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कर्म गोरखपुरिया
-गीता 2.62-63 ©कर्म भक्त कवि [आशीष मिश्रा] भावार्थ:- विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ
Shravan Goud
मनुष्य अकसर अपनी बुद्धि और परिस्थितियों के अनुसार अर्थ लगाता है। मनुष्य अकसर अपनी बुद्धि और परिस्थितियों के अनुसार अर्थ लगाता है।
kishan mahant
अगर मैं रावण होता तो रावण अपने बहन कि बेजती का बदला ले रहे थे और बदला सीता से नहीं राम से ले रहे थे कियो की रावण जानता था कि राम सीता से कितना प्रेम करते थे तो रावण ने सीता को उठा कर ले गया और अशोक वाटिका में रखेथे और कुछ भी नहीं किया चाहता तो कुछ भी कर सकता था पर किया नहीं कियोकि राम से युध करना चाहते थे रावण रावण बहन की बेजती सहन नहीं कर पा रहे थे और कुछ नहीं #रावण बुद्धि
manoj kumar jha"Manu"
हे अर्जुन! जो तमोगुण से घिरी हुई बुद्धि अधर्म को भी "यह धर्म है"ऐसा मान लेती है तथा संपूर्ण पदार्थों को भी विपरीत मान लेती है वह बुद्धि तामसी है।। श्रीमद्भगवतगीता १८/३२ तामसी बुद्धि
smita@ishu
ये पोस्ट उन बेवकूफों के लिए है जो बिना मतलब लड़ने भीड़ जाते है बात दर असल ये है कि, कोई भाईसाहब मेरी पोस्ट पर आए और उन्होंने किसी के लिए ( जिहादी) शब्द कहा क्यों कहा?? ये वही बता सकते है तो मुझे मतलब नहीं पता था मैंने उतना गौर नहीं किया ,,, बस फिर क्या था कुछ लोग गैंग या भीड़ कहूं 😝😝 मिल कर मुझसे बेवकूफों की तरह झगड़ने लगे, और आज भी उनमें से एक ने कुछ कहा तो ये जवाब है उर्दू सबकी अच्छी नहीं होती पर दिल और दिमाग साफ तो रख सकते हो ना 😝😝😝🙏🙏🙏 मै अच्छी हूं या बुरी तुम्हारे कहने से नहीं हो जाऊंगी, और गलत का साथ तो बिल्कुल नहीं देती 😏😏 हा झगड़े शांत करवाने की कोशिश जरूर करती हूं तो कृप्या मंद बुद्धि के धनी व्यक्ति मुझसे दूर रहे 🙏🙏 जनहित में जारी 🤟🤟🤟 get well soon 😍😍😍 #अर्थ का अनर्थ ना बनाओ बुद्धि होगी थोड़ी बहुत तो बुद्धि लगाओ 🙏🙏🙏 और जिहाद क्या है आप ऊपर पढ़ सकते हैं
HP
“वह पापी है दुष्ट नराधम, उसके पास न जाना । उसे देखना छूना मानो, शिर पर पाप चढ़ाना ॥” “भाई सच कहते हो, लेकिन, पावन किसका तन है? रक्त माँस मल मूत्र आदि से, रहित कौन सा जन है? आत्मा तो सब की समान है, सुन्दर शुचि अविनाशी । सब में सदा समान बिराजें, शम् कर घंट घटवासी।” “कर्म बुरे करता है” लेकिन, ‘गहन कर्म गति’ भाई । क्या अच्छा क्या बुरा न परिभाषा इसकी हो पाई ॥” मानव की अपूर्ण प्रज्ञा-क्या, बेचारी ने जाना । कुछ आसान नहीं है जग में, ‘बुरा भला’ बतलाना ॥ प्रभु के इस पावन प्राँगण में, किसको दोष लगाऊं उसकी पुण्य पूत कृतियों को, कैसे बुरा बताऊ॥ किससे द्वेष करूं? किससे बदला लूँ? किसकों मारूं? किसे विपक्षी समझूँ किसकी सेना को संहारूं? आत्म बुद्धि
Benam Shayar
शिक्षा ऐसा वृक्ष है जो दिल में उगता है दिमाग में पलता है और जुबान से फल देता है...।। ©Vipin Maurya #बुद्धि #ज्ञान