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Santosh Jangam
Ravendra
Ravendra
महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह
vjcgigfifififjfjfjgjgjfjgjgigkgkgkgkgkgkg ©महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह आंतरराष्ट्रीय सर्व मराठी भाषिक साहित्यिकांचे ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूहात ’ सहर्ष स्वागत आहे . ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह ’ या
महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह
Blue Moon nsjsjsjsjsjsjsnsnsnsjsjsjnsjsjsnsnsn ©महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह आंतरराष्ट्रीय सर्व मराठी भाषिक साहित्यिकांचे ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूहात ’ सहर्ष स्वागत आहे . ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह ’ या
poonam atrey
कहानी ( विवाह ) बंधन सात जन्मों का शेष भाग... कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें 👇👇👇👇👇 ©poonam atrey #विवाह #बन्धनजन्मोंका मगर डॉली तो जैसे कलियुग की सावित्री थी इतनी जल्दी कैसे हिम्मत हार जाती ।सास ससुर के मुँह मोड़ने के बाद उसने स्वयं
Ravendra
Mukesh Poonia
आप जितने अधिक अच्छे विचार एकत्र करेंगे, आप उनसे प्रभावित होने के लिए उतना ही अधिक चुन सकेंगे। . ©Mukesh Poonia #titliyan आप जितने अधिक #अच्छे विचार एकत्र करेंगे, आप उनसे #प्रभावित होने के लिए उतना ही अधिक #चुन सकेंगे।
N S Yadav GoldMine
राजन। इस प्रकार बहुत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर फूट-फूट कर रोने लगे पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: स्त्री पर्व सप्त़विंष अध्याय: श्लोक 21-29 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 अहो। आपने इस गूढ रहस्य को छिपाकर हम लोगों को मार डाला। कर्ण की मृत्यु से भाईयों सहित हमें बड़ी पीड़ा हो रही है। अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र और पान्चालों के विनाश से और कुरूकुल इस पतन से हमें जितना दु:ख हुआ था उससे सौ गुना यह दु:ख इस समय मुझे अत्यन्त व्यथित कर रहा है। 📜 अब तो मैं केवल कर्ण के ही शोक में डूब गया हूं, और इस तहर जल रहा हूं, मानो किसी ने जलती आग में रख दिया हो। यदि पहले ही यह बात मुझे मालूम हो गयी होती तो कर्ण को पाकर हमारे लिये इस जगत् में कोई स्वर्गीय वस्तु भी अलभ्य नहीं होती तथा कुरूकुल का अंत कर देने बाला यह घोर संग्राम भी नहीं हुआ होता। 📜 राजन। इस प्रकार बहुत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर फूट-फूट कर रोने लगे। रोते-रोते उन्होंने धीरे-धीरे कर्ण के लिये जलदान किया। यह सब सुनकर वहां एकत्र हुई सारी स्त्रियां जो वहां जलांजलि देने के लिये सब ओर खड़ी थीं सहसा जोर-जोर से रोने लगीं। 📜 तदन्तर बुद्धिमान कुरूराज युधिष्ठिर ने भाई के प्रेम से कर्ण की स्त्रियों को परिवार सहित बुलवा लिया और उन सबके साथ रहकर उन धर्मात्मा बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर विधि पूर्वक कर्ण का प्रेत कृत्य सम्पन्न किया। तदन्तर वे बोले- मुझ पापी ने इस रहस्य को न जानने के कारण अपने बड़े भाई को मरवा दिया। 📜 अतः आज से स्त्रियाँ के मन में कोई गुप्त रहस्य नहीं छिपा रह सकेगा। ऐसा कहकर ब्याकुल इन्द्रियों वाले राजा युधिष्ठिर गंगाजी के जल से निकले और समस्त भाईयों के साथ तट पर आये।। एन एस यादव।। {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 स्त्रीपर्व सम्पूर्ण।। ©N S Yadav GoldMine #Aurora राजन। इस प्रकार बहुत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर फूट-फूट कर रोने लगे पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: स्त्री पर्व सप्त़विंष अध्याय: श्
N S Yadav GoldMine
युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 19-16 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था, उन्हीं दिनों तीर्थ यात्रा के प्रसंग से मुझे एक महात्मा का इस रूप में अनुग्रह प्राप्त हुआ। तीर्थ यात्रा के समय देवर्षि लोमष का दर्षन हुआ था। उन्हीं से मैंने यह अनुस्मृति विद्या प्राप्त की थी। इसके सिवा पूर्व काल में ज्ञान योग के प्रभाव से मुझे दिव्य दृष्टि भी प्राप्त हो गयी थी। धृतराष्ट्र ने पूछा- भारत। यहां जो अनाथ और सनाथ युद्धा मरे पड़े हैं, क्या तुम उनके शरीरों का विधि पूर्वक दाह संस्कार करा दोगे। 📜 जिनका कोई संस्कार करने वाला नहीं है तथा जो अग्निहोत्री नहीं रहे हैं, उनका भी प्रेत कर्म तो करना ही होगा, तात । यहां तो बहुतों के अंतेष्टि कर्म करने हैं, हम किस-किस का करें। युधिष्ठिर। जिनकी लाशों का गरूड़ और गीध इधर-उधर घसीट रहें हैं, उन्हें तो श्राद्व कर्म से ही शुभ लोक प्राप्त होंगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- महाराज। राजा धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर ने सुधर्मा, धौम्य, सारथी संजय, परम बुद्धिमान विदुर, कुरूवंषी युयुत्सू तथा इन्द्रसेन आदि सेवकों एवं सम्पूर्ण सूतों को यह आज्ञा दी कि आप सब लोग इन सबके प्रेत कार्य को सम्पन्न करावें। 📜 ऐसा न हो कि कोई भी लाष अनाथ के समान नष्ठ हो जाये। धर्मराज के आदेष से विदुरजी, सारथी संजय, सुधर्मा, धौम्य तथा इन्द्रसेन आदि ने चंदन और अगर की लकड़ी कालियक, घी, तेल, सुगन्धित पदार्थ ओर बहुमूल्य रेषमी वस्त्र आदि बस्तुऐं एकत्रित कीं, लकडि़यों का संग्रह किया, टूटे हुए रथों और नाना प्रकार के अस्त्र-षस्त्रों को भी एकत्र कर लिया। फिर उन सबके द्वारा प्रयत्न पूर्वक कई चिताऐं बनाकर क्रम से सभी राजाओं का शास्त्रीय विधि के अनुसार उन्होंने शांत भाव से दाह संस्कार सम्पन्न कराया। 📜 राजा दुर्योधन, उनके निनयानवें माहरथी भाई, राजा शल्य, शल, भूरिश्रवा, राजा जयद्रथ, अभिमन्यु, दुषासन पुत्र, लक्ष्मण, राजा धृष्टकेतु, बृहन्त, सोमदत्त, सौसे भी अधिक संजय वीर, राजा क्षेमधन्वा, बिराट, द्रुपद, षिखण्डी, पान्चालदेषीय द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, युधामन्यु, पराक्रमी उत्तमौजा, कोसलराज बृहदल, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सुबल पुत्र शकुनि, अचल, बृषक, राजा भगदत्त, पुत्रों सहित अमर्षशील वैकर्तन कर्ण, महाधनुर्धर पांचों कैकय राजकुमार, महारथी त्रिगर्त, राक्षसराज घटोत्कच, बक के भाई राक्षस प्रवर अलम्बुस और राजा जलसंघ- इनका तथा अन्य बहुतेरे सहस्त्रों भूपालों का घी की धारा से प्रज्वलित हुई अग्नियों द्वारा उन लोगों ने दाह कर्म कराया। 📜 किन्ही महामनस्वी वीरों के लिये पितृमेघ (श्राद्वकर्म) आरम्भ कर दिये गये। कुछ लोगों ने वहां सामगान किया तथा कितने ही मनुष्यों ने वहां मरे हुए विभिन्न जनों के लिये महान् शोक प्रकट किया। सामवेदीय मंत्रों तथा ऋचाओं के घोष और स्त्रियों के रोने की आवाज से वहां रात में सभी प्राणियों को बड़ा कष्ट हुआ। उस समय स्वल्प धूप युक्त प्रज्वलित जलाई जाती हुई चिता की अग्नियां आकाष में सूक्ष्म बादलों से ढके हुए ग्रहों के समान दिखाई देती थी। एन एस यादव।।। 📜 इसके बाद वहां अनेक देसो से आये हुए जो अनाथ लोग मारे गये उन सबकी लाशों को मंगवाकर उनके सहस्त्रों ढेर लगाये। फिर घी-तेल में भिगोई हुई बहुत सी लकडि़यों द्वारा स्थिर चित्त बाले लोगों से चिता बनाकर उन सबको विदुर जी ने राजा की आज्ञा के अनुसार दग्ध करवा दिया। इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर कुरूराज युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये। ©N S Yadav GoldMine #Sitaare युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्ल