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Vasundhara Jadhav
माणसाचं मन विशाल सागरासारखं असते. त्याचं त्याचं साचणं असतं, त्याचं त्याचं घुटमळणं असतं, त्याची त्याची वादळं असतात, त्याची त्याची भरती-ओहोटी असते, त्याचा त्याचा विस्तार असतो, त्याची त्याची खोली असते. त्याच्याही खोलवर अंधार असतो, त्याचं भरकटणं असतं तर त्याचा किनारा असतो. त्याची त्याची निळाईही असते, त्याच चमकणंही असतं, त्याचं सामावून घेणंही असतं, त्याच दूर लोटणंही असतं, त्याचे त्याचे शंख, शिंपले आणि मोतीसुद्धा असतात. वसुंधरा जाधव ©Vasundhara Jadhav #वसु# मी समुद्र
Vasundhara Jadhav
तुझ्या मोकळ्या केसांचं गच्च आभाळ दाटलं काठ काजळी गहिरे त्यात तुफान उठलं श्वास थांबती मंदसा झुले मनाचा हिंदोळा वारा खट्याळ धुंदसा घन मनाचा सावळा चाल सावळ्या मनाची फेर धरती भोवती लडीवाळ बट तुझी अशी अधीर सोबती मुग्ध रेशीमस्पर्श रोमरोमात फुलती आडखळणारे ओठ श्वास निशब्द गुंफती शब्द मौनाचे लाजरे रान पिसाट गाठलं तुझ्यामाझ्यातल्या वेळी दुर चांदणं सांडलं वसु ©Vasundhara Jadhav # दूर चांदण सांडलं#वसु#
Jyoti Agrahari
एक ज्योति पुंज सी बन जाऊँ ये नाम अमर अब मेरा हो , जग में आएँ तो कुछ करना है वो काम अमर अब मेरा हो। ज्योति
jyoti gurjar
हां हूं में, ज्योति सांवली-सांवली सी ,जरा बावली बावली सी , वो रंग पर बड़ा इतराती हैं, पर हमेशा अपनी मान मर्यादा को खोकर जाती हैं। समाज का नाम बढ़ाने की जगह, वो कुल को ही बदनाम कर जाती हैं। ©jyoti gurjar #ज्योति
नित्यानंद गुप्ता
विषय और भोग को तुम विष्टा के समान समझों। - योग वशिष्ठ महारामायण ज्ञान ज्योति।
HP
💝अखंड ज्योति💝 वह मनुष्य निश्चय ही सौभाग्यवान है जिसने अपने अन्तःकरण को निर्मल बना लिया है और जिसका जीवन आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख हो रहा है। अध्यात्म जीवन का वह तत्वज्ञान है, जिसके आधार पर मनुष्य विश्व ही नहीं अखण्ड ब्रह्माण्ड के सारे ऐश्वर्य को उपलब्ध कर सकता है। अध्यात्म ज्ञान के बिना सारा वैभव—सारा ऐश्वर्य और सारी उपलब्धियाँ व्यर्थ हैं। जो भाग्यवान अपने परिश्रम, पुरुषार्थ एवं परमार्थ से थोड़ा बहुत भी अध्यात्म लाभ कर लेता है वह एक शाश्वत सुख का अधिकारी बन जाता है। व्यवहार जगत में अनेक सीखने योग्य ज्ञानों की कमी नहीं है। लोग इन्हें सीखते हैं, उन्नति करते हैं, सुख−सुविधा के अनेक साधन जुटा लेते हैं। किन्तु इस पर भी जब तक वे अध्यात्म की ओर उन्मुख नहीं होते वास्तविक सुख-शाँति नहीं पा सकते। अखंड ज्योति
Parasram Arora
मेरी सारी साधुता एक ही धारणा पर टिकी हैँ कि शरीर के साथ सब समाप्त नहीं हो जाता और जीवन का अर्थ इसी बात पर निर्भर हैँ कि जब शरीर गिरता हैँ तो कुछ बिना गिरा भी शेष रह जाता हैँ शरीर जब मिटता हैँ मिटटी मे तो सभी कुछ नहीं गिरता मिटटी मे कुछ मेरे भीतर कोइ ज्योति किसी और यात्रा पर निकल जाती हैँ अर्थात मै बचता हूं किसी अन्य अर्थो मे शाश्वत ज्योति