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Reena Agrahari
देख बादल के झुण्डों को पक्षी सभी, बहती हवाओं से वो बतलाने लगे, उरख वर्षा की ठण्डी फुहारों को वो, प्रफुल्लित गीतों की धुन वो गाने लगे, देख ऐसे सुसज्जित वातावरण को तब, याद सावन की सबको आने लगी, शीतल वर्षा की फुहारों से छनती हवाएँ, अपनी आकर्षण से सभी को लुभाने लगी...... ✍✍✍✍ ©Reena Agrahari रीना अग्रहरि✍✍✍✍
Shrikant Agrahari
द्विगदिगंतर तक चारो दिशाओ में फैली जिनकी आभा है। उन मर्यादा पुरुषोत्तम "श्रीरामचंद्र" के,धरती की ये कैसी मर्यादा है। जहाँ बहा लहू वीरो का रक्तरंजित इतिहास हुआ। जहाँ शुदर्शनचक्रधारी ने असहाय,नारी को सम्मान दिया। उस कुरुक्षेत्र की धरती पर फिर नारी का अपमान हुआ। जहाँ हुई जौहर "पद्मिनी" नारी सम्मान दर्शाती है। उस धरती पर जब मानभंग होता बेटी का,नेता मौन सिधारते है। अफसोस हुआ "श्री" निज मन तब लिखने को मजबूर हुआ। हे! आर्यव्रत के राजनेता,भारतवर्ष के संचालक,, अब नारी सम्मान में अविराम अटल अनुच्छेद आवाहन कर "मृत्युदंड" पारित प्रावधान करो।. (©श्रीकान्त अग्रहरि) ©श्री.......✍🏻 नारी सम्मान की अभिलाषा श्रीकान्त अग्रहरि #yqdidi #yqbaba #श्रीsnsa #yqrestzone #हिन्दी_काव्य_कोश #motivational #inspiration #hkk
Shrikant Agrahari
उस रोज मैं पड़ा था,बिस्तर पर हाथ खाली।साँसे जो बन्द हुई थी,आँखे न थी खुलने वाली।मैं सब ये देख रहा था,शरीर यू पड़ा था। अंदर जाने को प्रयास कर रहा था,पर दरवाजा बन्द इस कदर था।बाहर यू ही विबस खड़ा था,अब शरीर से हर पल जुदा था।बाहर का था कुछ इस कदर नजारा, लोग आ रहे थे,चेहरा देख कर आँसू बहा रहे थे।बिस्तर मेरा सज रहा था,तैयारी जोरों शोरो से चल रहा था।लोग नहला रहे थे,उबटन लगा रहे थे।मैं बेबस यू खड़ा था,ये सब देख रहा था।कुछ कर न पा रहा था,ये क्या हो गया था?क्या सच मे मैं मर गया था,?कुछ समझ न पा रहा था।मातम था कुछ इस कदर पसरा,सब लोग बिलख रहे थे।बिस्तर पर मुझे लिटा कर फूलो से सजा रहे थे।कंधे पर चार लेकर शमशान को निकल रहे थे।गॉवो की हर गालियां मुझेसे दूर हो रही थी।घर के अपने सारे दोस्त भी हमारे लकड़ियो से चिता सजा रहे थे।मैं सब देख रहा था,पर कुछ कर न पा रहा था।शरीर को हमारे चिता पर लिटाएं,लकड़ियों से ढक रहे थे।घी और चंदन के सहारे अब शरीर जल रहा था। मैं चारो तरफ दौड़ कर लोगो से कह रहा था।क्यों जला रहे हो शरीर को हमारे,मैं यही खड़ा हूँ तुम्हारे ही सहारे,पर कोई न सुन रहा था,बात को हमारे। दौलत और शोहरत सब यही रह गया था।ये क्या हो गया था,क्या सच मै मर गया था?उस रोज का था जो नजारा, मैं सबसे जुदा हो गया था।कुछ भी न था साथ मेरे मैं अकेला हो गया था।कोई था न सुनने वाला जुदाई का दर्द बड़ा था। क्या सच मे मैं मर गया था? इस दर्द को सह रहा था। (अंतिम यात्रा कवि की कल्पना) श्रीकान्त अग्रहरि
Mamta pal
Tasweeren to hoti h, khamosh pr is khamosi me hi kaid hoti h, barso ki yaaden #picture #worldphotographyday @do lafz.........ki bate🥰 Ajit Srivastava Kapil Nayyar तरूण.कोली.विष्ट ज्योति अग्रहरि 💥
Reena Agrahari
नि:स्वार्थ प्रेम का सागर है माँ, माँ से ही तो बसता ये संसार है, जगजननी कहलाती है माँ, माँ इस प्रकृति का आधार है, हर माँ के प्रेम करने का तरीका अलग है, हर माँ के समझाने का सलीका अलग है, पर उन सबका एक ही सार है, माँ तोहफा है खुदा का दिया हुआ, माँ के बिना ये चहकती दुनिया बेकार है..... ©Reena Agrahari माँ तोहफा है खुदा का दिया हुआ..... रीना अग्रहरि✍✍✍ #MothersDay2021
Mamta pal
1 first of all we should think and speak. 2 When we angry we should keep calm. 3 Don't lie even in laughter. 4 Don't lie even in afraid. 5 Don't enter someone's house without permission. These things are should be in every human beings. Mamta pal #goodthings #nojotians #mentalHealth ज्योति अग्रहरि 💥 @do lafz.........ki bate🥰 Ajit Srivastava