भूल जाते हैं।Jagsir Singh narendra bhakuni h m alam s AmitSinghRajput ASR Ambik
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Blue Moon ग़ज़ल किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं । वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१ बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक । मगर मजबूर हूँ उनका ठिकाना आज भी हूँ मैं।।२ मिलेंगे वो गली में तो बदल मैं रास्ता दूँगा । खबर ही थी नहीं ये की निशाना आज भी हूँ मैं ।।३ न जाने क्यूँ कदम मेरे खिचें यूँ ही चले जाते । कोई बतला मुझे ये दे मिटा क्या आज भी हूँ मैं ।।४ जुदा होकर भी उनसे क्या कहूँ दिल की तमन्ना को दिया सा राह में ये दिल जलाता आज भी हूँ मैं ।।५ खिलौना वह समझकर जिस तरह मुझ से यहाँ खेलें । उन्हीं से यार अब रिश्ता निभाता आज भी हूँ मैं ।।६ सुना दो तुम प्रखर अब तो खबर उस बेवफ़ा की कुछ । यहाँ जिसके लिए आसूँ बहाता आज भी हूँ मैं ।।७ १६/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल किसी के प्यार का दीपक जलाता आज भी हूँ मैं । वफ़ा करके भी उससे क्यों जुदा सा आज भी हूँ मैं ।।१ बुझाना चाहता हूँ मैं वफ़ा का आज वह दीपक । म