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Shweta Gupta

न मिले ज़माने से तो भी क्या गम है,
नौकरीपेशा है जनाब, समझिये! छुटियाँ थोड़ी कम है। #job #naukripesha #yqbaba #zamaana #छुटियाँ  #gam #janaab #yqhumour

#RajnishAryans@journalist.com#

हो जाती हैं कॉलेज मे एक दो दिन के छुटियाँ

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JALAJ KUMAR RATHOUR

#Childhood 1 जुलाई का दिन वो दिन होता था। जब हम सब महीनों की छुटियाँ बिताकर अपने स्कूल वापस जाते थे। मतलब इन दो महीनों में हमने जो खेल खेले #जलज

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'Childhood Story' in 5 Words 1 जुलाई का दिन वो दिन होता था। जब हम सब महीनों की छुटियाँ बिताकर अपने स्कूल वापस जाते थे। मतलब इन दो महीनों में हमने जो खेल खेले या खिलौने खरीदे हम सब तो बताना चाहते थे,अपने दोस्तों को, 2 महीने तक दादा-दादी, मामा-मामी, नाना-नानी  और मौसी की उंगली थामने वाले हाथ, पेंसिल थामने पर उतारू हो जाते है, और गेंद को स्विंग कराने वाली उंगलियाँ रबर हमारी कॉपी से सब कुछ मिटा देती है। बचपन में गलतियों पर हमारे अपने खुश होकर , हमारी मासूमियत पर कितने हँसते थे, जिंदगी में कई जुलाइयाँ आती है, पर बारहवीं के शुरुआत और अंत कि जुलाई हमारे जीवन की वो जुलाई होती है जो हमे समझाती है कि  घर, गालियाँ, माँ पापा ,दोस्त,और आपसे जुड़े हर शक्स का आपके जीवन में क्या महत्व है और हम पाते है खुद को जीवन के एक नये पड़ाव पर, 
‌.... #जलज कुमार #Childhood 1 जुलाई का दिन वो दिन होता था। जब हम सब महीनों की छुटियाँ बिताकर अपने स्कूल वापस जाते थे। मतलब इन दो महीनों में हमने जो खेल खेले

JALAJ KUMAR RATHOUR

आज जब शक्तिमान को टीवी पर फिर से आते देखा तो जहन में बचपन कीकुछ पुरानी यादें ताजा हो गयी, ‌शायद उस वक्त मैं चौथी क्लास में था उस वक्त बिजली

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आज जब शक्तिमान को टीवी पर फिर से आते देखा तो जहन में बचपन कीकुछ पुरानी यादें ताजा हो गयी, 
‌शायद उस वक्त मैं चौथी क्लास में था उस वक्त बिजली ऐसे जाया करती थी जैसे आज कल  जिंदगी से लड़की, तो मै शक्तिमान के पिछ्ले एपीसोड के बारे में अपने दोस्तो को बता रहा था कि हमने कल टैक्टर से टीवी चलायी थी तो उसमें शक्तिमान ने गीता को बचाने के लिए कैसे बिल्डिंग से घूम कर उसको बचाया और मैं भी गोल गोल घूमने लगा अचानक मैं किसी से टकरा कर गिर पड़ा मेरे दोस्त हँसने लगे मै  उठा तो मैंने देखा मुझसे एक लड़की टकराई है जो मेरे पास ही गिर पडी थी उसके हल्की चोट लग गयी थी और इस वजह से वो गुस्से में थी शायद उसका नाम. बाती ठाकुर हाँ वो  ही थी क्लास की टॉपर  और मेरे पूरे क्लास की पसंद, उस वक्त तो मैंने उससे कुछ नही कहा मेरे सभी दोस्त भाग निकले थे मै  भी भाग आया । प्रार्थना के बाद मैं डर रहा था कहीं वो मैडम से मेरी शिकायत ना कर दे और साथ मे मेरे दोस्त भी मेरे मजे ले रहे थे पर ये क्या उसने लंच तक किसी भी टीचर से मेरी शिकायत नही की लंच की बेल बजी सभी लोग बाहर लंच करने गए थे मेरे दोस्तों ने कहा पर मैं नही गया था मैंने देखा वो खामोश सी बैठी है मैंने बहुत हिम्मत जुटाई और उसके पास जाकर सोरी बोला वो बोली कोई नही गलती मेरी भी थी मुझे भी देखकर चलना चाहिए था, फिर मैने उससे बोला "हाय मैं दीपक प्रताप " और मैंने अपना टिफिन उसकी और बढ़ाया , इलायची वाली टॉफी और गजर का हलवा हाँ यही तो था उस दिन हमारे बीच जिसने हमारे बीच दोस्ती करवाई, उस दिन मैंने उससे कहा मुझे गणित के स्थानीय मान और अंग्रेजी को पढने मे दिक्कत होती है तो उसने मुझे कहा तुम मेरे साथ बैठा करो मैं तुम्हे सब सिखा दूँगी, फिर क्या था अगली सुबह मैं जो कभी सबसे पीछे से एक सीट पहली की शान हुआ करता था अब आँगे बैठता था, एक दिन वो मुझे हिंदी की क्लास में गणित का होमवर्क करवा रही थी तभी मैम ने हमे देखा और एक दूसरे के कान पकड़वा कर क्लास के बाहर खड़ा कर दिया शायद वो पहला दिन था जब मैंने उसको करीब से देखा था  मुझे नही पता था तब ,प्यार क्या होता है पर हाँ था कुछ जो मुझे उसकी याद दिलाता था, मैं उसे रोज बताता था की आज, अलिफ लैला में क्या हुआ, सोंन परी ने अल्तु को कैसे बचाया, शा का ला क बुम बूम  में क्या हुआ, वो मुझे गौर से सुनती थी और हंसती थी, उस ये सब देखना अच्छा नही लगता था पर मुझे सुनती जरूर थी, उसने आगे सीट पर बैठने का मेरा खौफ निकाल दिया था , वो मुझे बहुत चीजे सिखाती थी इंग्लिश मे अपना नाम  कैसे बोलते है और भी बहुत ,वो वक्त पता नही चला कैसे बीता , हमारे चौथी क्लास के पेपर आ गए थे मैं रोज पेपर से पहले उसे मिलता था और उस इलायची वाली टोफी देकर जो उसने मुझे सिखाया था बेस्ट ऑफ लक बोल देता था। मुझे  नही पता क्या था पर हाँ अच्छा लगता था उससे बात करना । जब हमारे क्लास चार के पेपर खत्म हुए तो हम सबकी छुटियाँ हो गयी थी मैं अपने मामा के घर छुटियाँ बिताने गया था मैंने मामा के यहाँ मेले से उसके नाम के पहले अक्षर की ब्रेसलेट ली थी जब मै घर लौटकर आया  तो बहुत खुश था क्युकी कल से स्कूल जाना था और उससे मिलने वाला था आज जब शक्तिमान को टीवी पर फिर से आते देखा तो जहन में बचपन कीकुछ पुरानी यादें ताजा हो गयी, 
‌शायद उस वक्त मैं चौथी क्लास में था उस वक्त बिजली

AB

हॉस्टल में पढ़ा करती थी तो बचपन में खासा अनुभव नहीं था कि घर में सब कैसे रहते,.. ' गांव का माहौल ', परन्तु गांव लौटने कि तीव्र इच्छा हमे

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" व्यास मेरी प्रकृति "
 ( अनुशीर्षक ) 
    हॉस्टल में पढ़ा करती थी तो बचपन में खासा अनुभव नहीं था कि घर में सब कैसे रहते,.. ' गांव का माहौल ', परन्तु गांव लौटने कि तीव्र इच्छा हमे
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