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Sheelu Jha
#नानी नानी भी यही कहती हैं माता पिता के चरणों में ब्रह्मांड देख पाया वही देव इस जगत में प्रथम पूज्य बन पाया ©Sheelu Jha #नानी
Diwan G
नानी भी यही कहती हैं, आसमां में परी रहतीं हैं। मिलुंगी उनसे एक दिन, पूरे विश्वास से कहती हैं। ©Diwan G #नानी
Kirti Pandey
हमारे जमाने में सब साथ रहकर एक साथ होली मनाया करते थे। आज एक बुजुर्ग मिले वो ज़माना गया जब सब साथ रहा करते थे ।। ज़िंदगी की दौड़ में दौड़ते हुए समझ आया कि उनका ज़माना वैसे था तो बड़ा मज़ेदार।। आज एक आदमी यहां है तो दूर किसी शहर में रहता है उसका परिवार।। ©Kirti Pandey #नानी
dr. rehan
की कोई राजकुमार आएगा और घोड़े पे बिठा के ले जाएगा और मैं मैं भी यही मानती थी कि हा कोई तो राजकुमार होगा जो आएगा और ये सब मानने की वजह भी थी मेरे पास क्योंकि नानी नानी भी यही कहती है ©dr. rehan #नानी
Pinki
फूर्सत कब मिलती है आजकल , दादी नानी से कहानी सुनने में, फुर्सत कब मिलती है , दादी नानी के दबे अहसासों जज़्बातों को सुनने में सब कोई लीन है खुद में ही, या फिर मोबाइल फोनो से ही फुर्सत नहीं , मुर्शद ! कब फुर्सत है , दादी नानी के संग बैठने में, जिनकी गोद में बचपन गुजर गया, अब एक मुलाकात भी उन्हें फिजूल लगने लगती है..... फुर्सत कब ............ सुनने में... ©Pinki दादी नानी
Sunil Kumar Sharma
एक राजा था और एक रानी, दोनो मर गये, ख़त्म कहानी। ©Sunil Kumar Sharma #NojotoHindistory #नानी......
Swati Tiwari
मेरी नानी कोहिनुर है घर की,घर को रौशन कर रखती है हम कहते कहते थक जाते है वो चल चल कर भी ना थकती है उफ़्फ़ उफ़्फ़ करते रहती है, पर परेशानी किसी से ना कहती है शाम सात बजे से बिस्तर लगा कर रात भर भी ना सोती है एक बार अवाज लगाओ, चार बार हा कहती, सुबह सुबह उठ जाती है,सुर्योदय तक नहा आती है हम पाच मिनट मे थक जाते हैं,वो दिन भर पढ़ती रहती है खाली बैठे गर सामने उनके ,हाथ मे पुस्तक थमाती है सबको जोड़े रखी है,सबकी चिंता करती है पर खुद को भुल जाती हैं ,चकरघिन्नी भी थक जाए पर नानी मेरी ना थकती है,जरुरत नहीं कुछ करने की पर बैठ कर नही रह सकती, मुन्ना,पप्पु,नानकन,निक्कु,कान्हा,कृश्ना सबकी परवाह करती है हम बेवजह झल्ला देते हैं ,वो हमे सहन कर जाती है बेबी नोनी की चिन्ता मे खुन अपना जलाती है अवाज भले मुझेको लगाना हो पर पहले रन्जना रन्जना रन्जना बस रन्जना को बुलाती है,कहना चाहती है हम पास बैठे उनके पर हम उनपर झिडक ना जाए,ये सोच वो चुप रह जाती है आन्खे धुन्धली हो गयी है थोड़ी पर अक्षर सब पढ़ जाती है कान कमजोर से हो रहे तो खुद को असहज वो पाती है महफ़िल पसन्द है उनको,पर अब खुद महफ़िल से बचाती है चार लाइन बात भी वो अब दो शबदो मे बताती है तुफ़ान उमडता है अन्दर उनके पता नहीं कैसे उस तुफ़ान को समेट कर चुप रह जाती है पर होती हैं जब भी अकेले उनकी आन्खे भर आती जैसे ही कोई आहट हुई सारी नमी पी जाती है बुनियाद जो है वो घर की अपनी जिम्मेदारी निभाती है ताकत खुद मे बिल्कुल नहीं,पर खुद को मजबुत दिखा कर सबकी हिम्मत बन जाती हैं....... स्वाति की डायरी ✍️ ©Swati Tiwari मेरी नानी