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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विषय :- माँ सीता विधा :- सार छन्द राम-राम सुन बोल उठी फिर , देखो सीता माता । कौन छुपा बैठा उपवन में , नही सामने आता ।। राम-राम सुन बोल उठी फिर ..... लगता तुम भी मायावी हो , छल करते हो हमसे । होते भक्त अगर तुम प्रभु के , छुपे न होते हमसे ।। नार पराई को हर लेना , लंकापति को भाता । राम-राम सुन बोल उठी फिर..... सुनो मातु मैं भक्त राम हूँ , तुम्हें खोजने आया । साथ शक्ति मैं इस लंका की , आज परखने आया ।। देर नही अब और लगेगी , मैं विश्वास दिलाता । राम-राम सुन बोल उठी फिर .... कह दो जाकर मेरे प्रभु से , मन मेरा घबराता । पापी रावण की लंका में , और न ठहरा जाता ।। आकर संग चले ले हमको , वो हैं सबके दाता । राम-राम सुन बोल उठी फिर .... कभी-कभी तो सोच-सोच कर , होती मन में उलझन । बिन उनके बीतेगा कैसे, मेरा अब यह जीवन ।। क्यों इतनी अब देर लगाये , तोड़ लिए क्या नाता । राम-राम सुन बोल उठी फिर .... ०९/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विषय :- माँ सीता विधा :- सार छन्द राम-राम सुन बोल उठी फिर , देखो सीता माता । कौन छुपा बैठा उपवन में , नही सामने आता ।।
VEER NIRVEL
आज मुझे, कल तुझे ख़ाक हो जाना है, एक दिन हमें जलकर राख हो जाना है...1 नियति ने लिख दिया सभी का प्रारब्ध, हर बुलंद भवन में सुराख़ हो जाना है....2 कितनी मिली साँसे किसी को नहीं पता, रूह के जाते, जिस्म नापाक हो जाना है.....3 इतना बड़ा अहं, क्या काम आएगा भला, मटकी में जाकर एक छटांक हो जाना है....4 कल तक था अब नहीं रहा जग में ‘Veer’, इक दिन खबर सुनकर आवाक हो जाना है..... - डॉ. मधुसूदन चौबे #Chai_Lover ©VEER NIRVEL आज मुझे, कल तुझे ख़ाक हो जाना है, एक दिन हमें जलकर राख हो जाना है...1 नियति ने लिख दिया सभी का प्रारब्ध, हर बुलंद भवन में सुराख़ हो जाना है..
Amit Kumar
पराई स्त्री के लिए हर वक्त गिरा आदमी गुमराह जिस्म के जाल से घिरा आदमी ©Amit Kumar #Dhund #मायावी #कविता जिस्मों का मायावी जाल
Anjali Singhal
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी जुल्मो और मंहगाई की मटकी कैसे फोड़ू नित नित ऊंची होती जाये हाड़ मांस के पुतले बन गये हम सब माखन की मटकी तक ना पहुँच पाये ख़ुशियाँ हम से ऐसी रूठी उत्सव त्योहार हमें लजाये जेल में कान्हा जन्मे,कंस मामा उन्हें सताये हम पर भी पड़ी है सियासी मार जीवन का आधार डूबा जाये साहस नही है हम सब पर इतना संहार पापियों का कर पाये गोविंद भरोसे हम सब बैठे कोई रण क्षेत्र तैयार किया जाये प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #janmashtami जुल्मो और महँगाई की मटकी कैसे फोड़ू नित नित बढ़ती जाये #nojotohindi
Ghumnam Gautam
अपने और पराए के जो भेद थे वो खो गए राधिका के यूँ हुए कि कृष्ण सबके हो गए दधि की मटकी फोड़ी और गीता-ज्ञान भी दिया लीलाओं की माला यूँ थे लीलाधर पिरो गए ©Ghumnam Gautam #janmashtami #मटकी #गीता #कृष्ण #राधिका #ghumnamgautam #अपने #पराए
Bharat Bhushan pathak
नयन तेरे ,नशीले हैं,अधर जैसे,कमलदल हो। लटें तेरी,क़हर ढाए,लगे झरने, कि हलचल हो।। हिले नथुनी,यहाँ जब भी,लगी जैसे,कली चटकी। चले जब भी,सुनो जानूँ,लगे जैसी,फिज़ा मटकी।। भली किस्मत,इसी कारण,मिली प्रियतम,यहाँ मुझको। बता क्या क्या, पुकारूँ मैं,सुनो सजनी,यहाँ तुझको।। संभालो जी,अजी बाली,करे है हाय मतवाला। खनकती चूड़ियाँ तेरी,मुझे पागल बना डाला।। बजे नूपुर,यहाँ जब भी ,मधुर संगीत सा लगता। मिला जो साथ तेरा है,इसी से भाग्य है जगता।। ©Bharat Bhushan pathak #RajaRaani #nojohindi #Nojotothought#nojotopoetry नयन तेरे ,नशीले हैं,अधर जैसे,कमलदल हो। लटें तेरी,क़हर ढाए,लगे झरने, कि हलचल हो।। हिले नथुन
N S Yadav GoldMine
श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था पढ़िए महाभारत !! 📜📜महाभारत: स्त्री पर्व चतुर्विंष अध्याय: श्लोक 19-30 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📖 यह वही हाथ है, जो हमारी करधनी को खींच लेता, उभरे हुए स्तनों का मर्दन करता, नाभि, उरू और जघन प्रदेष का छूता और निभिका बन्दन सरका दिया करता था। जब मेरे पति समरांगन में दूसरे के साथ युद्ध में संलग्न हो अर्जुन की ओर से असावधान थे, उस समय भगवान श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था। 📖 जनार्दन। तुम सतपुरुषों की सभाओं में, बातचीत के प्रसंग में अर्जुन के महान् कर्म का किस तरह वर्णन करोगे? अथवा स्वयं किरीटा धारी अर्जुन ही कैसे इस जघन्य कार्य की चर्चा करेंगे? इस तरह अर्जुन की निंदा करके यह सुन्दरी चुप हो गयी है। 📖 इसकी बड़ी सौतें इसके लिये उसी प्रकार शोक प्रकट कर रही हैं, जैसे सास अपनी बहू के लिये किया करती है। यह गान्धार देष का राजा महाबली सत्यपराक्रमी शकुनि पड़ा हुआ है। यह सहदेव ने मारा है। भान्जे ने मामा के प्राण लिये हैं। 📖 पहले सोने के डण्डों से विभूषित दो-दो व्यजनों द्वारा जिसको हवा की जाती थी, वही शकुनि आज धरती पर सो रहा है और पक्षी अपनी पखों से इसको हवा करते हैं। जो अपने सैकड़ों और हजारों रूप बना लिया करता था, उस मायावी की सारी मायाऐं पाण्डु पुत्र सहदेव के तेज से दग्ध हो गयीं। 📖 जो छल विद्या का पण्डित था, जिसने द्यूत मैं सभी को माया द्वारा युधिष्ठिर तथा उनके विशाल राज को जीत लिया था, वही फिर अपना जीवन भी हार गया। श्रीकृष्ण। आज शकुनि (पक्षी) ही इस शकुनि की चारों ओर से उपासना करते हैं। इसने मेरे पुत्रों के विनाश के लिये ही द्यूतविद्या अथवा धूर्तविद्या सीखी थी। 📖 इसी ने सगे सम्बन्धियों सहित अपने और मेरे पुत्रों के वध के लिये पाण्डवों के साथ महान् वैर की नींव डाली थी। प्रभो। जैसे मेरे पुत्रों को शस्त्रों द्वारा जीते हुए पुण्य लोक प्राप्त हुए हैं, उसी प्रकार इस दुर्बुद्धि शकुनि को भी शस्त्र द्वारा जीते हुए उत्तम लोक प्राप्त होंगे। 📖 मधुसूदन। मेरे पुत्र सरल बुद्धि के हैं। मुझे भय है कि उन पुण्य लोकों में पहुंच कर यह शकुनि फिर किसी प्रकार उन सब भाइयों में परस्पर विरोध न उत्पन्न कर दे। ©N S Yadav GoldMine #Tuaurmain श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था पढ़िए महाभारत !! 📜📜महाभारत: स्त्री पर्व चतुर