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Shailendra Anand
जंरचना दिनांक 13,,११,,२०२३ वार सोमवार समय ््सुबह ९,,००बजे ््््् शीर्षक ्् शीर्षक छाया चित्र मौरपंख में विराजित कृष्ण कन्हैया लाल सेठिया जी सेठ जी अन्नपूर्णा अन्नंअनामय में विराजित अन्नकूट महोत्सव प्रसाद ने संजाया गया श्रीनाथजी मंदिर को मन प्रसन्न है।। ््््् ईश्वर सत्य है अन्नंअनामय देवी भवानी सिंह वाहिनी कूष्माण्डा शुभदास्तु सदा करुणाकरणं श्रीं महालक्ष्मी देवीभ्यों से अपनी रूह मे खो कर प्यार करने वाले ।। श्रीं नाथजी से सुसज्जित श्रीनाथ जी के श्री चरणों में समर्पित अपनत्व करिष्यामि तदपश्यात कर्म भूमि वर्चस्व है ,, अन्नपूर्णा अन्नंअनामय में अन्नकूट प्रसादी ग्रहण में मंगलमय हो,, प्यारा सा जीवन फूलों से सजाया गया है।।्््् ्््््कवि शैलेंद्र आनंद १३नवम्बर २०२३httpshttps://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz://m.facebook.comhttps://m.facebook.com/story.php?story_fbidhttps://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz है।। ©Shailendra Anand #ShubhDeepawअन्नकूटमहोत्सवव श्रीनाथ नाथद्वारा जी के श्रीचरणों में यह रचना मेरी ्शैलेन्द़ आनंद देवास गन्धर्व नगरी मध्यप्रदेश से ali
Nasamajh
"बहुत मुश्किल है कोई यूँ वतन की जान हो जाए तुम्हें फैला दिया जाए तो हिन्दुस्तान हो जाए..!” भारतीयता के प्रतीक पुरूष, अजातशत्रु, युग-ऋषि, विज्ञान-गन्धर्व, हमारे सबसे प्रिय गुरु भारत रत्न स्व एपीजे अब्दुल कलाम साहब के जन्मदिवस पर उन्
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} भगवान श्री कृष्ण जी से बढ़कर दूसरा कोई प्राणी नहीं है। ब्रह्ममय महाविष्णु ही सबके राजाधिराज हैं, उन्हीं को ईश्वर समझना चाहिये। वे श्रीहरि सबके कर्ता हैं, किंतु उनका कोई कर्ता नहीं है। वे विष्णु ही मनुष्य, किन्नर, यक्ष, गन्धर्व, सर्प, राक्षस, देव, दानव और नाग सबके अधीश्वर हैं। ©N S Yadav GoldMine #Bhaidooj {Bolo Ji Radhey Radhey} भगवान श्री कृष्ण जी से बढ़कर दूसरा कोई प्राणी नहीं है। ब्रह्ममय महाविष्णु ही सबके राजाधिराज हैं, उन्हीं
Bhavana kmishra
🌹🌹नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ 🌹🌹 🌹🌹सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि. 🌹🌹 🌹🌹सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥ 🌹🌹 🌹🌹अमल कमल संस्था तद्रज:पुंजवर्णा, 🌹🌹 🌹🌹कर कमल धृतेषट् भीत युग्मामबुजा च।।🌹🌹 🙏🙏🙏 ©Bhavana kmishra #navratri #Nojoto #Hindi #viral #bhavanakmishra नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि. सेव्यमाना स
Kamal
ऊं गं गणपतयै नमः सुप्रभात। गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय धीमहि । गुणशरीराय गुणमण्डिताय गुणेशानाय धीमहि । गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि । एकदंताय
N S Yadav GoldMine
नारद जी की जन्म कथा :- {Bolo Ji Radhey Radhey} 🌺 देवर्षि नारद पहले गन्धर्व थे। एक बार ब्रह्मा जी की सभा में सभी देवता और गन्धर्व भगवन्नाम का संकीर्तन करने के लिए आए। नारद जी भी अपनी स्त्रियों के साथ उस सभा में गए। भगवान के संकीर्तन में विनोद करते हुए देखकर ब्रह्मा जी ने इन्हें शाप दे दिया। जन्म लेने के बाद ही इनके पिता की मृत्यु हो गई। इनकी माता दासी का कार्य करके इनका भरण-पोषण करने लगीं। 🌺 एक दिन गांव में कुछ महात्मा आए और चातुर्मास्य बिताने के लिए वहीं ठहर गए। नारद जी बचपन से ही अत्यंत सुशील थे। वह खेलकूद छोड़ कर उन साधुओं के पास ही बैठे रहते थे और उनकी छोटी-से-छोटी सेवा भी बड़े मन से करते थे। संत-सभा में जब भगवत्कथा होती थी तो यह तन्मय होकर सुना करते थे। संत लोग इन्हें अपना बचा हुआ भोजन खाने के लिए दे देते थे। 🌺 साधुसेवा और सत्संग अमोघ फल प्रदान करने वाला होता है। उसके प्रभाव से नारद जी का हृदय पवित्र हो गया और इनके समस्त पाप धुल गए। जाते समय महात्माओं ने प्रसन्न होकर इन्हें भगवन्नाम का जप एवं भगवान के स्वरूप के ध्यान का उपदेश दिया। 🌺 एक दिन सांप के काटने से उनकी माता जी भी इस संसार से चल बसीं। अब नारद जी इस संसार में अकेले रह गए। उस समय इनकी अवस्था मात्र पांच वर्ष की थी। माता के वियोग को भी भगवान का परम अनुग्रह मानकर ये अनाथों के नाथ दीनानाथ का भजन करने के लिए चल पड़े। एक दिन जब नारद जी वन में बैठकर भगवान के स्वरूप का ध्यान कर रहे थे, अचानक इनके हृदय में भगवान प्रकट हो गए और थोड़ी देर तक अपने दिव्य स्वरूप की झलक दिखाकर अन्तर्धान हो गए। 🌺 भगवान का दोबारा दर्शन करने के लिए नारद जी के मन में परम व्याकुलता पैदा हो गई। वह बार-बार अपने मन को समेट कर भगवान के ध्यान का प्रयास करने लगे, किंतु सफल नहीं हुए। उसी समय आकाशावाणी हुई, अब इस जन्म में फिर तुम्हें मेरा दर्शन नहीं होगा। अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद रूप में मुझे पुन: प्राप्त करोगे। 🌺 समय आने पर नारद जी का पांच भौतिक शरीर छूट गया और कल्प के अंत में वह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए। देवर्षि नारद भगवान के भक्तों में सर्वश्रेष्ठ हैं। यह भगवान की भक्ति और महात्म्य के विस्तार के लिए अपनी वीणा की मधुर तान पर भगवद् गुणों का गान करते हुए निरंतर विचरण किया करते हैं। इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इनके द्वारा प्रणीत भक्ति सूत्र में भक्ति की बड़ी ही सुंदर व्याख्या है। अब भी यह अप्रत्यक्ष रूप से भक्तों की सहायता करते रहते हैं। 🌺 भक्त प्रह्लाद, भक्त अम्बरीष, ध्रुव आदि भक्तों को उपदेश देकर इन्होंने ही उन्हें भक्ति मार्ग में प्रवृत्त किया। इनकी समस्त लोकों में अबाधित गति है। इनका मंगलमय जीवन संसार के मंगल के लिए ही है। यह ज्ञान के स्वरूप, विद्या के भंडार, आनंद के सागर तथा सब भूतों के अकारण प्रेमी और विश्व के सहज हितकारी हैं। 🌺 अविरल भक्ति के प्रतीक और ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाने वाले देवर्षि नारद का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक भक्त की पुकार भगवान तक पहुंचाना है। वह विष्णु के महानतम भक्तों में माने जाते हैं और इन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है। भगवान विष्णु की कृपा से यह सभी युगों और तीनों लोगों में कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। ©N S Yadav GoldMine नारद जी की जन्म कथा :- {Bolo Ji Radhey Radhey} 🌺 देवर्षि नारद पहले गन्धर्व थे। एक बार ब्रह्मा जी की सभा में सभी देवता और गन्धर्व भगवन्नाम का
Divyanshu Pathak
जातियाँ ( समय के गर्त में और गर्भ में ) 1. राजपूत 🗡🏹 वेद,उपनिषद,स्मृति और हमारे प्राचीन ग्रंथों में 'जाति' को प्राथमिकता नहीं दी गई थी।'राजपूत' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'राजपुत्र' से हुई है।जब चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया तो उसने भी यहाँ के राजाओं को 'क्षत्रिय' लिखा और कहीं कहीं राजपूत कहा।श्री जगदीश सिंह गहलोत ने लिखा है कि- "मुसलमानों के आक्रमण से पहले यहाँ के राजा 'क्षत्रिय' कहलाते थे।बाद में इनका बल टूट गया तो स्वतंत्र राजा के स्थान पर सामन्त, नरेश बनकर रह गए।इसी समय में ही शासक राजाओं के लिए 'राजपूत' या 'रजपूत' शब्द सम्बोधन के लिए प्रयोग में लिया जाने लगा।आठवी शताब्दी तक इस शब्द का प्रयोग कुलीन क्षत्रियों के लिए किया जाता था।चाणक्य,कालिदास और बाणभट्ट के 'राजपुत्र' मुसलमानों के समय अपने राज्य खो कर 'राजपूत'बन गए। राजपूतों की उत्पत्ति का प्रश्न वैसे तो अभी तक विवादास्पद बना हुआ है फिर भी वे स्वयं को वैदिक आर्यों से जोड़कर सूर्य और चंद्रवंशी बताते हैं।कह
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड🙏 लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥ पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो ओर समुद्र की खाई -उस पर भी सोने के परकोटे (चार दीवारी) का तेज प्रकाश कि जिससे नेत्र चकाचौंध हो जाए॥ छन्द 1 लंका नगरी और उसके महाबली राक्षसों का वर्णन कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना। चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥ गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै। बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥ उस नगरी का रत्नों से जड़ा हुआ सुवर्ण का कोट,अतिव सुन्दर बना हुआ है-चौहटे, दुकाने व सुन्दर गलियों के बहार, उस सुन्दर नगरी के अन्दर बनी है-जहा हाथी, घोड़े, खच्चर, पैदल व रथो की गिनती कोई नहीं कर सकता और जहा महाबली, अद्भुत रूपवाले राक्षसो के सेना के झुंड इतने है कि जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता॥ छन्द 2 लंका के बाग-बगीचों का वर्णन बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं। नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥ कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं। नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥ जहा वन, बाग़, बागीचे, बावडिया, तालाब, कुएँ, बावलिया शोभायमान हो रही है। जहां मनुष्य कन्या, नागकन्या, देवकन्या और गन्धर्वकन्याये विराजमान हो रही है – जिनका रूप देखकर, मुनि लोगोका मन मोहित हुआ जाता है॥कही पर्वत के समान बड़े विशाल देहवाले महाबलिष्ट, मल्ल गर्जना करते है और अनेक अखाड़ों में अनेक प्रकारसे भिड रहे है और एक एक को आपस में पटक पटक कर गर्जना कर रहे है॥ छन्द 3 लंका के राक्षसों का बुरा आचरण करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं। कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥ एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही। रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥ जहां कही विकट शरीर वाले करोडो भट,चारो तरफ से नगरकी रक्षा करते है और कही वे राक्षस लोग, भैंसे, मनुष्य, गौ, गधे,बकरे और पक्षीयों को खा रहे है॥राक्षस लोगो का आचरण बहुत बुरा है।इसीलिए तुलसीदासजी कहते है कि मैंने इनकी कथा बहुत संक्षेपसे कही है।ये महादुष्ट है, परन्तु रामचन्द्रजीके बानरूप पवित्र तीर्थ नदी के अन्दर अपना शरीर त्याग कर, गति अर्थात मोक्षको प्राप्त होंगे॥ ...निरंतर मंगलवार को..., विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 100 से 110 नाम 🙏🌹 100 अच्युतः अपनी स्वरुप शक्ति से च्युत न होने वाले 101 वृषाकपिः वृष (धर्म) रूप और कपि (वराह) रूप 102 अमेयात्मा जिनके आत्मा का माप परिच्छेद न किया जा सके 103 सर्वयोगविनिसृतः सम्पूर्ण संबंधों से रहित 104 वसुः जो सब भूतों में बसते हैं और जिनमे सब भूत बसते हैं 105 वसुमनाः जिनका मन प्रशस्त (श्रेष्ठ) है 106 सत्यः सत्य स्वरुप 107 समात्मा जो राग द्वेषादि से दूर हैं 108 सम्मितः समस्त पदार्थों से परिच्छिन्न 109 समः सदा समस्त विकारों से रहित 110 अमोघः जो स्मरण किये जाने पर सदा फल देते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड🙏 लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥ पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड🙏 लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥ पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो ओर समुद्र की खाई -उस पर भी सोने के परकोटे (चार दीवारी) का तेज प्रकाश कि जिससे नेत्र चकाचौंध हो जाए॥ छन्द 1 लंका नगरी और उसके महाबली राक्षसों का वर्णन कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना। चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥ गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै। बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥ उस नगरी का रत्नों से जड़ा हुआ सुवर्ण का कोट,अतिव सुन्दर बना हुआ है-चौहटे, दुकाने व सुन्दर गलियों के बहार, उस सुन्दर नगरी के अन्दर बनी है-जहा हाथी, घोड़े, खच्चर, पैदल व रथो की गिनती कोई नहीं कर सकता और जहा महाबली, अद्भुत रूपवाले राक्षसो के सेना के झुंड इतने है कि जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता॥ छन्द 2 लंका के बाग-बगीचों का वर्णन बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं। नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥ कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं। नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥ जहा वन, बाग़, बागीचे, बावडिया, तालाब, कुएँ, बावलिया शोभायमान हो रही है। जहां मनुष्य कन्या, नागकन्या, देवकन्या और गन्धर्वकन्याये विराजमान हो रही है – जिनका रूप देखकर, मुनि लोगोका मन मोहित हुआ जाता है॥कही पर्वत के समान बड़े विशाल देहवाले महाबलिष्ट, मल्ल गर्जना करते है और अनेक अखाड़ों में अनेक प्रकारसे भिड रहे है और एक एक को आपस में पटक पटक कर गर्जना कर रहे है॥ छन्द 3 लंका के राक्षसों का बुरा आचरण करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं। कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥ एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही। रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥ जहां कही विकट शरीर वाले करोडो भट,चारो तरफ से नगरकी रक्षा करते है और कही वे राक्षस लोग, भैंसे, मनुष्य, गौ, गधे,बकरे और पक्षीयों को खा रहे है॥राक्षस लोगो का आचरण बहुत बुरा है।इसीलिए तुलसीदासजी कहते है कि मैंने इनकी कथा बहुत संक्षेपसे कही है।ये महादुष्ट है, परन्तु रामचन्द्रजीके बानरूप पवित्र तीर्थ नदी के अन्दर अपना शरीर त्याग कर, गति अर्थात मोक्षको प्राप्त होंगे॥ ...निरंतर मंगलवार को..., विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 100 से 110 नाम 🙏🌹 100 अच्युतः अपनी स्वरुप शक्ति से च्युत न होने वाले 101 वृषाकपिः वृष (धर्म) रूप और कपि (वराह) रूप 102 अमेयात्मा जिनके आत्मा का माप परिच्छेद न किया जा सके 103 सर्वयोगविनिसृतः सम्पूर्ण संबंधों से रहित 104 वसुः जो सब भूतों में बसते हैं और जिनमे सब भूत बसते हैं 105 वसुमनाः जिनका मन प्रशस्त (श्रेष्ठ) है 106 सत्यः सत्य स्वरुप 107 समात्मा जो राग द्वेषादि से दूर हैं 108 सम्मितः समस्त पदार्थों से परिच्छिन्न 109 समः सदा समस्त विकारों से रहित 110 अमोघः जो स्मरण किये जाने पर सदा फल देते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड🙏 लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥ पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो