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Prince Gupta
"काश ये तकनीक न होती तो हम भी आज बेजुबान जानवरों की तरह अपने ही जज्बातों में कैद न होते ।" @ehsaasinquotes ©Prince Gupta #addiction #मोबाइल#मोबाइल #MOBILE
Dr Mahesh Kumar White
वो पुराने मर्ज का डॉक्टर निकला। कहता है तुम्हारा जख्म अभी नया है।। ©Dr Mahesh Kumar White #डॉक्टर
Ankit waghela
वो हर मर्ज की दवा बांटता था। लोग प्यार से नहीं, प्यार का डॉक्टर कहा करते थे! चौखट पे ही दम तोड दिया आज, किसे था तसव्वुर, रगमत का वो रोगी, खु़द मोहब्बत का मारा था! डॉक्टर!
MUKESHKumarRAJPUT57
डॉक्टर ईश्वर का रूप होता है और वह हमेशा कोशिश करता है पेशेंट को बचाने की ©mukesh kumar Vestige #डॉक्टर
Anurag Singh
ईश्वर सबके जीवन की रक्षा खुद से नही कर पाते इसलिए इस धरती पर अपने रूप में डॉक्टर को भेज दिया।” “एक डॉक्टर ही होता है जो रोते हुए आये हुए को हँसाते हुए भेजता है। जब आप एक बीमारी का इलाज करते है, तो सबसे पहले मन का इलाज करते है। बीमारी से लड़ने की ताकत एक डॉक्टर ही हमे देता है। ©MrSingh डॉक्टर
आशिष गंगाधरजी चोले
वाटू लागे आम्हा जेव्हा रोगाचा त्रास येते आठवण फक्त तेव्हाच डॉक्टरांची हमखास लावतो अचूक अंदाज बघुनी रोग्याची लक्षणे रक्तसंबंध नसतांनाही सर्वांची घेतो काळजी कटाक्षाने डॉक्टर म्हणून जगतांना पहाटेचे सूर्यनमस्कार न संध्याकाळच्या सूर्यास्ताचे नाव ओठी माय बाप अन लेकरंही आतुर यांच्या भेटीसाठी मरू लागले लोकं जेव्हा उपचार नसलेल्या रोगाने तेव्हा बरे केले डाक्टरांनीच स्वतःच्या अथक परिश्रमाने भीती असते डॉक्टरांनाही होईल लागण विषाणूची रोग्यांपासून पर्वा न करता जीवाची आणतात रोग्यांना परत मृत्यूच्या दारातून कोरोनाच्या या वापरलेल्या किटमध्ये डॉक्टर घामाने ओथंबुन निघतात देवाची होणारी कमतरता डॉक्टरच पूर्ण करतात लेखन:-आशिष गंगाधरजी चोले. डॉक्टर
ntnrathore
अकड़ते थे जो कभी, जरा जरा सी बात पर, गरदन झुकाये घूमते हैं। सर उठा के मिलते थे कभी, मिरे शहर के लोग। अब मोबाइल में आँखे गड़ाए दिखते हैं। ओये, अबे , भिया सुन के नज़रे घुमाते थे, अब महज नोटिफिकेशन की आहट सुनते हैं अब बस मोबाइल में आंखे गड़ाए दिखते हैं। अखबारों, किताबो, लायब्ररी वाचनालयों में , सुबह शाम टकरा जाते थे कभी। अनंत सी दुनिया का इल्म,अब हथेली में ढूंढते हैं। अब मोबाइल में आंख गढ़ाए दिखते हैं। शिकायत करें क्या, शिकवा करें किससे, अपनी भी फितरत कहाँ रही पहले जैसी डायरी में दर्ज करते थे,सारे अहसास कभी अब नोटपैड के टच में डूबे रहते हैं। लफ़्ज़ों में तो कोई फर्क नही होता मगर, पन्ने में जो मिलता था लम्स, वो टच में ढूंढते हैं। अजीब हो चुके हैं हम, कभी हाथ की लकीरों में, तो कभी हथेली में, दुनिया ढूंढते हैं। ......बस मोबाइल में आँखे गड़ाए दिखते हैं। नवाब"सैम" मोबाइल