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Ashok Nanda
ना मैं किसी बाबा के दरबार में जाता हूँ। ना किसी पाखंडी के चरणों में गिरता हूँ। मैं नास्तिक हूँ बस मेरा कसूर इतना है मैं उसी की दुनिया में उसी पर सवाल करता हूँ।। ©Ashok Nanda मैं नास्तिक हूँ... #nastik_thought
Ashok Nanda
ना मैं कोई धर्म ग्रन्थ छूने से आहत होता हूँ। ना मन्दिर-मस्जिद तोड़ने पर आहत होता हूँ। मैं नास्तिक हूँ बस मेरा कसूर इतना है जब स्कूल-कॉलेज बन्द है तो मैं आहत होता हूँ। ©Ashok Nanda मैं नास्तिक हूँ... #nastik_thought
Ashok Nanda
ना मैं किसी के शब्दों से आहत होता हूँ। ना किसी की मूर्ति तोड़ने से आहत होता हूँ। मैं नास्तिक हूँ बस मेरा कसूर इतना है, जब इंसानियत मरती है तो मैं आहत होता हूँ।। ©Ashok Nanda मैं नास्तिक हूँ.... #nastik #nastik_thought
Rakesh Ladhrh Robert
कोई कहता मैं आस्तिक हूँ, कोई कहता मैं नास्तिक हूँ| अच्छा लगता जब कोई कहता, मैं वास्तविक हूँ| कोई कहता मैं आस्तिक हूँ, कोई कहता मैं नास्तिक हूँ| अच्छा लगता जब कोई कहता, मैं वास्तविक हूँ|
अंकित दुबे
क्यूँ लिखता हूँ मैं आज डूबते को सहारा नहीं तन्हाई में उसने पुकारा नहीं जला आए यादों के हर सिलसिले पर एक तस्वीर है जिसको फारा नहीं ढाल भी है यहीं , नदियाँ बहती यहीं संग चलते किनारे पर मिलते नहीं नदियों का सिलसिला भी तो बहता रहा और किनारा भी वैसा ही तनहा रहा इश्क है वो सफ़र जो की रुकता नही लाख मुस्किल मिले पर वो झुकता नहीं चाहतों के दिए तुम जलते रहो गर नज़र है लड़ी तो लड़ते चलो आज बिछरा है जो कल वो मिल जाएगा डाल में फूल नया फिर से खिल जाएगा ये जो जख्म है दिल पे तुम्हे दीखता नहीं मोहब्बत भी बाज़ार में बिकता नही बहुत चोट खाई है दिल पे सनम गर ये दिल दुखता नहीं, तो मै लिखता नहीं कवि ~ अंकित दुबे क्यों लिखता हूँ मैं
Kumar Manoj Naveen
क्यों मैं इतना मजबूर हूँ? ना बेड़ियां है ना दीवारों में कैद हूंँ, घूमता हूँ हर-तरफ,मगर नहीं आजाद हूँ, ये सच है, गुलाम हूंँ पर कैसे कहूंँ? क्यों मैं इतना मजबूर हूँ? दिल की हसरत ,दिल में ही दबती गई, बात दिल की जुबां से निकलती नहीं, दहशत ये कैसी, बयां किससे करुंँ ? क्यों मैं इतना मजबूर हूँ? न मदहोशी का आलम है ना नशे में चूर हूँ, जिन्दा हूँ पर जिंदगी से कोसो दूर हूँ। रुसवाई की खातिर, मै हर -पल डरूंँ। क्यों मैं इतना मजबूर हूँ? ****नवीन कुमार पाठक **** ©Kumar Manoj क्यों मैं इतना मजबूर हूँ? #
DR. LAVKESH GANDHI
बेवसी थक गया हूंँ जिंदगी से अब जिंदगी ऊबाबू लगने लगी है अब कोई रास्ता भी नहीं दिखाई पड़ रहा अब मौत भी भली लगने लगी है अब ©DR. LAVKESH GANDHI #SAD # # क्यों बेवस हूँ मैं #
इंदर भोले नाथ
तुम हो ये मैं मानता हूं मगर मंदिर और मस्जिदों में ही यही मुझे गवारा नहीं है .....इंदर भोले नाथ #हां#मैं#नास्तिक#हूं
Durga Bangari