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अनिता कुमावत
आ धरती धोरा री वीर - वीरांगणा री शान पृथ्वी राज , राणा प्रताप, राणा सांगा जस्या वीरां री आ धरती पन्नाधाय, हाडा राणी, राणी पद्मिनी रे बलिदान सूं रंगी आ धरती मीरां सी दासी, करमा सी भगतन बस अठे रेत रां धोरा सूं लेर झीलां री नगरी अठे आपणां पराया रो राखां माण मेहमान नवाजी देखण खातर पधारो म्हारे राजस्थान ...!!! वीर सपूतां रे बलिदान री धरती म्हारे राजस्थान री होवे साका रणभूमि माय ज्वाला जौहर स्वाभिमान री गढ़, किलां , महल, हवेलियाँ सुणावे गाथा सांस्क
वीर सपूतां रे बलिदान री धरती म्हारे राजस्थान री होवे साका रणभूमि माय ज्वाला जौहर स्वाभिमान री गढ़, किलां , महल, हवेलियाँ सुणावे गाथा सांस्क #yqdidi #yqhindi #yqpoetry #yqlife #राजस्थानी_भासा_म्हारो_स्वाभिमान #राजस्थान_दिवस
read moreVikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 8 माता सीता का मन, श्री राम के चरणों में निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥8॥ और अपने पैरो में दृष्टि लगा रखी है- मन रामचन्द्रजी के चरणों में लीन हो रहा है-सीताजीकी यह दीन दशा(दुःख) देख कर,हनुमानजीको बड़ा दुःख हुआ॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम अशोक वाटिका में रावण और सीताजी का संवाद-रावण का अशोक वन में आना तरु पल्लव महँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई॥ तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा॥ हनुमानजी वृक्षों के पत्तो की ओटमें छिपे हुए,मन में विचार करने लगे कि हे भाई अब मै क्या करू?इनका दुःख कैसे दूर करूँ?॥उसी समय बहुत सी स्त्रियोंको संग लिए रावण वहाँ आया। जो स्त्रिया रावणके संग थी,वे बहुत प्रकार के गहनों से बनी ठनी थी॥ रावण सीताजी को भय दिखाता है बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा॥ कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी॥ उस दुष्ट ने सीताजी को अनेक प्रकार से समझाया।साम, दाम, भय और भेद अनेक प्रकार से दिखाया॥रावणने सीता से कहा कि हे सुमुखी!जो तू एक बार भी मेरी तरफ देख ले तो हे सयानी, मंदोदरी आदि सब रानियो को॥ सीताजी तिनके का परदा बना लेती है तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा॥ तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही॥ (जो ये मेरी मंदोदरी आदी रानियाँ है, इन सबको)तेरी दासियाँ बना दूं, यह मेरा प्रण जान॥रावण का वचन सुन बीचमें तृण रखकर (तिनके का आड़ – परदा रखकर),परम प्यारे रामचन्द्र जी का स्मरण करके,सीताजी ने रावण से कहा – सीताजी रावण को श्रीराम के बाण की याद दिलाती है सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥ अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥ हे रावण! सुन,खद्योत अर्थात जुगनू के प्रकाश से कमलिनी कदापी प्रफुल्लित नहीं होती।किंतु कमलिनी सूर्यके प्रकाश से ही प्रफुल्लित होती है।अर्थात तू खद्योत के (जुगनूके) समान है, और रामचन्द्रजी सूर्यके सामान है॥सीताजी ने अपने मन में ऐसे समझ कर, रावणसे कहा कि(जानकी जी फिर कहती है, तू अपने लिए भी ऐसा ही मन मे समझ ले)रे दुष्ट! रामचन्द्रजीके बाण को अभी भूल गया क्या? वह रामचन्द्रजी का बाण याद नहीं है॥ सठ सूनें हरि आनेहि मोही। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥ अरे निर्लज्ज! अरे अधम! रामचन्द्रजी के सूने तू मुझको ले आया। तुझे शर्म नहीं आती॥ Continue... Tuesday..., विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 335 से 346 नाम 335 पुरन्दरः देवशत्रुओं के पूरों (नगर)का ध्वंस करने वाले हैं 336 अशोकः शोकादि छः उर्मियों से रहित हैं 337 तारणः संसार सागर से तारने वाले हैं 338 तारः भय से तारने वाले हैं 339 शूरः पुरुषार्थ करने वाले हैं 340 शौरिः वासुदेव की संतान 341 जनेश्वरः जन अर्थात जीवों के इश्वर 342 अनुकूलः सबके आत्मारूप हैं 343 शतावर्तः जिनके धर्म रक्षा के लिए सैंकड़ों अवतार हुए हैं 344 पद्मी जिनके हाथ में पद्म है 345 पद्मनिभेक्षणः जिनके नेत्र पद्म समान हैं 346 पद्मनाभः हृदयरूप पद्म की नाभि के बीच में स्थित हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 8 माता सीता का मन, श्री राम के चरणों में निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥8॥ और अपन
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 8 माता सीता का मन, श्री राम के चरणों में निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥8॥ और अपन #समाज
read morePushpendra Pankaj
जब भी एक की पीङा कहानी बनी, चंद लोगों के आखों का पानी बनी, जितने लोगों ने झेला है,ऐसा ही कुछ उनसे पूछो कि कैसी कहानी बनी ।। वो कहेंगे कि जानी पहचानी बनी , लगा ऐसा कि खुद पर कहानी बनी , पर कहेंगे नहीं आगे करना है क्या? भूल जाएंगे, बात आनी-जानी बनी।। जुर्म पर जुर्म ऐसे ही सहते रहो , निष्क्रिय,निस्तेज,असहाय बहते रहो, समय के संग रंग ढंग बदल जायेंगे , फिर सुनेंगे कि फिर से कहानी बनी ।। नियति बन चुकी है हमारी यही, कहेंगे बहुत, हमने कितनी सही, पर उपाय करेगा कोई और ही , अपनी हर बार की ये कहानी बनी। लोग हमको सहजता से ठग जाते हैं देख रास्ता सुरक्षित सा भग जाते है ये आदत चलन मे बदल जाती है यह जानी कहानी बेमानी बनी ।। पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj आदत पुरानी बनी
आदत पुरानी बनी #कविता
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