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अरविंद शेलार
मावशी.... फटाके बाहेर वाजवा....☺️☺️ .
दीप बोधि
सूर्य की लालिमा जा चूकी थी। रात की कालिमा छा चूकी थी। घनघोर तिमिर छाया हुआ था। पक्षी अपने आशियाने में थे। कुत्ते भौंक रहे थे,पहरा दे रहे थे। मै गहरी नींद में सोया हुआ था। सपने में बातें कर रहा था रात से। पूछ रहा था उसकी कहानी रात से। बोली-मैं आती हूं आलोक भाग जाता है। चारों और मेरा ही साया छा जाता है। मैं विवश हूं नहीं मिल पाती दिन से। लोगों को काम से आराम दिलाती दिन से। रवि,होता मेरे अधीन कुछ नहीं कर पाता। विश्व!पर मेरा ही शासन चलता। चंद्रमा मेरे पीछे पीछे है आता। अपनी दूधिया रोशनी में मुझे नहलाता। मै खो जाती हूं,उसकी चांदनी के साथ। मुझे निहारते तुम चांदनी के साथ। सोचते रहते न जाने क्या! तुम अपनी यादों के साथ। फिर मै, मजबूर हो जाती हू जाने को। अपनी अगली कहानी गढ़ने को। सोचती हूं,थकी हूं,अब आराम करूं। मस्टर का रात में बोलना। बच्चे की शिशकियों का मूंह खोलना। अब रूकूं ना चली जाऊं,बेचारे दिन को आजाद करू। मेरा अहसान मानो, तुमको दिलाती हूं चैन। फिर भी लोग डरते हैं हाय!क्या!है ये रैन। मै डराती हूं,सूलाती हूं,जगाती हू। जब नींद नहीं आती,रात आ जाती है। ले जाती है छत पर टिमटिमाते तारों की सैर कराती है। ©Kumar Deep Bodhi #रात "रात की कहानी
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
बचपन की वो रात भी क्या रात होती थी जब कच्चे मकानों की छतों पर दादी नानी की कहानी और मां की गोदीहोती बचपन कीउस रात की बात करते जब लाइट से चलने वाले पंखे नहीं हो जब हाथ के पंखी से मां हवा करतीं थीं रात में गर्मी के मौसम में जब गर्मी लगती पेड़ो को हवा करे ऐसी प्रार्थना करते थे जब डरावनी रात की बात हो तो पीपल के पत्तों की आवाज़ से डर जाया करते थे जब डर लगता तो मां अपने आंचल में हम बच्चो को छुपा लिया करती थी जब साय साय की आवाजें आती थी सुबह उठ कर रात की बात होती थी ©Chandrawati Murlidhar Sharma उन दिनों की रात की बात # रात की बात
Arvind Singh
मिलन की रात अब ढल कर सुबह की औंस बन आयी कही एक खवाब छुटा था किसी ने ली थी अंगड़ाई।। #NojotoQuote मिलन की रात #अरविंद #रात #इश्क़
Amit Singhal "Aseemit"
नवरात्रों के नौ दिन होंगे और होंगी नौ गरबे की रात, भक्ति, शक्ति, खुशी, उत्साह व उमंग की होगी बात। ©Amit Singhal "Aseemit" #गरबे #की #रात
।।दिल की कलम से।।
अब अपनों से ज्यादा, गैरों पर एतबार रहता है, गैरों से शिकवा कैसी, मुझे अपना ही दर्द देता है। दर्दे-ग़म बांटने को अक्सर, तलाशे नज़रें हमदर्द को, नही मिलता अब कोई, जो मिला तमाशबीन लगता है। ग़मे-दर्द की दिल को, मेरे आदत हो गई है, ग़मे-दर्द लगता है अब, जिंदगी हो गई है। कोई अपना बना कर, मुझको ज़ख्म देता है, कोई मुहब्बत जगा, बस तंहा छोड़ देता है। ©।।दिल की कलम से।। रात की तंहाईयाँ
Rao Suresh
साथ जीने मरने कि है रात एक दूजे का साथ हो तो कट जाती है यह रात इक दूजे संग पूरी बीत जाए रात और ढेर सारी करे पूरी रात मुलाकात ©Rao Suresh रात की मुलाकात
Rupesh Soni
कहानियाँ तो रोज़ सुनता हूँ, उनमें ही कुछ सपने, अपने बुनता हूँ। हक़ीक़त ना हो जाये ये दिन में कहीं, उन्हें कर किरणों से ओझल मैं चुनता हूँ।। करवटों की आहट से रुक ना जाए कहीं ये सफ़र, ज़रा रात की खामोशी भी, आहिस्ते से सुनता हूँ। कहानियाँ तो रोज़ सुनता हूँ, उनमें ही कुछ सपने, अपने बुनता हूँ।। ©Rupesh Soni रात की बातें
चाँदनी
काटती हुई शाम को तेरी यादों के बहाने बरकरार रखा था रात की ख़लिश ने मुझे बर्बाद कर डाला... ©chandni #रात की ख़लिश